तपु पर फंसी तीन जिंदगियां: भूख, विश्वासघात और बदले की आग
समंदर के बीचोंबीच एक वीरान तपु, चारों तरफ बस पानी और डर। वहीं फंसी थी संध्या, एक खूबसूरत और जिद्दी महिला, अपने नौकर आदित्य के साथ। दस दिनों से भूखी संध्या की हालत खराब थी। उसने एक समुद्री घोंघा तोड़ा, लेकिन अंदर सिर्फ रेत मिली। भूख से बेहाल, उसने आदित्य की ताजी मछली देखी और अपने आत्मसम्मान को किनारे रखकर मदद मांगने का फैसला किया।
आदित्य ने एक शर्त रखी – उसे पहले चूमना होगा। संध्या ने सोचा, जान बचाने के लिए इतना तो करना ही पड़ेगा। उसने आदित्य को चूम लिया और बदले में खाना मिल गया। धीरे-धीरे दोनों ने एक-दूसरे का सहारा बनना शुरू किया। आदित्य मछली पकड़ता, संध्या उसका साथ देती। दोनों ने मिलकर एक छोटी सी झोपड़ी बना ली। भूख और अकेलेपन ने उन्हें करीब ला दिया था। वे सोते-सोते अनजाने में एक-दूसरे के पास आ जाते।
लेकिन तपु पर तीसरा शख्स भी आने वाला था – संध्या का पति, जय। एक दिन आदित्य को समंदर किनारे एक बेहोश आदमी मिला। वह उसे झोपड़ी तक ले आया। संध्या ने जैसे ही जय को देखा, दौड़कर उसके गले लग गई। आदित्य समझ गया कि ये दोनों पति-पत्नी हैं। जय को संदेह हुआ कि उसकी गैरमौजूदगी में संध्या और आदित्य के बीच कुछ हुआ है।
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जय के पास एक लाइटर था, जिससे आग जलाई जा सकती थी। अब उन्हें कच्चा मांस नहीं खाना पड़ेगा। लेकिन जय ने आदित्य को अपनी पत्नी से दूर रहने की चेतावनी दी। आदित्य ने भलाई दिखाते हुए खाना बांटा, लेकिन जय ने उसका शुक्रिया नहीं किया। उल्टा, उसने झोपड़ी को दो हिस्सों में बांट दिया। आदित्य नाराज होकर अलग हो गया और कसम खाई कि अब वह उनके लिए मछली नहीं लाएगा।
संध्या ने जय को समझाया कि आदित्य के बिना वे ज्यादा दिन नहीं टिक पाएंगे। लेकिन जय अपनी जिद पर अड़ा रहा। दोनों ने केकड़े बटोरे, लेकिन ज्यादातर जहरीले थे। जय उल्टियां करने लगा। उधर आदित्य हर दिन बड़ी मछली पकड़कर खाता, कभी-कभी चोरी-छिपे संध्या को भी खाना दे देता। बदले में संध्या ने आदित्य को लाइटर दे दिया, जिससे जय को शक हो गया कि आदित्य ने उसका लाइटर चुरा लिया। गुस्से में जय ने आदित्य को मार दिया और उसका खाना छीन लिया।

जय की नजर अब आदित्य के डाइविंग मास्क पर थी। एक रात, जब आदित्य सो रहा था, जय ने उसका मास्क चुरा लिया और समंदर में कूद गया। आदित्य ने देखा तो गुस्से में उसका पीछा किया, लेकिन उसी दौरान आदित्य की हवस ने संध्या को मजबूर कर दिया। पहले तो संध्या ने विरोध किया, लेकिन फिर उसने खुद को आदित्य के सामने समर्पित कर दिया। जय ने सब देख लिया और गुस्से में संध्या को आदित्य के पास फेंक दिया।
अब जय को जीने के लिए कुछ करना था। उसने टूटी बोतल, प्लास्टिक की शीट और चमड़े की पट्टी से एक नया डाइविंग मास्क बना लिया। वह समंदर में गया और एक डूबी हुई नाव खोज निकाली। उसने नाव को किनारे तक खींचा और मरम्मत शुरू कर दी। कई कोशिशों के बाद उसने नाव को ठीक कर लिया। आदित्य डर गया कि अगर जय मदद लेकर लौट आया तो उसका बचना मुश्किल होगा।
एक दिन, जब जय मछली पकड़ने गया था, आदित्य और संध्या ने उसकी नाव चुराने का प्लान बनाया। दोनों ने नाव को पानी में उतार दिया और भागने लगे। जय ने देखा लेकिन रोक नहीं पाया। नाव में छेद था, जो जय ने ठीक नहीं किया था। नाव डूबने लगी। जान बचाने के लिए दोनों ने समंदर में छलांग लगा दी और किसी तरह वापस तपु तक पहुंचे।
जय ने उनकी झोपड़ी जला दी और आराम से मछली खाने लगा। आदित्य और संध्या थककर तपु पर लौटे, लेकिन जय ने आदित्य पर हमला कर दिया। लगातार तैरने से कमजोर हुए आदित्य को जय ने भाले से मार दिया। समंदर का पानी खून से लाल हो गया। संध्या को बांधकर जय ने उसे सजा दी। संध्या को समझ आ गया कि अब उसे जय की हर बात माननी होगी।
कुछ समय बाद जय ने संध्या को माफ कर दिया। दोनों ने फिर से एक साधारण जीवन शुरू किया। दिन-रात मेहनत कर दोनों ने तपु पर जीना सीख लिया। महीनों बाद एक सैलानी तपु पर आया। संध्या को उम्मीद की किरण मिली। वह नाव में बैठ गई। जय ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन संध्या उसकी आंखों से ओझल हो गई। जय अकेला तपु पर रह गया।
कहानी यही सिखाती है – जिंदा रहने के लिए इंसान क्या-क्या कर सकता है, और रिश्तों की असली परीक्षा मुश्किल वक्त में ही होती है।
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