पूरी क्लास ने भिखारी की बेटी का मज़ाक उड़ाया, लेकिन छुट्टी से पहले जो हुआ उसने सबको रुला दिया!

राजस्थान के एक छोटे से कस्बे में एक स्कूल की घटना आज पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है। वहाँ की एक मासूम बच्ची — आयशा — को उसकी गरीबी की वजह से पूरी क्लास ने अपमानित किया। लेकिन छुट्टी से पहले जो सच सामने आया, उसने न सिर्फ बच्चों की सोच बदल दी बल्कि पूरे स्कूल को हिला कर रख दिया।

आयशा हर दिन फटे कपड़ों में स्कूल आती थी। उसके जूते पुराने थे, बाल बिखरे हुए रहते, और टिफिन में कभी सिर्फ एक सूखी रोटी होती। बाकी बच्चे उसे “भिखारी की बेटी” कहकर चिढ़ाते थे। क्लास के अमीर बच्चों को उसके पास बैठना भी पसंद नहीं था। यहाँ तक कि कई टीचर्स भी उसे नज़रअंदाज़ कर देते थे।

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एक दिन गणित की क्लास में, जब टीचर ने पूछा कि किसके पास नया पेंसिल बॉक्स है, तो आयशा ने कहा, “मेरे पास नहीं है, लेकिन मैं अपनी पुरानी पेंसिल से काम चला लूंगी।” पूरी क्लास ठहाका मारकर हँस पड़ी। किसी ने कहा — “क्यों ना भिखारी के पापा से नया मंगवा ले?”
वो पल आयशा की आंखों में तैर गया, लेकिन उसने जवाब नहीं दिया। बस मुस्कराई और अपनी कॉपी पर झुक गई।

अगले दिन स्कूल में एक विशेष कार्यक्रम रखा गया — “मदर्स डे सेलिब्रेशन”। सभी बच्चों की माताएं आईं, सुंदर कपड़ों में, गिफ्ट्स लेकर। लेकिन आयशा की माँ नहीं आई। बच्चे फिर हँसने लगे — “भिखारी की माँ भीख मांगने गई होगी!”
टीचर कुछ कह पातीं उससे पहले ही स्कूल प्रिंसिपल कमरे में दाख़िल हुए। उनके चेहरे पर सख़्ती थी।

उन्होंने कहा — “जो लोग दूसरों की गरीबी पर हँसते हैं, वो असली शिक्षित नहीं कहलाते।”


फिर उन्होंने सबको चुप रहने को कहा और धीरे-धीरे आयशा के पास गए।

“बेटा, क्या तुम सबको बताना चाहोगी कि तुम्हारे पिता कौन हैं?”
आयशा ने सिर झुका लिया। आँसू उसकी गालों पर बह रहे थे। प्रिंसिपल ने खुद आगे बढ़कर कहा —
“मैं बताता हूँ। आयशा के पिता वही हैं जिन्होंने इस स्कूल की नींव रखी थी। लेकिन जब स्कूल को बचाने के लिए किसी को आगे आना था, तब उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान में दे दी। आज वे बीमार हैं, और अपनी बाकी ज़िंदगी सादगी में बिता रहे हैं।”

कमरा सन्नाटा हो गया। जो बच्चे अब तक हँस रहे थे, उनकी आंखें नीचे झुक गईं। किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
आयशा अब भी रो रही थी, मगर इस बार शर्म से नहीं — गौरव से।

प्रिंसिपल ने कहा —
“गरीबी कभी शर्म की बात नहीं होती। शर्म तो तब होती है जब अमीरी के बावजूद इंसानियत मर जाती है।”

उस दिन स्कूल में एक नई सीख मिली — कि इंसान की कीमत उसके कपड़ों से नहीं, उसके कर्मों से तय होती है।
क्लास के वही बच्चे, जिन्होंने उसे चिढ़ाया था, अब आयशा के पास आए और माफ़ी मांगी। किसी ने उसे नया बैग दिया, किसी ने पेंसिल बॉक्स। लेकिन सबसे बड़ी चीज़ जो आयशा को मिली — वो थी सम्मान।

आज भी जब उस स्कूल में नए बच्चों को पढ़ाया जाता है, तो टीचर्स आयशा की कहानी सुनाते हैं — ताकि कोई भी बच्चे के कपड़ों पर नहीं, उसकी मेहनत और दिल पर ध्यान दे।

और हाँ, छुट्टी की घंटी बजने से पहले — वही बच्चे जिन्होंने कभी उसे ‘भिखारी की बेटी’ कहा था — अब तालियाँ बजा रहे थे उसके लिए।
क्योंकि उस दिन आयशा ने सबको सिखा दिया कि गरीबी कभी हार नहीं होती, इंसानियत ही असली दौलत है।