खोया हुआ बेटा: शहीद के बेटे की प्रेरणादायक कहानी
एक व्यस्त बस अड्डा, जहां सैकड़ों लोग रोज आते-जाते हैं। लेकिन इस भीड़ में एक छोटा बच्चा है, जो अपनी मासूमियत से सबके जूते चमकाता है। उसकी उम्र मुश्किल से 10-11 साल है, बाल बिखरे हुए हैं और कपड़े मैले हैं। वह राहगीरों से कहता है, “भैया, जूते पॉलिश करवा लो, सिर्फ ₹5 में चमक जाएंगे।” कुछ लोग उसे अनसुना कर देते हैं, जबकि कुछ उसकी मजबूरी को देखकर खामोश हो जाते हैं।
लेकिन कोई नहीं जानता कि यह बच्चा किस दर्द से गुजर रहा है। यह बच्चा उस फौजी का बेटा है, जिसने अपनी जान देश की रक्षा में दे दी थी। उसके पिता, कैप्टन अर्जुन सिंह, एक बहादुर सैनिक थे, जिन्होंने सीमा पर दुश्मनों से लड़ते हुए अपनी जान दी।
जब बच्चे की मां से पूछा जाता है कि उसके पति का क्या हुआ, तो वह आंसू पोंछते हुए बताती है, “वह अब वापस नहीं आएंगे।” बच्चे की मासूमियत से भरी आंखों में सवाल होता है, “क्यों मां? सबके पापा तो लौटते हैं।” मां उसे गले लगाकर कहती है, “तेरे पापा इस देश के हीरो थे।”
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बच्चा सोचता है कि वह बड़ा होकर अपने पिता की तरह फौजी बनेगा। वह अपनी मां से कहता है, “मैं भी देश की रक्षा करूंगा।” लेकिन उसकी मां जानती है कि उसके बेटे को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
एक दिन, बस अड्डे पर काम करते हुए, एक बूढ़ा आदमी उसे पहचान लेता है। वह कहता है, “तू कैप्टन अर्जुन सिंह का बेटा है, ना?” बच्चे की आंखों में आंसू आ जाते हैं। बूढ़ा आदमी उसे कंधे पर हाथ रखकर कहता है, “तेरे पिता ने इस मिट्टी की हिफाजत की है। यह तेरा अपमान है कि तू जूते पॉलिश कर रहा है।”
बूढ़े फौजी ने बच्चे की कहानी सुनकर अधिकारियों से बात की। धीरे-धीरे यह बात पूरे शहर में फैल गई। लोग अब उसकी मदद के लिए आगे आने लगे। कोई किताबें लाया, कोई स्कूल में दाखिला दिलाने की कोशिश करने लगा।
बच्चे की मां के आंसू अब खुशी में बहने लगे। वह अपने बेटे को गले लगाकर कहती है, “तेरे पापा आज जहां भी होंगे, तुझे देखकर गर्व कर रहे होंगे।” बच्चे की आंखों में चमक लौट आई। अब वह बस अड्डे का जूते पॉलिश करने वाला बच्चा नहीं था, बल्कि शहीद का बेटा था।
उसके लिए एक नया सफर शुरू हुआ। बूढ़े फौजी अफसर ने उसके लिए पास के स्कूल में दाखिला करवाया। स्कूल में पहली बार बैठते ही उसे लगा जैसे किसी और दुनिया में आ गया हो। वह अब केवल जूतों की धूल से उठकर देश की मिट्टी को सींचने की ओर बढ़ रहा था।
लेकिन रास्ता आसान नहीं था। गरीबी अब भी थी। मां बीमार रहती थी, और कभी खाने के पैसे पूरे नहीं होते थे। फिर भी, बच्चा हार नहीं मानता। वह दिन-रात पढ़ाई करता।
धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। आर्मी स्कूल में उसका दाखिला हो गया। उसकी मां की आंखों में खुशी के आंसू थे। उसने आकाश की ओर देखा और अपने शहीद पिता से वादा किया, “पापा, अब आपकी वर्दी मैं पहनूंगा।”
अब उसका सफर केवल जूतों की धूल से उठकर पसीने और खून से देश की मिट्टी को सींचने तक पहुंचने वाला था। आर्मी स्कूल में दाखिला होने के बाद, उसने कठिनाइयों का सामना किया। सुबह चार बजे की परेड, दोपहर की धूप में दौड़, और रात को हथियारों की ट्रेनिंग।
हर बार जब उसका शरीर थक कर गिरना चाहता, वह अपने पिता की तस्वीर याद करता। उसकी आंखों में जलती आग और दिल में भरा जुनून उसे दूसरों से अलग बनाता था।
आखिरकार, वह दिन आ गया जब उसने पहली बार आर्मी की वर्दी पहनी। उसकी मां की आंखों में आंसू थे, लेकिन गर्व था। वह बच्चा, जो कभी बस अड्डे पर जूते पॉलिश करता था, आज देश की वर्दी में खड़ा था।
उसने मां के पैरों को छूकर कहा, “आज मैंने पापा का सपना पूरा कर दिया।” मां ने उसे सीने से लगाया और कहा, “बेटा, आज तू सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि पूरे देश का बेटा बन गया है।”
उस दिन, उस छोटे से बच्चे ने साबित कर दिया कि संघर्ष और हिम्मत से कुछ भी संभव है। वह अब अपने पिता की तरह देश की रक्षा करने के लिए तैयार था।
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