जनाजे की सच्चाई: एक औरत की हिम्मत
मस्जिद के आंगन में सफेद चादरों में लिपटा जनाजा रखा था। लोगों की भीड़, इमाम की तिलावत, औरतों की सिसकियाँ—सब कुछ सामान्य लग रहा था। तभी एक 9 साल की बच्ची, नूर फातिमा, जनाजे की ओर दौड़ी। उसकी चीख ने सन्नाटा तोड़ दिया, “अम्मी जिंदा है!” सब चौंक गए, मगर किसी ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया।
जनाजे के पास खड़ी नौकरानी ज़ैनब के दिल में हलचल थी। वह जानती थी नूर झूठ नहीं बोल रही। उसके अंदर डर और यकीन दोनों थे। इमाम साहब ने बच्ची को समझाया, “बेटी, तुम्हारी अम्मी अब अल्लाह के पास है।” मगर नूर का यकीन अडिग था।
इसी बीच, अस्पताल के कमरे में आलिया रहमान बिस्तर पर थी। उसके शौहर अहमद रजाक बाहर खड़ा था, चेहरे पर अफसोस का दिखावा, मगर आंखों में कोई दर्द नहीं। डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था। ज़ैनब ने देखा कि अहमद फोन पर किसी से कह रहा था, “अब कोई उम्मीद नहीं, अगले हफ्ते तक सब कागज पूरे कर लूंगा।” ज़ैनब को शक हुआ कि कुछ गड़बड़ है।
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ज़ैनब ने अपने भाई नईम से मदद मांगी, जो लीगल एनजीओ में काम करता था। वकील आयशा नकवी अस्पताल आईं, डॉक्टर नसरीन को भरोसे में लिया गया। आलिया के कमरे में छुपे कैमरे लगाए गए। रात को अहमद आया, सिरिंज में जहर भरकर आलिया को मारने की कोशिश की। सब कैमरे में रिकॉर्ड हो गया।

सुबह पुलिस को सबूत सौंपे गए। मगर अहमद को यकीन था कि सब खत्म हो गया। अस्पताल ने बयान दिया कि आलिया का इंतकाल हो गया है, मगर असलियत यह थी कि डॉक्टरों ने उसे ऐसी दवा दी थी जिससे शरीर मृत सा दिखे, मगर वह जिंदा थी।
अगले दिन मस्जिद में आलिया का जनाजा रखा गया। मीडिया, पुलिस, वकील सब मौजूद थे। अहमद ने जनाजे के कागजों पर दस्तखत किए, इंश्योरेंस क्लेम फाइल किया। जैसे ही जनाजे का कफन हटाया गया, आलिया की आंखें खुल गईं। सब हैरान रह गए। नूर दौड़कर अपनी मां से लिपट गई। आलिया ने कहा, “तुम्हारे यकीन ने मुझे जिंदा रखा।”
पुलिस ने अहमद को गिरफ्तार किया। उसके खिलाफ कत्ल की कोशिश, धोखाधड़ी और जायदाद हड़पने के सबूत थे। मीडिया में खबर फैल गई—”जिंदा औरत का जनाजा, शौहर की साजिश बेनकाब।” आलिया ने अदालत में कहा, “मैं बदला लेने नहीं, इंसाफ के लिए आई हूं। मेरी कहानी मिसाल बनेगी।”
अहमद की सारी जायदाद जब्त हो गई। वह जेल में अकेला रह गया। आलिया ने ज़ैनब के साथ मिलकर “नूर ट्रस्ट” की स्थापना की, जहां घरेलू हिंसा से पीड़ित औरतों की मदद की जाती है। वह अब औरतों को हिम्मत देती, “डरो मत, बोलो। खामोशी जालिम की ताकत है।”
एक दिन मीडिया ने पूछा, “क्या आप अहमद को माफ करेंगी?” आलिया ने कहा, “मैंने उसे पहले ही माफ कर दिया, ताकि मेरे दिल में नफरत ना रहे।”
रात को छत पर आलिया ने आसमान की ओर देखा, “ए मेरे रब, तूने मुझे दूसरी जिंदगी दी है, अब मैं उन सबकी आवाज बनूंगी जो आज भी खामोश हैं।” नीचे नूर सो रही थी, ख्वाब में मां के साथ हंस रही थी।
यह कहानी बताती है कि सच कभी दफन नहीं होता, और एक औरत की हिम्मत साजिश को भी हरा सकती है।
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