संजय कपूर की विरासत पर छिड़ा संग्राम: रानी कपूर के खुलासे ने परिवार में मचाया भूचाल
भूमिका
बॉलीवुड की चमक-दमक के पीछे कई बार ऐसी कहानियाँ छुपी होती हैं, जिनमें भावनाएँ, लालसा, शक्ति और न्याय का संघर्ष चलता रहता है। हाल ही में 12 जून 2025 को करिश्मा कपूर के पूर्व पति और ऑटोमोटिव क्षेत्र के प्रमुख व्यवसायी संजय कपूर की अचानक मृत्यु ने पूरे देश को झकझोर दिया। उनकी मौत के बाद परिवार में विरासत को लेकर जो विवाद शुरू हुआ, उसने न सिर्फ कपूर खानदान बल्कि पूरे बिजनेस जगत को हिला कर रख दिया।
संजय कपूर की संपत्ति, जिसकी कीमत करोड़ों में आंकी जा रही है, अब कानूनी लड़ाई और भावनात्मक ड्रामे का केंद्र बन गई है। इस विवाद में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब उनकी मां रानी कपूर ने बंद कमरे में दस्तावेजों पर सिग्नेचर लेने की साजिश का खुलासा किया। आइए, जानते हैं इस पूरे विवाद की परतें, परिवार के भीतर चल रही राजनीति, और आखिरकार किसकी जीत होती है—लालसा या न्याय?
संजय कपूर: एक सफल व्यवसायी और जटिल पारिवारिक जीवन
संजय कपूर का नाम देश के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में शुमार है। वे सोना कॉमस्टर ग्रुप के चेयरमैन थे, जिनकी कंपनी ऑटोमोटिव क्षेत्र में अग्रणी थी। उनकी व्यक्तिगत संपत्ति का मूल्य ₹10,300 करोड़ से भी अधिक बताया जाता है।
संजय कपूर ने तीन शादियाँ की थीं। पहली शादी डिजाइनर नंदिता मेहतानी से, दूसरी शादी बॉलीवुड अभिनेत्री करिश्मा कपूर से, और तीसरी शादी मॉडल व उद्यमी प्रिया सचदेव से। करिश्मा कपूर के साथ उनकी शादी सबसे ज्यादा सुर्खियों में रही। दोनों के दो बच्चे—समायरा और किियान—हैं। तलाक के बाद बच्चों की कस्टडी करिश्मा को मिली। प्रिया सचदेव से शादी के बाद उनका एक बेटा अजियास और प्रिया की पहली शादी से एक बेटी सफीरा भी परिवार का हिस्सा बनी।
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अचानक मौत और संपत्ति विवाद की शुरुआत
12 जून 2025 को इंग्लैंड में पोलो मैच के दौरान संजय कपूर की अचानक मौत हो गई। उनके निधन को हार्ट अटैक बताया गया, लेकिन परिवार में विरासत को लेकर तूफान आ गया। करोड़ों की संपत्ति, शेयरों और कंपनी के नियंत्रण को लेकर परिवार के सदस्य आमने-सामने आ गए।
संजय कपूर की मौत के बाद उनका परिवार दो धड़ों में बंट गया—एक ओर उनकी मां रानी कपूर, दूसरी ओर उनकी तीसरी पत्नी प्रिया सचदेव कपूर। इसी बीच एक नाटकीय घटना सामने आई जब प्रिया की पहली शादी से हुई बेटी सफीरा ने अपना सरनेम बदल लिया। यह बदलाव संजय कपूर की संपत्ति के लिए हो रही लड़ाई का संकेत था।
रानी कपूर का भावुक खुलासा
संजय कपूर की मां रानी कपूर ने एक भावुक पत्र लिखकर परिवार में चल रही राजनीति और साजिशों का पर्दाफाश किया। उन्होंने आरोप लगाया कि परिवार के स्वामित्व वाली सोना कॉमस्टर कंपनी की वार्षिक आम बैठक से ठीक पहले उन्हें बंद दरवाजों के पीछे दस्तावेजों पर सिग्नेचर करने के लिए मजबूर किया गया।
रानी कपूर ने लिखा, “जब मैं अपने बेटे की मौत के शोक में थी, तभी बिना किसी स्पष्टीकरण के विभिन्न दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया गया। मुझे जिंदा रहने के लिए कुछ लोगों की दया पर छोड़ दिया गया।” उन्होंने खुद को सोना ग्रुप ऑफ कंपनीज की बहुसंख्यक शेयरधारक बताया और कहा कि उनके दिवंगत पति द्वारा छोड़ी गई वसीयत के आधार पर वे कंपनी में परिवार के हितों की एकमात्र प्रतिनिधि हैं।
रानी कपूर ने यह पत्र न सिर्फ बोर्ड शेयरधारकों को भेजा, बल्कि बाजार नियामक सेबी को भी भेजा। उनके इस कदम ने प्रमोटर्स के बीच टकराव को और बढ़ा दिया। इससे सोना बीएलडब्ल्यू प्रसीजन फर्जिंग लिमिटेड के शेयरों में 2.6% की गिरावट देखी गई।

कंपनी बोर्ड में उठे सवाल
रानी कपूर ने कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के फैसलों पर भी सवाल उठाए। सूत्रों के मुताबिक, उनका इशारा बहू प्रिया सचदेव कपूर की ओर था, जिन्हें बोर्ड में नियुक्त किया गया था। रानी कपूर ने लिखा कि परिवार की ओर से बोलने का दावा दबाव में तैयार किए गए दस्तावेजों पर आधारित है। उन्होंने वार्षिक आम बैठक को दो हफ्तों के लिए स्थगित करने की मांग की।
अपने पत्र में रानी कपूर ने लिखा, “बेहद मानसिक और भावनात्मक तनाव में होने के बावजूद मुझे बंद दरवाजों के पीछे ऐसे दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया गया। मैंने बार-बार अनुरोध किया, बावजूद इसके मुझे दस्तावेजों के अंदर निहित विषयवस्तु की जानकारी नहीं दी गई।”
विरासत की जंग: भावनाएँ और कानून आमने-सामने
संपत्ति की लड़ाई अब सिर्फ पैसों की नहीं रह गई थी। इसमें भावनाएँ, रिश्ते, और कानूनी पेचीदगियाँ भी शामिल हो गई थीं। करिश्मा कपूर की चिंता थी कि उनके बेटे किियान का भविष्य सुरक्षित रहे। वहीं, प्रिया सचदेव कपूर अपनी और अपने बेटे अजियास के अधिकारों के लिए लड़ रही थीं। सफीरा का सरनेम बदलना भी इस जंग का हिस्सा बन गया।
रानी कपूर ने अपनी बहुसंख्यक शेयरधारिता का दावा करते हुए कंपनी के नियंत्रण के लिए मोर्चा खोल दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी भावनात्मक स्थिति का फायदा उठाकर दस्तावेजों पर सिग्नेचर करवाए गए।
कानूनी लड़ाई की शुरुआत
संपत्ति विवाद कोर्ट तक पहुँच गया। रानी कपूर ने कंपनी बोर्ड के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की तैयारी शुरू की। उन्होंने पुराने दस्तावेज, वसीयत और शेयरहोल्डिंग के रिकॉर्ड पेश किए। दूसरी ओर, प्रिया सचदेव कपूर ने नई वसीयत और दस्तावेजों के आधार पर अपने अधिकार जताए।
कंपनी बोर्ड ने रानी कपूर के आरोपों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन शेयर बाजार में गिरावट ने विवाद की गंभीरता को उजागर कर दिया। मीडिया ने इस लड़ाई को ‘संपत्ति युद्ध’ और ‘पारिवारिक ड्रामा’ करार दिया।
भावनात्मक तनाव और परिवार में बिखराव
इस विवाद के बीच परिवार के सदस्य भावनात्मक रूप से टूट गए। करिश्मा कपूर अपने बच्चों के साथ दिल्ली एयरपोर्ट पर नजर आईं, जिससे यह संकेत मिला कि वह भी संपत्ति विवाद के मद्देनजर दिल्ली पहुंची हैं।
रानी कपूर का पत्र पढ़कर परिवार के पुराने सदस्य भी हैरान रह गए। उन्होंने लिखा, “मैं अपने बेटे की मौत के शोक में थी, लेकिन मेरे साथ अन्याय हुआ। मुझे कंपनी के हितों की रक्षा करनी है, क्योंकि मैं परिवार की एकमात्र जिम्मेदार व्यक्ति हूं।”
मीडिया और समाज में चर्चा
संजय कपूर की विरासत विवाद ने मीडिया में खूब सुर्खियाँ बटोरीं। सोशल मीडिया पर लोग अपनी राय देने लगे। कुछ ने रानी कपूर के साहस की तारीफ की, तो कुछ ने प्रिया सचदेव की रणनीति को लेकर सवाल उठाए।
शेयर बाजार में सोना ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में गिरावट आई, जिससे निवेशकों की चिंता बढ़ गई। कंपनी बोर्ड ने अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया, जिससे अफवाहों का बाजार गर्म हो गया।
निष्कर्ष: न्याय, लालसा और रिश्तों की असली परीक्षा
संजय कपूर की मौत के बाद उनकी संपत्ति को लेकर छिड़ी जंग सिर्फ पैसों की नहीं, बल्कि भावनाओं, रिश्तों और न्याय की भी है। रानी कपूर ने अपने बेटे की विरासत के लिए लड़ाई शुरू की, जबकि प्रिया सचदेव कपूर ने अपने अधिकारों के लिए मोर्चा खोला। करिश्मा कपूर अपने बच्चों के भविष्य की चिंता में जुट गईं।
इस जंग में कई सवाल उठे—क्या बंद दरवाजों के पीछे दस्तावेजों पर सिग्नेचर करवाना सही था? क्या परिवार के हितों की रक्षा के लिए भावनाओं का शोषण हुआ? क्या कानून और न्याय अंत में जीतेंगे, या लालसा और चालाकी का बोलबाला रहेगा?
पाठकों के लिए संदेश
यह कहानी हमें सिखाती है कि विरासत, संपत्ति और अधिकार की लड़ाई में सबसे अहम है—न्याय, संवेदनशीलता और पारदर्शिता। परिवार में मतभेद हों तो भी प्यार और सच्चाई की जीत होती है। रानी कपूर का साहस, करिश्मा कपूर की चिंता, प्रिया सचदेव की रणनीति—हर किरदार ने अपनी भूमिका निभाई।
अब देखना यह है कि कोर्ट और कानून किसके पक्ष में फैसला सुनाते हैं। क्या रानी कपूर अपने बेटे की विरासत बचा पाएंगी? क्या प्रिया सचदेव अपने अधिकारों की रक्षा कर पाएंगी? क्या करिश्मा कपूर अपने बेटे का भविष्य सुरक्षित कर पाएंगी?
इस विवाद का अंत चाहे जो भी हो, यह कहानी हमेशा याद दिलाएगी कि रिश्तों में लालसा और चालाकी से ज्यादा महत्वपूर्ण है—न्याय, संवेदनशीलता और सच्चाई।
अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो कमेंट में अपनी राय जरूर साझा करें। क्या आप रानी कपूर के पक्ष में हैं या प्रिया सचदेव के? अपनी प्रतिक्रिया जरूर दीजिए।
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