बरसात की रात में ठुकराई गई सकीना की कहानी
तेज बरसती बारिश, कड़कती बिजली और हवाओं की आवाज के बीच एक छोटे से गांव के कच्चे घर में सकीना बैठी थी। उसकी आंखों में डर था, दिल में दर्द। वह हामिला थी, लेकिन चेहरे पर मां बनने की कोई खुशी नहीं थी। बस चिंता, थकन और बेबसी।
उसका शौहर अमजद शहर में नौकरी करता था। शादी को दो साल हो चुके थे, लेकिन प्यार का साया जैसे उसकी किस्मत से रूठ गया था। सास का रवैया हमेशा सख्त था। हर छोटी गलती पर ताने मिलते। दिन यूं ही गुजरते गए।
एक दिन अमजद अचानक घर लौटा। उसके चेहरे पर गुस्सा और आंखों में नफरत थी। उसने सकीना पर चीखना शुरू कर दिया, “तुम्हारी वजह से मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई है। तुम मनहूस हो।” सकीना चुप रही, उसकी आंखों में आंसू थे।
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अमजद दो दिन घर रहा, लेकिन उसका दिल सकीना से दूर होता गया। वह घंटों फोन पर किसी से प्यार से बात करता, मुस्कुराता। एक शाम सकीना ने उसे कहते सुना, “मेरी बीवी की मेरे दिल में कोई जगह नहीं है। जल्दी ही वह इस घर से चली जाएगी और तुम इस घर की मलिका बनोगी।” सकीना के हाथ कांपने लगे, चाय का कप गिर गया।
अमजद ने गुस्से में सकीना को पकड़कर कहा, “अब बहुत हो गया, निकल जाओ मेरे घर से।” बाहर तेज बारिश थी, बिजली चमक रही थी। सकीना रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, “मैं कहां जाऊंगी? मैं अकेली, हामिला हूं।” मगर अमजद पर जैसे पत्थर का दिल था। उसने सकीना को धक्का देकर बाहर फेंक दिया, दरवाजा बंद कर लिया।

सकीना कीचड़ में गिर गई, बारिश की बूंदें उसके आंसुओं में मिल गईं। वह कांपते हाथों से पेट को संभालती हुई गांव से बाहर जाने लगी। एक घने पेड़ के नीचे बैठ गई, दर्द बढ़ने लगा। “या अल्लाह, अब कहां जाऊं?” उसने खुद से पूछा।
कुछ दूर एक छोटी झोपड़ी दिखी। उसने दरवाजा खटखटाया। एक बूढ़ी औरत ने दरवाजा खोला। सकीना ने रोते हुए कहा, “मांजी, मेरी मदद करें। मुझे पनाह चाहिए।” बूढ़ी औरत का दिल पिघल गया। उसने सकीना को अंदर बुलाया, बिस्तर दिया, गर्म पानी दिया।
रात के सन्नाटे में सकीना को दर्द बढ़ता गया। चंद घंटे बाद एक बच्चे की रोने की आवाज गूंजी। सकीना मां बन चुकी थी। उसने अपने बेटे को सीने से लगाया, आंखों से खुशी के आंसू बह निकले। मगर दिल में एक टीस थी—उसका बेटा बाप के प्यार से महरूम रहेगा।
बूढ़ी औरत ने सकीना को संभाला, खाना दिया, हिम्मत दी। सकीना ने सिलाई का काम शुरू किया, गांव की औरतें उसके पास आतीं, कपड़े सिलवातीं। धीरे-धीरे उसकी मेहनत और ईमानदारी की चर्चा पूरे गांव में फैल गई। बूढ़ी औरत उसे अपनी बेटी मानने लगी।
सालों बीत गए। सकीना का बेटा अब दो साल का हो चुका था। उसकी दुनिया अब वही बच्चा और बूढ़ी मांजी थी। अमजद ने दूसरी शादी कर ली, मगर उसकी जिंदगी में सुकून नहीं आया। घर का माहौल बिगड़ गया, औलाद भी नसीब नहीं हुई। वक्त बीतता गया, अमजद पछतावे में डूबता गया।
एक दिन सकीना की मांजी ने उसे एक राज बताया—जंगल में एक पुरानी झोपड़ी के नीचे खजाना दफन है। सकीना ने वादा किया कि वह उस अमानत को मांजी के बेटे तक पहुंचाएगी। अगले दिन वह जंगल गई, घंटों मेहनत की और आखिरकार संदूक निकाल लाई। उसमें सोने-हीरे थे। मांजी ने कहा, “तुमने अमानत में खयानत नहीं की, यह खजाना अब तुम्हारा है।”
सकीना ने उस दौलत से गांव में स्कूल और अस्पताल बनवाया। गरीबों की मदद की, बच्चों को पढ़ाया। उसकी नेकदिली की चर्चा दूर-दूर तक फैल गई। उसका बेटा बड़ा हुआ, समझदार और नरम दिल।
वहीं अमजद की जिंदगी बर्बाद हो गई। घर, जमीन सब कर्ज में चला गया। एक दिन उसने सुना कि पड़ोस के गांव में एक नेक औरत रहती है जो सबकी मदद करती है। वह वहां गया, दरवाजा खटखटाया। सामने सकीना थी—अब मजबूत, सम्मानित औरत। अमजद ने माफी मांगी, आंसुओं में डूब गया।
सकीना ने कहा, “तुमने जो किया उसकी सजा पा चुके हो। मैं तुम्हें अपने बेटे के सदके में माफ करती हूं, लेकिन अब हमारी जिंदगी में तुम्हारी कोई जगह नहीं है।”
अमजद चुपचाप लौट गया। उसके दिल में पछतावा था। उसने खुद अपनी जन्नत खो दी थी। सकीना की कहानी ने गांववालों को सिखाया—मुसीबत में हिम्मत और नेकदिली इंसान को बुलंद कर देती है। आज सकीना सिर्फ अपने बेटे की मां नहीं थी, बल्कि पूरे गांव की उम्मीद बन चुकी थी।
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