दिवाली पर दीए बेचने वाले लड़के की सच्चाई

कानपुर शहर की सुबह थी। सड़कों पर दिवाली का जोश छाया हुआ था। हर दुकान पर सफाई हो रही थी, रंगोली बनाई जा रही थी और हवा में मिठाइयों की खुशबू घुली थी। एक सफेद कार धीरे-धीरे सड़क पर आकर रुकी। कार में बैठी थी सान्या गुप्ता, शहर के सबसे बड़े व्यापारी राजेश गुप्ता की एकलौती बेटी। उसके हाथ में ब्रांडेड बैग था, आँखों पर महंगे सनग्लासेस, और चेहरे पर घमंड की हल्की मुस्कान। उसे लगता था कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है – इज्जत, प्यार और दुनिया।

लाल बत्ती पर गाड़ी रुकी। तभी खिड़की पर हल्की दस्तक हुई। सान्या ने मुड़कर देखा। सामने एक 30 साल का युवक खड़ा था। उसके कपड़े पसीने से भीगे हुए थे, हाथ धूल से भरे थे और सिर पर मिट्टी के दीयों की टोकरी थी। उसने झिझकते हुए कहा, “मैडम, दिवाली है। कुछ दिए ले लीजिए। सुबह से एक भी नहीं बिका। बस 10 रुपए के हैं।”

सान्या ने बिना खिड़की नीचे किए तिरस्कार भरी हंसी के साथ जवाब दिया, “पता नहीं कहां-कहां से चले आते हैं ये लोग। हर जगह भीख मांगने।” उसकी सहेलियां जो पीछे बैठी थीं, जोर-जोर से हंसने लगीं।

लड़के ने फिर कोशिश की, “मैडम, आप जितने पैसे देना चाहें, दे दीजिए। बस दिए ले लीजिए। घर में रोशनी रहेगी।”

इस बार सान्या का गुस्सा फूट पड़ा। उसने शीशा नीचे किया और ऊंची आवाज में कहा, “तुम्हें समझ नहीं आता? हटो यहां से। तुम्हारी शक्ल देखकर ही मेरा दिन खराब हो गया।”

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लड़का थोड़ा पीछे हट गया, लेकिन उसी पल उसकी टोकरी का संतुलन बिगड़ गया और एक दिया गिरकर सान्या की कार से टकरा गया। टक की आवाज सुनते ही सान्या का गुस्सा और बढ़ गया। वह तेजी से गाड़ी से उतरी। उसकी हील्स की आवाज पूरे चौराहे पर गूंज उठी।

“अंधे हो क्या? देख नहीं सकते? जानते हो मेरी कार के एक पार्ट की कीमत तुम्हारी पूरी साल की कमाई से ज्यादा है!”

लड़का डर के मारे कांपने लगा। उसने कहा, “मैडम, गलती हो गई। माफ कर दीजिए। मैं गरीब हूं, लेकिन जानबूझकर नहीं किया।”

सान्या ने व्यंग्य भरे लहजे में कहा, “अब पैसे नहीं हैं तो भीख मांग लो। वरना पुलिस बुलाऊंगी।”

लड़का चुप रहा। उसकी आंखों में आंसू थे और जमीन पर बिखरे दिए जैसे उसकी इज्जत की राख बन गए थे।

तभी भीड़ में से एक लड़की आगे बढ़ी। साधारण सलवार-कमीज पहने हुए, चेहरे पर सच्चाई की चमक लिए, वह बोली, “मैडम, दिवाली का दिन है। किसी को यूं नीचा दिखाना अच्छा नहीं लगता। गलती इंसान से ही होती है। माफ कर दीजिए।”

सान्या ने उसकी तरफ देखा और व्यंग्य से बोली, “वाह! अब तुम आ गई इसकी वकील बनकर? या तुम दोनों का कोई नया बिजनेस है – कारों को छूकर पैसे ऐंठने का?”

लड़की ने बहुत शांति से जवाब दिया, “आप जैसा सोचती हैं, वैसा हर कोई नहीं होता। कभी-कभी एक दिए की रोशनी किसी का आत्मसम्मान भी बचा लेती है।”

सान्या भड़क उठी, “अगर इतनी हमदर्दी है, तो तुम ही दे दो पैसे।”

लड़की ने बिना एक पल सोचे अपना पर्स खोला। उसमें से ₹5000 निकाले और सान्या के सामने रख दिए। “मेरे पास अभी इतने ही हैं। बाकी 5000 मैं आपसे उधार ले रही हूं। इंसानियत के नाम पर।”

सान्या ने पैसे झपटकर लिए और बोली, “दान कर दूं तुम्हारे ये नोट? तुम जैसे लोगों से उधार लूंगी मैं?”

लड़की ने बहुत धीरे से कहा, “दान नहीं। यह एक सबक है। शायद कभी याद आ जाए।”

सान्या कुछ पल के लिए उसके चेहरे को देखती रही। वह चेहरा साधारण था, लेकिन उसकी आंखों में जो सच्चाई थी, उसने सान्या के अंदर एक अजीब सी बेचैनी जगा दी। वह गुस्से में अपनी गाड़ी में बैठी और तेजी से चली गई।

दूसरा मौका

दो महीने बीत चुके थे। सान्या की जिंदगी फिर से वही तेज रफ्तार पकड़ चुकी थी – मीटिंग्स, पार्टियां, नए प्रोजेक्ट और लोगों के सामने वही नकली मुस्कान। लेकिन उस दिन की घटना अब भी उसके दिल के किसी कोने में चुभ रही थी।

उस दिन सान्या की कंपनी “गुप्ता कंस्ट्रक्शन” की सबसे बड़ी मीटिंग थी। एक विदेशी कंपनी “सिंधिया ग्रुप ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर” भारत में अपना मेगा प्रोजेक्ट लॉन्च करने वाली थी। सान्या की कंपनी उस टेंडर के लिए सबसे बड़ा दावेदार थी।

पापा यानी राजेश गुप्ता ने खुद कहा था, “सान्या, अगर यह डील हमारी हुई, तो हम भारत की टॉप पांच कंपनियों में गिने जाएंगे। कोई गलती मत करना।”

सान्या ने मुस्कुराकर कहा, “डैड, आप बस देखिए। मैं यह डील जीतकर दिखाऊंगी।”

सच्चाई का सामना

मीटिंग शुरू हुई। सान्या ने आत्मविश्वास के साथ प्रेजेंटेशन दिया। सब कुछ परफेक्ट था। लेकिन तभी बोर्ड रूम के चेयरपर्सन की कुर्सी घूमी।

सान्या का चेहरा पीला पड़ गया। कुर्सी पर बैठी थी वही लड़की – काव्या शुक्ला। साधारण सलवार-कमीज में दिखने वाली लड़की अब कॉर्पोरेट सूट में थी। उसके नाम के नीचे लिखा था – “सीईओ, सिंधिया ग्रुप।”

काव्या ने शांति से कहा, “आपका प्रोजेक्ट अच्छा है, लेकिन अधूरा है। आपने बजट और लाभ का ध्यान रखा, लेकिन इंसानों का नहीं।”

सान्या की आंखें झुक गईं। वह कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन शब्द नहीं निकले।

काव्या ने गंभीर स्वर में कहा, “हमारा ग्रुप व्यापार का मतलब सिर्फ पैसा नहीं समझता। हम वहां विकास करते हैं, जहां दिल भी जुड़े, ना कि टूटें। आपका प्रोजेक्ट सिर्फ कंक्रीट का जंगल है।”

सबक

मीटिंग खत्म हुई। सान्या ने काव्या से माफी मांगी। काव्या ने मुस्कुराते हुए कहा, “याद है, आपने कहा था कि दिए की रोशनी किसी का आत्मसम्मान बचा लेती है? आज वही दिया आपके अंधेरे को मिटा रहा है।”

उस दिन सान्या ने समझा कि असली अमीरी पैसे में नहीं, इंसानियत में है। उसने खुद से वादा किया कि अब वह हर सफलता में इंसानियत का एक कॉलम जरूर जोड़ेगी।

दिवाली की रात जब सान्या ने एक छोटे बच्चे को दिया जलाते देखा, तो उसने मुस्कुराकर कहा, “जब किसी के दिल का दिया जलाओगे, तो भगवान खुद तुम्हारे दिल में बस जाएंगे।”