हेमा मालिनी: संघर्ष, बगावत और अमर प्रेम की वह दास्तान, जिसने इतिहास रच दिया!

मुंबई: भारतीय सिनेमा के आकाश में कई सितारे चमके और बुझ गए, लेकिन एक नाम ऐसा है जिसकी चमक आज 70 की उम्र पार करने के बाद भी फीकी नहीं पड़ी। वह नाम है— हेमा मालिनी। एक ऐसी महिला जिसने न केवल पर्दे पर ‘बसंती’ और ‘सीता-गीता’ बनकर राज किया, बल्कि अपनी निजी जिंदगी में समाज की बनी-बनाई दीवारों को तोड़कर एक ऐसा रास्ता चुना, जिसकी मिसाल आज भी दी जाती है।

अमनकुड़ी से बॉम्बे तक: रिजेक्शन से ‘सपनों की रानी’ का सफर

हेमा मालिनी की कहानी तमिलनाडु के एक छोटे से गांव अमनकुड़ी से शुरू होती है। 16 अक्टूबर 1948 को एक तमिल ब्राह्मण परिवार में जन्मी हेमा के पैरों में जैसे बचपन से ही घुंघरू बंधे थे। लेकिन बॉलीवुड का सफर इतना आसान नहीं था। 1961 में जब उन्होंने पहली बार एक तमिल फिल्म के लिए ऑडिशन दिया, तो डायरेक्टर ने उन्हें यह कहकर बाहर निकाल दिया कि वे “बहुत पतली” हैं और उनमें एक हीरोइन वाला आकर्षण नहीं है।

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लेकिन हेमा हार मानने वालों में से नहीं थीं। 1968 में फिल्म ‘सपनों का सौदागर’ से उन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा। फिल्म भले ही फ्लॉप रही, लेकिन राज कपूर और देवानंद जैसे दिग्गजों ने उनकी आंखों में वह स्पार्क देख लिया था। जल्द ही वे “ड्रीम गर्ल” बन गईं और बॉम्बे की चकाचौंध में अपनी जगह पक्की कर ली।

वो इश्क जिसने हिंदुस्तान को हिला दिया: धर्मेंद्र और हेमा

हेमा मालिनी के करियर का सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उनकी मुलाकात ‘ही-मैन’ धर्मेंद्र से हुई। 1970 में फिल्म ‘तुम हसीन मैं जवान’ के सेट पर शुरू हुई यह मुलाकात जल्द ही एक बेपनाह मोहब्बत में बदल गई। लेकिन यह प्यार कांटों भरा था। धर्मेंद्र पहले से शादीशुदा थे और उनके दो बेटे (सनी और बॉबी देओल) थे।

समाज और हेमा की मां जया लक्ष्मी इस रिश्ते के सख्त खिलाफ थीं। मां ने हेमा को थप्पड़ तक मारा और धर्मेंद्र से दूर रहने की चेतावनी दी। उधर, धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर ने भी अपना घर टूटने से बचाने की पूरी कोशिश की। लेकिन कहते हैं न कि “इश्क और जंग में सब जायज है”।

निकाह, धर्म परिवर्तन और कानूनी पेच

जब प्यार पर पहरे बढ़ने लगे, तो धर्मेंद्र और हेमा ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने पूरे देश में विवाद खड़ा कर दिया। हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार धर्मेंद्र दूसरी शादी नहीं कर सकते थे। ऐसे में दोनों ने गुपचुप तरीके से इस्लाम कबूल किया। धर्मेंद्र बने ‘दिलावर खान’ और हेमा बनीं ‘आयशा बी रजा’। 1980 में दोनों ने निकाह किया।

इस शादी ने अखबारों की सुर्खियां बटोरीं। किसी ने इसे “पाप” कहा तो किसी ने “साहस”। लेकिन हेमा मालिनी ने कभी किसी को सफाई नहीं दी। उन्होंने अपनी दो बेटियों, ईशा और अहाना, को जन्म दिया और धर्मेंद्र के पहले परिवार का सम्मान करते हुए अपनी एक अलग दुनिया बसाई।

‘शोले’ की बसंती और ‘बागबान’ की गरिमा

हेमा का फिल्मी करियर केवल ग्लैमर तक सीमित नहीं रहा। ‘शोले’ की चुलबुली बसंती हो या ‘सीता और गीता’ का डबल रोल, उन्होंने साबित किया कि वे एक बेहतरीन अदाकारा हैं। जब उम्र बढ़ी, तो उन्होंने ‘बागबान’ जैसी फिल्मों के जरिए अपनी एक नई छवि गढ़ी। आज भी जब वे स्टेज पर भरतनाट्यम करती हैं, तो समय जैसे ठहर जाता है।

राजनीति का नया अध्याय: मथुरा की ‘सांसद’

फिल्मी पर्दे के बाद हेमा ने राजनीति के मैदान में भी अपनी धाक जमाई। भारतीय जनता पार्टी (BJP) से जुड़कर वे लगातार 5 बार मथुरा की सांसद चुनी गईं। कृष्ण की नगरी मथुरा में आज भी लोग उन्हें अपनी ‘लक्ष्मी’ मानते हैं। 77 साल की उम्र में भी वे मथुरा की गलियों में घूमती हैं और जनता की सेवा करती हैं।

निष्कर्ष: खुद से की गई वफा की कहानी

दिसंबर 2025 के इस मोड़ पर खड़े होकर जब हम हेमा मालिनी की ओर देखते हैं, तो पछतावे का कोई निशान नहीं दिखता। वे आज भी उसी बेबाकी से कहती हैं, “मैंने जो चुना, अपने दिल से चुना। मैंने किसी को धोखा नहीं दिया।” तमिलनाडु के उस छोटे से गांव से निकलकर बॉलीवुड की बेताज बादशाह बनने तक का यह सफर केवल सफलता की कहानी नहीं है, बल्कि यह कहानी है एक औरत के स्वाभिमान की, उसके संघर्ष की और सबसे बढ़कर उस अमर प्रेम की, जिसने दुनिया के हर विवाद को छोटा साबित कर दिया।