बिहार चुनाव: बदलाव की लहर या पुरानी सत्ता का अंत?

बिहार की मिट्टी हर बार चुनावी मौसम में एक नई कहानी बुनती है। इस बार भी कुछ अलग नहीं था। सुबह-सुबह गाँव की गलियों में चहल-पहल थी, बूथों पर लंबी कतारें थीं और लोगों के चेहरों पर उम्मीदें भी। लेकिन इस बार कुछ बदला-बदला सा था।
65% से ज्यादा वोटिंग, जो पिछले चुनावों से कहीं ज्यादा थी। हर कोई यही पूछ रहा था—किधर जा रहा है बिहार? कौन जीत रहा है पहला चरण? किसने बाजी मारी है?

हमारे न्यूज़ रूम में माहौल गर्म था। पत्रकारों की टीम लगातार हर जिले, हर सीट की रिपोर्टिंग कर रही थी। भरत जी, चंद्रकांत जी, महिमा, अवंतिका और गौरी—सबके पास अपनी-अपनी कहानियाँ थीं। भरत जी ने सबसे पहले कहा, “देखिए, वोट टर्न आउट बिल्कुल अलग कहानी बयां कर रहा है। 8% वोट बढ़ चुका है पिछली बार की तुलना में। जब वोटिंग टर्न आउट बढ़ता है, तो यह बदलाव की ओर इशारा करता है।”

.

.

.

चंद्रकांत जी ने बताया, “सुबह तो सब शांत था, लेकिन 10:30 बजे के बाद वोटर्स का हुजूम उमड़ पड़ा। नाराज़गी दिखी, गुस्सा फूटा। लखीसराय में विजय सिन्हा के काफिले पर गोबर फेंका गया, नारे लगे। बीजेपी और जेडीयू के कार्यकर्ता मैदान में एक नहीं थे। इसका नुकसान एनडीए को उठाना पड़ेगा।”

महिमा ने लालगंज का किस्सा सुनाया, “वहाँ ईवीएम बदलने की कोशिश हो रही थी। आरजेडी प्रत्याशी शिवानी शुक्ला ने विरोध किया। दूसरी जगह बीजेपी प्रत्याशी को जनता ने पोलिंग बूथ से भगा दिया। ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ के नारे लगे। लखीसराय में डिप्टी सीएम की गाड़ी पर गोबर फेंका गया, जनता ने मुर्दाबाद के नारे लगाए।”

अवंतिका ने बताया, “इस बार गरीब, पिछड़े समाज के लोग वोट डालने पहुँचे तो पता चला उनके वोट पहले ही डाले जा चुके हैं। दानापुर में आरजेडी समर्थकों को प्रशासन ने रोक दिया। वोट चोरी का मुद्दा युवाओं में आग की तरह फैल गया है। कई जगह भाजपा के प्रत्याशियों के खिलाफ नारेबाजी हुई।”

गौरी ने सिवान का हाल बताया, “वहाँ वोट बहिष्कार हुआ, लोग विधायक से नाराज़ थे। सड़कों की हालत इतनी खराब थी कि डिप्टी सीएम की गाड़ी कीचड़ में फंस गई। लोगों ने विरोध में गोबर फेंका। डिप्टी सीएम विजय सिन्हा खुद बोल रहे थे कि गांव वाले मुझे घुसने नहीं दे रहे।”

भरत जी ने विश्लेषण दिया, “इस बार वोटिंग का प्रतिशत इतना बढ़ा है कि सत्ता परिवर्तन लगभग तय है। भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ गुस्सा फूट पड़ा है। लोग अब ‘भविष्य में करेंगे’ वाली बातों पर विश्वास नहीं करते। जनता ने सब्र खो दिया है।”

चंद्रकांत जी ने कहा, “पहले नंबर पर आरजेडी और जेडीयू की लड़ाई है। बीजेपी तीसरे नंबर पर खिसक गई है। ऐसा लग रहा है कि सब मिलकर बीजेपी को हटाने की कोशिश कर रहे हैं।”

गौरी बोली, “युवा वोटर्स और महिला वोटर्स दोनों ही आरजेडी के पक्ष में हैं। नौकरी, विकास, पलायन जैसे मुद्दे इस बार चुनाव में हावी हैं। लालटेन और तीर का गठजोड़ मजबूत दिख रहा है।”

महिमा ने जोड़ा, “बीजेपी की तरफ से प्रत्याशियों को बार-बार बहिष्कार झेलना पड़ा। जनता ने साफ कह दिया—‘आपको वोट नहीं देंगे।’ जंगल राज की कहानियाँ अब लोगों को डराती नहीं, उन्हें रोज़गार, सड़क, शिक्षा चाहिए।”

अवंतिका का अनुमान था, “पहले चरण में महागठबंधन आगे है। बीजेपी तीसरे नंबर पर है। जनता अब जागरूक है, मुद्दों पर वोट कर रही है।”

हर पत्रकार की बातों में एक ही संदेश था—बिहार बदलाव चाहता है। जनता अब पुराने वादों, खोखले सपनों से ऊब चुकी है। उन्हें रोटी, रोजगार, सड़क चाहिए।
डिप्टी सीएम की हालत देखकर साफ लग रहा था कि सत्ता का अहंकार टूट चुका है। जनता अब जवाब मांग रही है।

चुनाव का पहला चरण खत्म हुआ, लेकिन सवाल बाकी रह गए—क्या बिहार सच में बदलने जा रहा है? क्या पुरानी सत्ता का अंत हो गया?
क्या जनता को मिलेगा उनका हक, उनका भविष्य?
क्या राजनीतिक दल अब वाकई जनता के मुद्दों पर काम करेंगे या फिर वही पुराने वादे, वही झूठी तसल्ली?

चुनावी मैदान में इस बार बिहार ने दिखा दिया है कि बदलाव की लहर सिर्फ हवा में नहीं, ज़मीन पर भी महसूस की जा सकती है।
हर वोट, हर नारा, हर बहिष्कार एक नई कहानी कहता है।

अंत में, बिहार की जनता ने यह साबित कर दिया कि अगर वे ठान लें, तो सत्ता के सबसे बड़े किले भी गिर सकते हैं।
अब देखना है, दूसरा चरण क्या रंग लाता है।
क्या वाकई बिहार में बदलाव की सुबह होने वाली है, या फिर एक और बार जनता को इंतजार करना पड़ेगा?