दरोगा ने सादा कपड़ों में आई महिला को उठाया, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो पूरा थाना कांप उठा!

सरायपुर ज़िले की उस बरसाती रात को किसी ने नहीं सोचा था कि एक छोटी सी ग़लती पूरे पुलिस विभाग की नींव हिला देगी। बात शुरू हुई एक सादी सी दिखने वाली औरत से, जिसने थाने के सामने खड़े होकर इंसाफ़ की बात करने की हिम्मत की — और खत्म हुई डीएम दफ़्तर के आदेश पर तीन पुलिसवालों की निलंबन से।

रात करीब साढ़े आठ बजे की बात है। सरायपुर थाना हमेशा की तरह शांत था। तभी बाहर एक औरत भीगती हुई आई, सादे कपड़ों में, हाथ में पुरानी फ़ाइलें और चेहरे पर थकावट। उसने दरवाज़ा खटखटाया और कहा, “मुझे शिकायत दर्ज करानी है।”
ड्यूटी पर मौजूद दरोगा महेश चौहान ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, फिर झल्लाकर बोला — “अभी टाइम नहीं है, कल आना।”
महिला ने कहा, “मामला ज़रूरी है, कृपया सुन लीजिए।”
बस, यही उसकी ‘ग़लती’ थी। महेश ने गार्ड को इशारा किया — “ले चलो इसे अंदर, बहुत ज़्यादा बोल रही है।”

पाँच मिनट में वही औरत थाने के भीतर एक पुराने कमरे में बैठी थी, और सिपाही उस पर शक की नज़र डाल रहे थे।
“नाम क्या है?”
“रिदा वर्मा।”
“कहाँ रहती हो?”
“डिस्ट्रिक्ट हेड ऑफिस।”
सिपाही दिनेश हंसा, “हेड ऑफिस वाली तो डीएम होती हैं, तू तो कामवाली लग रही है!”
रिदा ने बस इतना कहा, “शायद आपकी नज़र कमजोर है।”

करीब पंद्रह मिनट बाद महेश चौहान ने उसे डाँटते हुए कहा, “थाना कोई मज़ाक की जगह नहीं है। जो भी मामला है, सुबह बताना एसएचओ को। अभी निकलो।”
लेकिन जैसे ही उसने रजिस्टर में उसकी शिकायत लिखने के लिए नाम पूछा और उसने “Rida Verma, District Magistrate” लिखा — महेश के हाथ से पेन गिर गया। पूरा कमरा सन्नाटे में डूब गया।
एक पल को लगा जैसे वक़्त थम गया हो।

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“क्या कहा? आप… डीएम?”
“हाँ, और आपने अभी-अभी एक सरकारी अधिकारी को बिना वजह हिरासत में लिया है,” रिदा ने शांत मगर ठंडी आवाज़ में कहा।
थाने के सब सिपाही वहीं जड़ बनकर खड़े रह गए। किसी के मुँह से आवाज़ नहीं निकली।

रिदा ने अपना फोन उठाया और सीधे ज़िले के एसपी को कॉल किया —
“सर, मैं डीएम रिदा वर्मा बोल रही हूँ। सरायपुर थाने में दरोगा ने मुझे बिना वजह रोका, अपमानित किया और मेरी शिकायत दर्ज करने से इनकार किया। मैं चाहती हूँ कि तुरंत विभागीय कार्रवाई हो।”
दूसरे छोर पर कुछ सेकंड का सन्नाटा रहा, फिर जवाब आया — “मैम, मैं खुद आ रहा हूँ।”

पंद्रह मिनट बाद, एसपी अभिषेक राणा थाने पहुँचे। उन्होंने दरोगा और सिपाहियों की लाइन लगवाई।
“इनके साथ क्या व्यवहार किया आपने?” उन्होंने कड़क स्वर में पूछा।
किसी ने सिर नहीं उठाया।
रिदा बस खड़ी रही, शांत मगर उसकी आँखों में तूफ़ान था।

एसपी ने आदेश दिया — “दरोगा महेश चौहान, सिपाही दिनेश और रमेश — तीनों को तत्काल निलंबित किया जाता है। कारण — अधिकारी से बदसलूकी, ग़लत हिरासत और ड्यूटी में लापरवाही।”
फाइलें जब्त हुईं, और रिपोर्ट रातोंरात डीएम दफ़्तर भेजी गई।

सुबह जब शहर के अख़बार निकले, हेडलाइन थी:
“थाने में डीएम को आम महिला समझा, दरोगा निलंबित!”
सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो गया। लोग कहने लगे — “अब भी सिस्टम में कुछ ईमानदार अफसर जिंदा हैं।”

डीएम रिदा वर्मा ने अगले दिन प्रेस को बयान दिया —
“मैंने यह सब जानबूझकर किया। मैं देखना चाहती थी कि एक आम महिला को थाने में कैसा व्यवहार मिलता है। नतीजा सबके सामने है।”

उस बयान ने पूरे पुलिस विभाग को झकझोर दिया। कई थानों में आपात बैठकें हुईं, नई गाइडलाइन जारी की गई कि “किसी भी व्यक्ति की शिकायत को नज़रअंदाज़ न किया जाए, चाहे वो कोई भी हो।”

लेकिन सबसे बड़ा असर रिदा वर्मा के उस एक कदम ने आम लोगों पर डाला।
अब लोग कहते हैं — “शायद अब थानों के दरवाज़े गरीबों के लिए भी खुलने लगे हैं।”

और दरोगा महेश चौहान?
वो आज भी कहता है — “एक रात ने मुझे सिखा दिया कि हर इंसान की इज़्ज़त होती है… और हर औरत किसी की बेटी या बहन ही नहीं, किसी ज़िले की डीएम भी हो सकती है।”