बेघर बहन की करुण पुकार और करोड़पति की बदलती जिंदगी – दिल छू लेने वाली कहानी
मुंबई की सर्द और भीगी सुबह। गलियों में रोज़ की हलचल थी, लोग अपने-अपने काम में व्यस्त थे। लेकिन उस दिन कुछ अलग था। एक छोटी सी लड़की, अंजलि, अपनी छोटी बहन के अंतिम संस्कार के लिए लोगों से मदद की गुहार लगा रही थी। उसकी आंखों में मासूमियत और दर्द का ऐसा संगम था, जिसे अनदेखा करना नामुमकिन था। तभी वहां से गुजर रहे राजेश शर्मा, एक बड़े आईटी कंपनी के मालिक, की नजर उस बच्ची पर पड़ी। राजेश की दुनिया सफलताओं से भरी थी, लेकिन दिल में पत्नी सीता की मौत का खालीपन था।
अंजलि की आवाज सड़क के शोर में दब गई थी, लेकिन उसका दर्द राजेश के दिल तक पहुंच गया। वह गली के उस कोने में पहुंचे, जहां अंजलि अपनी बहन रिया को गोद में लिए बैठी थी। रिया का चेहरा ठंडा और बेरंग था, जैसे उसमें जीवन बचा ही न हो। अंजलि ने कांपती आवाज में कहा, “अंकल, क्या आप मेरी छोटी बहन को दफना देंगे? मेरे पास पैसे नहीं हैं, लेकिन मैं बड़ा होकर आपको जरूर चुकाऊंगी।” राजेश का दिल पसीज गया। उन्होंने रिया की नाड़ी टटोली, और चमत्कारिक रूप से उसमें हल्की सी धड़कन महसूस हुई। रिया मरी नहीं थी!
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राजेश ने तुरंत अस्पताल फोन किया और बच्चियों को अपनी कार में बैठाकर वहां पहुंचाया। डॉक्टरों ने रिया को आईसीयू में भर्ती किया। अंजलि घबराई हुई थी, लेकिन राजेश ने उसे भरोसा दिलाया – सब ठीक हो जाएगा। अस्पताल में रात भर राजेश और अंजलि ने इंतजार किया। राजेश के मन में सीता की यादें उमड़ आईं, लेकिन अब वह हार मानने को तैयार नहीं थे। डॉक्टर ने सुबह बताया कि रिया की हालत अब स्थिर है, खतरा टल गया है।
अंजलि और रिया के मां-बाप एक फैक्ट्री हादसे में गुजर चुके थे। दोनों बहनें सड़क पर बेसहारा थीं। राजेश ने तय किया कि वह इन बच्चियों को अकेला नहीं छोड़ेंगे। लेकिन कानून की दीवारें सामने थीं। सोशल वर्कर मीरा सिंह ने बताया कि बच्चों को गोद लेने के लिए एजेंसी की जांच होगी, कोर्ट में बयान देने होंगे। राजेश ने सब सहा, अंजलि का हाथ थामे रखा। कोर्ट में मजिस्ट्रेट ने अंजलि से पूछा, “तुम क्या चाहती हो?” अंजलि की आवाज कांपती थी, लेकिन उसमें हौसला था – “मैं इनके साथ रहना चाहती हूं।”
राजेश ने कोर्ट में सबके सामने अपनी भावनाएं रखीं। उन्होंने कहा, “मैंने अपनी पत्नी को खोया, लेकिन अब मैं इन बच्चों के लिए लड़ूंगा।” कोर्ट ने भावनात्मक बंधन और बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए, राजेश को उनकी अस्थाई हिरासत दे दी। अंजलि राजेश की गोद में गिर पड़ी, आंखों में आंसू, लेकिन दिल में राहत।
घर पहुंचते ही राजेश ने दोनों बहनों के लिए नया जीवन शुरू किया। बगीचे में खेलने, स्कूल जाने और परिवार की गर्माहट महसूस करने लगीं। राजेश के घर में चहल-पहल लौट आई। पहली बार उन्हें लगा कि उनका बंगला अब घर बन गया है। अंजलि ने स्कूल से लौटकर ड्राइंग शीट दिखाई – “अंकल, देखो, मैंने हमारे घर की तस्वीर बनाई।”
कुछ महीनों बाद कोर्ट ने स्थायी हिरासत का आदेश दिया। अब अंजलि और रिया, राजेश की बेटियां बन गईं। सीता की तस्वीर के सामने दिया जलाया, और राजेश ने महसूस किया कि परिवार अब पूरा हो गया है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची सफलता करोड़ों के सौदों में नहीं, बल्कि किसी टूटे दिल की पुकार सुनने और उसे नया जीवन देने में है। जब आप किसी बेसहारा को सहारा देते हैं, तो अपने जीवन की भी मरम्मत करते हैं। प्रेम, परिवार और विश्वास – यही असली सुख है।
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