पटना रेलवे स्टेशन से दिल्ली तक का खौफनाक सफर: जब एक ट्रेन यात्रा ने खोला इंसानी सौदागरों का सबसे डरावना सच
पटना जंक्शन की उस सर्द शाम को सब कुछ सामान्य लग रहा था। प्लेटफार्म नंबर 3 पर बैठी 25 वर्षीय हिमानी को बस मगध एक्सप्रेस का इंतजार था — वही ट्रेन जो उसे नई ज़िंदगी की तलाश में दिल्ली लेकर जाने वाली थी। लेकिन किसे पता था कि यही सफर उसकी ज़िंदगी का सबसे डरावना अध्याय बन जाएगा।
रात के आठ बज चुके थे। ट्रेन दो घंटे लेट थी। तभी प्लेटफार्म पर एक युवक आया — राजीव। छह साल पहले इसी ट्रेन में उसने हिमानी के साथ एक रात का सफर किया था। वह पल उसके ज़ेहन से कभी नहीं निकला। आज वही चेहरा सामने था — लेकिन चेहरे पर मुस्कान नहीं, सिर्फ़ थकान और बेचैनी।
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हिमानी फोन से किसी को कॉल लगाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मोबाइल में बैलेंस नहीं था। उसने पास बैठी महिला से फोन मांगा, मना कर दिया गया। तभी राजीव आगे बढ़ा — “आप कॉल कर लीजिए, मेरे फोन से।” उसने नंबर डायल किया, हिमानी ने बात की — और बात खत्म होते ही उसकी आंखों से आंसू बह निकले। राजीव को कुछ गड़बड़ लगी। उसने चुपके से कॉल रिकॉर्ड कर ली।
रिकॉर्डिंग सुनते ही उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गई। उस कॉल में हिमानी अपने “मामा-मामी” से कह रही थी कि वह अपने शराबी और हिंसक पति विक्रम को छोड़ चुकी है और अब उनके पास आना चाहती है। लेकिन उधर से जवाब आया — “अभी मत आओ, दो-चार दिन बाद।”
राजीव समझ गया कि यह महिला अकेली और निराश है। उसने बहाने से उसे नौकरी का ऑफर दिया — “दिल्ली में मेरी दुकान है, काम चाहिए तो चलिए।” थकी और टूटी हुई हिमानी ने हामी भर दी।
दोनों ट्रेन में सवार हुए। यात्रा के दौरान राजीव ने पहचाना — वही हिमानी, जिसने 2018 में उसे स्लीपर कोच में डांटकर भगा दिया था। दोनों ने पुरानी बातें कीं, मुस्कुराए, और बीते हुए गुस्से के बदले एक नई दोस्ती पनपने लगी।

दिल्ली पहुंचकर राजीव ने हिमानी को अपने घर ठहराया। चार दिन तक वह उसके साथ रही, उसकी दुकान पर काम किया, और धीरे-धीरे दोनों के बीच भावनाओं की डोर बंध गई। लेकिन फिर एक दिन हिमानी ने कहा — “आज मामा-मामी मुझे लेने आ रहे हैं।”
राजीव को कुछ अजीब सा महसूस हुआ। जब मामा-मामी आए, उसने उनसे पूछा — “आप क्या काम करते हैं?” उनके जवाब टालमटोल भरे थे। दिल्ली में सालों से रहने वाले राजीव को शक हुआ। जाते वक्त उसने हिमानी से कहा — “अगर कुछ गलत लगे तो फोन करना।”
अगले दिन हिमानी ने वीडियो कॉल की। चेहरे पर नई चमक थी, बाल कटे हुए, नए कपड़े। बोली — “मामा-मामी बहुत ध्यान रख रहे हैं।” फिर शाम को उसका फोन बंद हो गया। अगले दिन भी नहीं चला। हफ्ता बीत गया — कोई जवाब नहीं।
राजीव बेचैन होकर पुलिस के पास गया। कॉल ट्रेस हुई — लोकेशन मिली करोल बाग के आनंद पर्वत इलाके में। जब पुलिस वहां पहुंची, दरवाज़े बंद थे। जैसे ही ताला टूटा, अंदर का नज़ारा देखकर सब सन्न रह गए।
हिमानी अधमरी हालत में फर्श पर पड़ी थी। उसे हफ्तेभर से खाना नहीं दिया गया था। पास बैठे वही “मामा-मामी” पुलिस देखकर भागने लगे, लेकिन पकड़ लिए गए। पूछताछ में जो राज़ निकला, उसने सबको हिला दिया।
ये दोनों और हिमानी का पति विक्रम दरअसल “मानव तस्करी गिरोह” चलाते थे। वे गांव की भोली-भाली लड़कियों को झूठे विवाह के नाम पर दिल्ली लाते और फिर देह व्यापार में धकेल देते। जो लड़कियां विरोध करतीं — उन्हें बंद कर दिया जाता, जैसे हिमानी को।
राजीव की सूझ-बूझ और पुलिस की तत्परता से हिमानी की जान बच गई। लेकिन इस केस ने एक बार फिर समाज के उस सड़े हुए चेहरे को उजागर किया, जहाँ रिश्तों की आड़ में औरतों की ज़िंदगियाँ बेची जाती हैं।
पटना से दिल्ली तक की इस यात्रा में हिमानी सिर्फ़ शहर नहीं बदली — उसने मौत को मात दी। और राजीव, जो कभी एक ट्रेन यात्री था, अब एक हीरो बन गया — जिसने समय रहते इंसानियत को बचा लिया।
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