मजबूरी में बेटे को सड़क पर छोड़ गई गरीब मां, सालों बाद जो हुआ उसने सबका दिल छू लिया
बारिश की एक ठंडी रात थी, जब सविता ने अपने पांच साल के बेटे आदित्य को मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ने का फैसला किया। फटी झोपड़ी, शराबी पति और खाली रसोई ने उसे ऐसी मजबूरी में डाल दिया कि मां का दिल भी टूट गया। “मुझे माफ करना बेटा, तुझे पालने की मेरी औकात नहीं है,” ये आखिरी शब्द थे जो सविता ने आदित्य से कहे। आंखों में आंसू, हाथ कांपते हुए—लेकिन पेट की आग और गरीबी के सामने उसका मातृत्व हार गया।
आदित्य मासूमियत से पूछता रहा, “मां तुम कब आओगी?” लेकिन सविता की आंखों में जवाब था—कभी नहीं। वह भीड़ में खो गई, बेटे को भगवान के भरोसे छोड़कर। उसी रात मंदिर के पास एक काली कार रुकी। राजेश कपूर और उनकी पत्नी नीता, जो दस साल से संतान के लिए तरस रहे थे, आदित्य को देखकर ठिठक गए। नीता की ममता उमड़ आई। पुलिस स्टेशन जाकर जांच करवाई, लेकिन कोई दावा करने नहीं आया। आदित्य कपूर परिवार का हिस्सा बन गया।
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साल बीत गए। आदित्य ने अच्छे स्कूलों में पढ़ाई की, विदेश गया, बिजनेस की डिग्री हासिल की और भारत लौटकर कपूर इंडस्ट्रीज को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। मीडिया में उसकी सफलता की चर्चा हर जगह थी—भारत का सबसे युवा सीईओ, करोड़ों की कंपनी का मालिक। लोग कहते, “यह लड़का तो भगवान का वरदान है।” लेकिन आदित्य की चमकती मुस्कान के पीछे एक अधूरी कहानी छुपी थी—अपनी असली मां की।
उधर सविता का जीवन वहीं का वहीं था। पति की मौत के बाद वह शहर की झुग्गी बस्ती में भीख मांगकर गुजारा करती थी। बूढ़ी हो चुकी थी, लेकिन बेटे की याद हर दिन तड़पाती थी। एक दिन उसने अखबार में आदित्य कपूर की तस्वीर देखी—भारत का सबसे युवा अरबपति। तस्वीर में वही आंखें, वही मुस्कान। सविता का दिल थम गया। “यह तो मेरा आदित्य है!” वह अखबार सीने से लगाकर रो पड़ी।
भीख के पैसे जोड़कर वह मुंबई पहुंची। कपूर इंडस्ट्रीज के बाहर सिक्योरिटी गार्ड ने उसे अंदर जाने से रोक दिया। “यहां गरीब लोग नहीं जा सकते,” गार्ड ने ताना मारा। लेकिन सविता फुटपाथ पर बैठ गई, इंतजार करती रही। शाम को आदित्य की कार बाहर निकली। ड्राइवर ने हॉर्न बजाया, लेकिन सविता के पैर लड़खड़ा गए और वह गिर पड़ी। आदित्य खुद बाहर आया, बूढ़ी औरत को उठाया। “मां जी, आप ठीक हैं?” सविता की आंखों में आंसू थे। “मां मत कहो बेटा, जिसने तुझे छोड़ा, वह कैसी मां?” आदित्य सन्न रह गया। सविता ने कांपती आवाज में कहा, “मैं ही हूं तेरी मां, जिसने तुझे मंदिर की सीढ़ियों पर छोड़ा था।”
एक पल को सब थम गया। आदित्य ने अपनी मां को गले से लगा लिया। “मां, तुम्हारी कमी हमेशा महसूस होती थी। अब समझ आया क्यों।” सविता रोती रही, “मजबूरी में छोड़ा था बेटा, भूख देखी नहीं जाती थी। हर दिन तेरी याद में मरी हूं।” आदित्य ने सिर सहलाते हुए कहा, “अब कुछ मत बोलो मां, तुम्हारा बेटा तुम्हारे सामने है। अब कोई भूख, कोई तकलीफ नहीं झेलनी पड़ेगी।”
उस रात आदित्य ने अपनी मां को अपने बंगले में रखा। नीता कपूर ने भी सविता को गले लगाया, “आप हमारे बेटे को जन्म देने वाली मां हैं, अब यह घर आपका है।” सविता की आंखों में सुकून था। “भगवान ने मेरी गलती माफ कर दी बेटा।”
कुछ महीनों बाद आदित्य ने “मां का घर” नाम से संस्था खोली, जहां अनाथ बच्चों को शिक्षा, खाना और घर मिलता था। मीडिया ने पूछा, “इस संस्था का नाम मां का घर क्यों?” आदित्य बोला, “अगर एक मां ने मुझे जन्म ना दिया होता, और दूसरी मां ने मुझे पाला ना होता, तो मैं आज यहां नहीं होता। यह घर दोनों मांओं को समर्पित है।”
शाम को आदित्य अपनी मां के पास बैठा था। सविता ने कहा, “बेटा, कभी किसी की मजबूरी पर मत हंसना। मजबूरी में किए गए फैसले किसी का भाग्य बदल देते हैं।” आदित्य मुस्कुराकर बोला, “अब मुझे पता चल गया कि छोड़ने में भी प्यार हो सकता है।”
यह कहानी बताती है कि कभी किसी गरीब मां की मजबूरी पर मत हंसो, क्योंकि जिसे वह आंसू के साथ छोड़ती है, वह किसी दिन दुनिया को रोशन कर सकता है।
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