एक नौकर की निस्वार्थता: करोड़पति की बेटी की जान बचाने की सच्ची कहानी

गुजरात के सूरत शहर में, करोड़पति उद्युक्ति रामविलास वर्मा अपनी पत्नी शकुंतला और इकलौती बेटी स्नेहा के साथ रहते थे। रामविलास एक प्रसिद्ध टेक्सटाइल कारोबारी थे, जो न केवल धनवान थे, बल्कि समाज में भी उनका सम्मान था। लेकिन उनकी खुशियों का संसार तब ध्वस्त हो गया जब उनकी 23 वर्षीय बेटी स्नेहा की दोनों किडनियाँ फेल हो गईं। डॉक्टरों ने बताया कि केवल किडनी ट्रांसप्लांट ही उसकी जान बचा सकता है।

स्नेहा की बीमारी ने परिवार को तोड़ दिया। रामविलास ने सूरत से लेकर मुंबई तक हर अस्पताल में कोशिश की, लेकिन कोई डोनर नहीं मिला। समय बीतने के साथ स्नेहा की हालत बिगड़ती गई। उसे बिस्तर पर रहना पड़ता था और उसकी मुस्कान गायब हो गई थी। उसकी माँ शकुंतला ने उसे सांत्वना देने की कोशिश की, लेकिन वह खुद को असहाय महसूस कर रही थी।

डॉक्टरों ने सलाह दी कि स्नेहा की देखभाल के लिए एक भरोसेमंद अटेंडेंट या नौकर रखना होगा। रामविलास ने अखबार में विज्ञापन दिया, लेकिन हर बार निराश लौटे। एक दिन, रेलवे स्टेशन पर उन्होंने एक दुबले-पतले युवक देवदेव कुमार को देखा, जो काम की तलाश में था। देव ने बताया कि वह बिहार के मधुबनी से आया है और किसी की तकलीफ देखकर उसे चैन नहीं पड़ता। रामविलास ने उसे अपने फार्म हाउस में काम पर रख लिया।

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देव ने स्नेहा की देखभाल शुरू की। शुरुआत में स्नेहा उससे बात नहीं करती थी, लेकिन धीरे-धीरे दोनों के बीच एक गहरा संबंध बन गया। देव ने स्नेहा को बगीचे में ले जाकर मछलियाँ दिखाईं और उसे हंसाने की कोशिश की। स्नेहा ने महसूस किया कि जब देव उसके पास होता है, तो उसकी बीमारी कहीं पीछे छूट जाती है।

एक रात, जब स्नेहा की तबीयत अचानक बिगड़ गई, देव ने घबराकर नर्स और डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने कहा कि अगर देव समय पर न पहुंचता, तो स्नेहा की जान जा सकती थी। उस रात देव ने भगवान से प्रार्थना की कि अगर उसके हिस्से की सांसें स्नेहा को मिल जाएँ, तो वह तैयार है।

कुछ दिन बाद, रामविलास ने सुना कि स्नेहा की जान बचाने के लिए एक डोनर की जरूरत है। देव ने उनसे कहा कि वह अपनी किडनी देने के लिए तैयार है। रामविलास ने पहले तो सोचा कि देव मजाक कर रहा है, लेकिन देव की गंभीरता देखकर उनकी आंखों में आंसू आ गए। देव ने कहा, “साहब, मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन उसे बचाने के लिए बहुत कुछ है।”

डॉक्टरों ने देव और स्नेहा की जांच की। चमत्कार हुआ—उनका ब्लड ग्रुप मैच कर गया। ऑपरेशन सफल रहा, और स्नेहा ने नई जिंदगी पाई। देव ने महसूस किया कि उसने किसी और की नहीं, बल्कि अपनी ही जिंदगी को बचाया है। स्नेहा और देव के बीच का रिश्ता अब और भी गहरा हो गया था।

स्नेहा ने धीरे-धीरे अपनी सेहत वापस पाई और देव के साथ समय बिताने लगी। दोनों के बीच एक नया रिश्ता विकसित हुआ, जो प्यार और सम्मान पर आधारित था। स्नेहा ने अपने पिता से कहा, “मैंने उस इंसान से प्यार किया है जिसने मुझे नई जिंदगी दी।”

समाज की बातें शुरू हो गईं। स्नेहा के रिश्तेदारों ने देव के साथ उसकी दोस्ती पर सवाल उठाए। लेकिन रामविलास ने अपनी बेटी का समर्थन किया। उन्होंने कहा, “अगर मेरी बेटी को किसी गरीब में भगवान दिखता है, तो मुझे गर्व है।”

कुछ महीनों बाद, स्नेहा और देव ने शादी कर ली। यह एक ऐसा रिश्ता था जो इंसानियत की मिसाल बन गया। रामविलास ने अपनी बेटी का नाम कृतिका रखा, जिसका अर्थ है ‘कृतज्ञता’।

यह कहानी हमें सिखाती है कि असली अमीर वही है, जो दूसरों की जान बचाने की हिम्मत रखता है। देव ने साबित किया कि इंसानियत का कोई धर्म, जाति या दर्जा नहीं होता। इस सच्ची कहानी ने न केवल सूरत शहर, बल्कि पूरे समाज को एक नई दिशा दी, जहां प्यार और त्याग को सबसे बड़ा धर्म माना गया।

इसलिए, अगर आप भी मानते हैं कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है, तो इस कहानी को साझा करें और अपने दिल की बात व्यक्त करें।