नफरत की सरहदें पार कर गई मासूमियत: भारतीय सेना ने दिखाई इंसानियत की मिसाल

कश्मीर की पहाड़ियों में बकरियों को चराते हुए एक 15 साल की पाकिस्तानी लड़की सलमा अनजाने में नियंत्रण रेखा पार कर भारत आ गई। सलमा की दुनिया सिर्फ उसकी बकरियों, परिवार और पहाड़ों तक ही सीमित थी। लेकिन एक दिन उसकी सबसे प्यारी बकरी ‘नूरी’ झुंड से अलग होकर काली पहाड़ी की ओर भाग गई। सलमा उसे ढूंढते-ढूंढते उस सरहद को पार कर गई जिसे दुनिया नियंत्रण रेखा कहती है।

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सरहद के इस पार, भारतीय सेना की टाइगर हिल पोस्ट पर मेजर विक्रम सिंह और उनके जवान देश की सुरक्षा में तैनात थे। सुबह गश्त के दौरान उन्होंने एक पेड़ के नीचे ठंड से कांपती सलमा को देखा। पहले तो जवान सतर्क हो गए, लेकिन जब उन्होंने सलमा की आंखों में डर और मासूमियत देखी तो उनके दिल पसीज गए। उन्होंने बंदूकें नहीं, अपने दिल के दरवाजे खोल दिए। सलमा को पानी, खाना और गर्म कपड़े दिए। उसने पहली बार चॉकलेट का स्वाद चखा और फौजियों की इंसानियत को महसूस किया।

मेजर विक्रम के सामने चुनौती थी – प्रोटोकॉल के अनुसार सलमा को अधिकारियों को सौंपना था, जिससे लंबी कानूनी प्रक्रिया शुरू होती। लेकिन उन्होंने इंसानियत को कानून से ऊपर रखा और सलमा को सुरक्षित उसके परिवार तक पहुंचाने का फैसला किया। कड़ी कोशिशों के बाद, भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच संपर्क हुआ। तय हुआ कि अगले दिन नो मैन्स लैंड पर सलमा को उसके माता-पिता को सौंपा जाएगा।

अगली सुबह, सलमा को लेकर भारतीय सेना की जीप अमन सेतु पहुंची। सलमा की आंखों में आंसू थे, लेकिन उसके दिल में भारतीय जवानों के लिए सम्मान और प्यार था। सरहद के उस पार उसके माता-पिता बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जैसे ही सलमा अपने अब्बू-अम्मी से मिली, पूरा माहौल भावुक हो गया। दोनों देशों के जवानों की आंखें भी नम थीं। कैप्टन बिलाल ने मेजर विक्रम को सैल्यूट किया – यह सैल्यूट इंसानियत को था।

इस घटना ने साबित कर दिया कि असली सरहदें जमीन पर नहीं, दिलों में होती हैं। भारतीय सेना ने दिखाया कि वे सिर्फ देश की जमीन ही नहीं, बल्कि इंसानियत के भी सच्चे रक्षक हैं। नफरत की आग में मोहब्बत और रहमदिली का पुल बनाकर उन्होंने दुनिया को इंसानियत का सबसे बड़ा सबक दिया।

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