पर्देश में मजदूर की कहानी: एक दिल को छू लेने वाला वाकया
रवेश नायर, एक हिंदुस्तानी नौजवान, अपनी खूबसूरत और सादा मिजाज पत्नी आशा वर्मा के साथ रोजगार की तलाश में सऊदी अरब पहुंचता है। शादी को अभी दो महीने भी नहीं हुए थे, लेकिन उनकी जिंदगी में सुख-शांति का एक नया अध्याय शुरू होने वाला था। आशा की खूबसूरती ऐसी थी कि जिसे भी देखता, एक पल के लिए ठहर जाता। उसकी मासूमियत और सादगी ने हर किसी का दिल जीत लिया था।
रवेश ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से एक इलेक्ट्रिकल सुपरवाइजर के पद तक पहुंचा था। लेकिन वहां का माहौल कुछ और ही था। कंपनी का मालिक, शेख फहद बिन खालिद, एक अमीर और घमंडी आदमी था। जब उसने पहली बार आशा को देखा, तो उसकी नजरें ठहर गईं। आशा की मासूमियत और शर्म ने शेख के दिल में एक गहरी ख्वाहिश जगा दी।
पारिवारिक सुख और दुख
रवेश और आशा की जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था। वे दोनों एक छोटे से कमरे में रहते थे, जहां वे शाम को चाय पीते और अपने गांव की बातें करते। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था। एक रात, जब रवेश काम से लौटता है, तो उसे आशा का कहीं पता नहीं चलता। उसका दिल तेजी से धड़कने लगता है।

जब उसने अपने सहकर्मियों से पूछा, तो एक बांग्लादेशी मजदूर ने बताया कि शेख फहद खुद एक बड़ी गाड़ी में आया था और उसने आशा को अपने साथ ले लिया। यह सुनकर रवेश के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह घबराकर अपने मैनेजर जतन पिल्ली को फोन करता है, लेकिन जतन की आवाज में भी एक अजीब सी लाचारी थी।
खुद को संभालना
रवेश ने अपने दिल में ठान लिया कि वह अपनी पत्नी को वापस लाएगा। वह जानता था कि सऊदी अरब में लेबर कैटेगरी में आने वालों को अपनी बीवी को साथ रखने की इजाजत नहीं होती। लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह अपने मैनेजर से बात करता है और जतन उसकी मदद करने की कोशिश करता है।
कुछ दिनों बाद, जतन ने शेख से बात की और आशा को दुबई लाने का रास्ता निकाला। जब आशा दुबई पहुंची, तो रवेश की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उन्होंने एक छोटे से फ्लैट में नई जिंदगी की शुरुआत की, जहां प्यार और सुकून लौट आया था।
खुशियों का पल
कुछ दिन बाद, जतन ने रवेश से कहा कि वह आशा के हाथ का खाना खाने के लिए उसके घर आना चाहता है। रवेश और आशा ने मिलकर एक शानदार दावत की तैयारी की। जतन और उसके साथी आए और सबने मिलकर खाना खाया। लेकिन जतन की नजरें हमेशा आशा पर टिकी रहती थीं।
खाने के बाद, जतन ने आशा को शगुन के तौर पर पैसे दिए। यह रवेश को अजीब लगा, लेकिन उसने बात को टाल दिया। फिर कुछ दिनों बाद, कंपनी की मीटिंग में जब जतन ने शेख से रवेश की बीवी की तारीफ की, तो शेख ने भी उसे देखने की इच्छा जताई।
खतरनाक गेम
जब शेख ने रवेश के घर डिनर पर आने का फैसला किया, तो रवेश घबरा गया। उसे डर था कि कहीं शेख की नजर आशा पर न पड़ जाए। लेकिन अब कुछ कर भी नहीं सकता था। डिनर का दिन आया, और शेख ने आशा को देखते ही उसकी खूबसूरती की तारीफ की।
लेकिन उसके मन में कुछ और ही था। डिनर के बाद, शेख ने आशा को एक हीरे की अंगूठी दी, जो उसने खुशी के तौर पर दी थी। इस पर रवेश ने घबरा कर कहा कि इसकी जरूरत नहीं थी, लेकिन आशा ने दबे दिल से अंगूठी कबूल कर ली।
आशा का अपहरण
कुछ दिनों बाद, जब रवेश काम पर गया, तब शेख ने आशा को अपने विला बुलाया। आशा ने रवेश को फोन किया और कहा कि वह डर रही है। रवेश ने उसे कहा कि दरवाजा बंद रखो और किसी बात पर हां मत कहना। लेकिन जब रवेश काम से लौटा, तो आशा वहां नहीं थी।
रवेश ने अपने सहकर्मी जतन को फोन किया, जिसने उसे बताया कि आशा शेख के पास है। रवेश का खून खौल उठा। उसने जतन से कहा कि वह पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएगा, लेकिन जतन ने उसे रोका।
अंतिम संघर्ष
आखिरकार, तीन दिन बाद आशा घर लौटी, लेकिन उसकी हालत देखकर रवेश का दिल टूट गया। आशा ने बताया कि शेख ने उसके साथ बर्बरता की थी। यह सुनकर रवेश की आंखों में आंसू आ गए।
उन्होंने तय किया कि वे अब यहां नहीं रह सकते। उन्होंने जतन से अपने पैसे वापस लेने की कोशिश की, लेकिन शेख ने उन्हें रोक दिया।
आखिरकार, रवेश और आशा ने दुबई छोड़ने का फैसला किया और भारत लौट आए। अब वे अपने गांव में रह रहे हैं, लेकिन उस दिन की यादें आज भी उन्हें परेशान करती हैं।
सीख और संदेश
यह कहानी सिर्फ एक जोड़े की नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की है जो बेहतर जिंदगी की तलाश में परदेश जाते हैं। यह हमें यह सिखाती है कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और कभी भी किसी के सामने झुकना नहीं चाहिए।
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