सड़क किनारे बैठी गरीब लड़की ने करोड़पति की बेटी की जिंदगी बदल दी, पढ़ाई और इंसानियत की अनोखी मिसाल

शहर के सबसे बड़े कारोबारी अरविंद मेहता की आंखें उस दिन हैरानी से फैल गईं, जब उन्होंने अपनी प्यारी बेटी आर्या को सड़क किनारे फटी चादर पर बैठा देखा। उसके सामने बैठी थी एक झुग्गी झोपड़ी की लड़की, बिखरे बाल, मैले कपड़े और हाथ में गणित की पुरानी किताबें। वह लड़की आर्या को गणित के सवाल समझा रही थी। यह दृश्य अरविंद के लिए कल्पना से परे था। करोड़ों की दौलत, आलीशान बंगला, महंगी गाड़ियां और नौकर-चाकर के बीच पली-बढ़ी उनकी बेटी आज एक गरीब लड़की के साथ सड़क पर बैठकर पढ़ाई कर रही थी।

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लेकिन इस कहानी की शुरुआत कुछ महीने पहले हुई थी। आर्या को बचपन से ही गणित से डर लगता था। चाहे कितने भी महंगे ट्यूटर रखे जाएं, उसके नंबर पांच या छह से ऊपर नहीं जाते थे। स्कूल में टीचर डांटते, बच्चे मजाक उड़ाते, और आर्या का आत्मविश्वास टूटता जाता। एक दिन आर्या ट्यूशन से रोते हुए घर लौटी। उसकी आंखें लाल थीं, और उसने पापा से कहा, “मुझे कभी मैथ्स समझ में नहीं आएगी, मैं कितनी बेवकूफ हूं।” अरविंद का दिल टूट गया। उन्होंने शहर के सबसे महंगे ट्यूटर लगाए, लेकिन लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ।

एक दिन, जब आर्या ट्यूशन से लौट रही थी, वह फुटपाथ पर बैठी एक लड़की से टकरा गई। वह लड़की करीब 15-16 साल की थी, फटी सलवार और टूटी चप्पलें पहने, लेकिन हाथ में गणित की किताबें थीं। उसने आर्या से पूछा, “क्यों रो रही हो?” पहले तो आर्या चुप रही, लेकिन उस लड़की की मासूमियत ने उसका दिल खोल दिया। आर्या ने बताया कि उसे मैथ्स नहीं आती, सब उसका मजाक उड़ाते हैं। लड़की मुस्कुराई और बोली, “मैथ्स मुश्किल नहीं है, बस सही तरीके से समझना चाहिए। अगर चाहो तो मैं सिखा सकती हूं।”

उस दिन से दोनों की दोस्ती शुरू हो गई। रोज जब आर्या ट्यूशन से लौटती, वह झुग्गी वाली लड़की अनिका उसे सड़क किनारे बैठाकर प्यार से मैथ्स समझाती। अनिका का तरीका अलग था—वह खेल-खेल में सवाल हल कराती, टॉफी और पिज्जा के टुकड़ों से फ्रैक्शन समझाती। धीरे-धीरे आर्या का डर गायब होने लगा। अब वह मैथ्स से भागती नहीं थी, बल्कि मुस्कुराकर सवाल हल करने लगी थी।

एक दिन अरविंद की गाड़ी बंगले के पीछे वाली सड़क से गुजरी। उन्होंने देखा कि आर्या सड़क किनारे बैठी है और सामने अनिका किताब खोलकर उसे पढ़ा रही है। अरविंद को गुस्सा आ गया, “यह क्या बदतमीजी है? मेरी बेटी को सड़क पर बैठाकर पढ़ा रही हो? कहीं तुम उसे गलत रास्ते पर तो नहीं ले जा रही।” उन्होंने अनिका को खूब डांटा और आर्या को खींच कर घर ले आए। उस रात आर्या ने रोते-रोते कहा, “पापा, आपने गलत समझा। अगर आप देख पाते कि अनिका मुझे कैसे पढ़ाती है तो आप भी उस पर भरोसा करते।” अरविंद ने बात वहीं खत्म कर दी।

कुछ हफ्तों बाद आर्या के स्कूल में टेस्ट हुआ। रिजल्ट आया तो पूरा स्कूल हैरान रह गया। आर्या, जो कभी 5 या 6 नंबर से ऊपर नहीं गई थी, अब 100 में से 90 नंबर लेकर आई थी। टीचर तक चौंक गए। आर्या ने मुस्कुराकर कहा, “मेरे पास एक सच्ची टीचर है जिसने बिना पैसे लिए मुझे पढ़ाया।” जब अरविंद को यह खबर मिली, उन्होंने आर्या से सच पूछा। आर्या ने साफ बताया, “पापा, यह सब अनिका की वजह से हुआ है।”

अरविंद का अहंकार टूट चुका था। अगले दिन वह खुद अनिका की झुग्गी में गए। वहां अनिका छोटे बच्चों को पढ़ा रही थी। अरविंद ने झिझकते हुए कहा, “बेटा, कल मैंने तुम्हें डांटा था। मुझे माफ कर दो। तुमने मेरी बेटी की जिंदगी बदल दी।” अनिका ने सिर झुका लिया, “मैंने तो बस मदद की है।” अरविंद की आंखें भर आईं, “तुम सिर्फ मदद नहीं कर रही, तुम असली टीचर हो। आज से तुम्हारी सारी पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊंगा। मेरी विनती है, तुम मेरी बेटी को पढ़ाना जारी रखो।”

उस दिन झुग्गी की दीवारों के बीच एक सपना जन्मा। अनिका अब सिर्फ एक गरीब लड़की नहीं थी, वह करोड़पति की बेटी की गुरु थी। अरविंद ने पहली बार सीखा कि असली टैलेंट और इज्जत पैसे से नहीं, ज्ञान से मिलती है।