कहानी: एसपी रुचिका शर्मा की बहादुरी
रामपुर जिले में एक नई एसपी, रुचिका शर्मा, की नियुक्ति हुई थी। तेज, निडर और न्याय के लिए किसी भी हद तक जाने वाली अफसर। उन्हें पता था कि इस जिले में कानून का राज नहीं, बल्कि ताकत का राज चलता है। एक दिन, उन्हें खबर मिली कि एक गांव में महिलाएं धरने पर बैठी हैं। आरोप था कि गांव के चार बदमाश खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं और पुलिस आंख मूंदे बैठी है।
रुचिका ने बिना किसी को बताए, सादे कपड़ों में गांव जाने का फैसला किया। वह धरने पर बैठी महिलाओं के बीच जाकर बैठ गई। कोई नहीं जानता था कि उनके साथ बैठी महिला जिले की सबसे बड़ी अफसर है। एक बूढ़ी महिला ने फूट-फूट कर कहा, “बेटी, अब तो डर लगता है। हमारी बेटियों को घर से बाहर भेजने में पुलिस कहती है, सबूत लाओ।” यह सुनकर रुचिका की आंखों में आंसू आ गए।
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तभी पुलिस की टीम वहां पहुंची, जिसमें वही चार बदमाश मुस्कुराते हुए थे। इंस्पेक्टर चिल्लाया, “चलो भागो यहां से। गैरकानूनी भीड़ इकट्ठा की है तुम लोगों ने।” कांस्टेबल बलबीर ने लाठी उठाई और महिलाओं को धकेलने लगा। रुचिका ने कड़क आवाज में कहा, “तुम लोग हिसाब सुनने नहीं आए। तुम तो डंडा मारने पर ही उतरे हो।” उसकी बातें सुनकर पुलिस टीम हड़बड़ा गई, लेकिन बलबीर गुस्से में आ गया और उसने रुचिका को धक्का देकर लाठी मार दी।
गांव वाले सन्न रह गए। रुचिका ने दर्द सहते हुए बलबीर की आंखों में देखा। उसकी आंखों में गुस्सा और अपमान का ज्वाला था। उसने अपने दाहिने हाथ से अपनी साड़ी की आस्तीन को ऊपर किया और अपनी पुलिस आईडी दिखाते हुए कहा, “रुचिका शर्मा, आईपीएस पुलिस अधीक्षक।” बलबीर और रतन सिंह का चेहरा सफेद पड़ गया।

रुचिका ने आदेश दिया, “पकड़ो इन चारों को।” बलबीर कांपने लगा। उसने अपनी लाठी गिरा दी और गिड़गिड़ाने लगा। रुचिका ने कहा, “तुमने आज एक औरत पर हाथ नहीं उठाया, तुमने इस वर्दी पर हाथ उठाया है। तुमने हमें शर्मिंदा किया है।” बलबीर को उसकी वर्दी उतरवाने का आदेश दिया गया।
गांव वालों ने देखा कि रुचिका ने न केवल बलबीर को सजा दी, बल्कि रतन सिंह को भी सस्पेंड किया। उसने गांव की सभी महिलाओं को बुलाया और उनकी शिकायतें सुनीं। उसने उन्हें भरोसा दिलाया कि अब डरने की कोई बात नहीं है।
जब रुचिका अपनी गाड़ी में बैठने लगी, तो पूरा गांव उसे सम्मान से देख रहा था। शांति देवी और बाकी औरतें हाथ जोड़कर खड़ी थीं। उनकी आंखों में कृतज्ञता के आंसू थे। रुचिका ने अपनी पीठ पर हाथ फेरा। दर्द अभी भी था, लेकिन यह दर्द एक वर्दी धारी के कर्तव्य निभाने का दर्द था।
उस दिन के बाद, रामपुर जिले में बहुत कुछ बदल गया। किशनपुर की कहानी हर थाने में फैल गई। अपराधियों में खौफ था और आम जनता में एक नया भरोसा। अब उन्हें पता था कि उनकी एक कप्तान है जो इंसाफ के लिए सिर्फ फाइलें नहीं पढ़ती, बल्कि आम औरत बनकर उनके बीच बैठती है और उनका दर्द महसूस करती है।
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जब सिस्टम सड़ने लगे, तो किसी एक को उठकर उसे साफ करने की हिम्मत दिखानी पड़ती है। चाहे इसकी कीमत कितनी भी चुकानी पड़े। एसपी रुचिका शर्मा ने साबित कर दिया कि एक मजबूत इरादा और साहस से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।
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