अपमान से सफलता तक: कविता वर्मा की कहानी, जो हर कॉरपोरेट को सीखना चाहिए
मुंबई के बिजनेस हब में स्थित अरुण टेक सॉल्यूशंस में एक साधारण दिन अचानक एक झटके में बदल गया। कविता वर्मा, जो 8 साल से कंपनी की रीढ़ थीं, को “बेकार” कहकर बाहर निकाल दिया गया। नए मैनेजर राकेश मेहता ने उनकी धीमी गति और पुराने तरीकों को कारण बताया, यह भूलकर कि कंपनी की जड़ें उन्हीं तरीकों में थीं। कविता के जाने पर कुछ युवा कर्मचारी ताली बजा रहे थे, लेकिन असली कहानी तो अब शुरू होने वाली थी।
कविता ने घर लौटकर हार नहीं मानी। बेटे अर्जुन के लिए ट्यूशन देना शुरू किया, ऑनलाइन डेटा एंट्री और टाइपिंग के छोटे-मोटे काम किए। धीरे-धीरे उनकी मेहनत ने उन्हें आत्मविश्वास दिया, और पड़ोस के बच्चे भी पढ़ने आने लगे। आर्थिक स्थिति कठिन थी, लेकिन संतोष और सम्मान कहीं ज्यादा था।
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इधर, अरुण टेक में हालात बिगड़ने लगे। नया ऑटोमेटेड सिस्टम टीम को समझ नहीं आ रहा था, पुराने ग्राहक शिकायतें करने लगे, और कंपनी ने 4 मिलियन से ज्यादा के कॉन्ट्रैक्ट खो दिए। राकेश की आधुनिकता का सपना अब एक बुरे सपने में बदल चुका था। समस्या का असली कारण था—कविता की अनुपस्थिति। उनके बनाए प्रोसेस, क्लाइंट हैंडलिंग की कला और टीम वर्क की समझ अब किसी के पास नहीं थी।
इंटर्न नेहा और पुराने साथी सुरेश ने कविता से अनौपचारिक मदद मांगी। कविता ने बिना किसी शिकवा-शिकायत के सबको गाइड किया। आखिरकार, कंपनी की सीईओ प्रिया आनंद को सच्चाई पता चली और उन्होंने कविता से वापस आने का अनुरोध किया। कविता ने शर्त रखी—उन्हें प्रोसेस और ट्रेनिंग सुपरवाइजर का पद मिले, 40% ज्यादा वेतन और पूरी स्वतंत्रता। राकेश को दूसरे विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया।
कविता के लौटते ही कंपनी में चमत्कार हुआ। शिकायतें घट गईं, ग्राहक वापस आए, और टीम में सहयोग की संस्कृति बनी। उनका अनुभव, धैर्य और प्रशिक्षण ने अरुण टेक को दो सालों में सबसे अच्छा तिमाही प्रदर्शन दिलाया। एक सार्वजनिक समारोह में कविता को कस्टमर ऑपरेशंस डायरेक्टर बना दिया गया और ₹5 लाख का बोनस मिला।
कविता की कहानी सिर्फ एक महिला की वापसी नहीं है, बल्कि यह सबक है कि असली टैलेंट शोर नहीं करता, बस अपना काम करता है। कभी-कभी कंपनी की सबसे बड़ी ताकत वही होती है जिसे सबसे कम महत्व दिया जाता है। कविता ने न सिर्फ अपनी, बल्कि पूरी कंपनी की किस्मत बदल दी। उनका मेंटरशिप प्रोग्राम आज अरुण टेक की पहचान बन चुका है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि किसी इंसान का मूल्य उसकी पदवी, उम्र या गति से नहीं, बल्कि उसके अनुभव, निष्ठा और सकारात्मक प्रभाव से तय होता है। अगर आपके ऑफिस में भी कोई “कविता” है, तो उसे पहचानिए, सराहिए—क्योंकि असली ताकत अक्सर चुपचाप काम करती है।
क्या आपके आसपास भी कोई है जिसकी असली कीमत आप नहीं समझ पा रहे? आज ही उन्हें धन्यवाद कहें।
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