ईमान और तौबा की रोशनी

सुबह की हल्की ठंडक में ज़ैनब अपने छोटे से गाँव के घर में सजदे में थी। उसकी आँखों में सुकून, चेहरे पर पाकीजगी का नूर था। माँ खदीजा बीवी रसोई में थी, अक्सर कहती, “बेटी, खूबसूरती नियत में होती है।” पिता यूसुफ मियां मजदूर थे, मगर ईमान में दरार नहीं थी।

एक दिन गाँव में खबर आई कि शहर के अमीर ताजिर करीम खान बीमार हैं। उनकी बीवी मेहरून निसा ने सुना कि ज़ैनब की दुआओं में असर है। रहान, करीम का बेटा, माँ के साथ ज़ैनब के घर आया। मेहरून निसा ने गुज़ारिश की, “बेटी, मेरे शौहर के लिए दुआ कर दो।” ज़ैनब ने नरमी से कहा, “शिफा देने वाली मैं नहीं, अल्लाह है।” उसने सजदे में दुआ की। कुछ ही दिनों में करीम खान की तबियत बेहतर हो गई।

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इस चमत्कार के बाद रहान के दिल में ज़ैनब के लिए मोहब्बत जागी। माँ ने रिश्ता भेजा, ज़ैनब के घर में खुशियाँ आईं, मगर उसके दिल में डर था। निकाह तय हुआ, मगर छह महीने की लंबी इंतज़ार में रहान बार-बार ज़ैनब से मिलने की कोशिश करने लगा। ज़ैनब जानती थी, निकाह से पहले बात करना गलत है, मगर रहान की जिद ने उसे कमजोर कर दिया।

एक शाम, रहान ने मिलने की जिद की। ज़ैनब ने हिम्मत जुटाई, मगर मुलाकात के दौरान उसकी माँ ने देख लिया। घर में शर्मिंदगी छा गई। ज़ैनब ने अल्लाह से माफी मांगी, तौबा की। माँ ने समझाया, “गुनाह छुपाने से नहीं, तौबा से मिटता है।” जल्दी निकाह हो गया।

शादी के बाद, रहान और ज़ैनब की जिंदगी बदलने लगी। रहान ने मोहब्बत को इबादत समझा। मगर एक दिन कारोबार में नुकसान हुआ। पार्टनर ने धोखा दिया। रहान टूट गया, मगर ज़ैनब ने सब्र की मिसाल दी। “माल जाता है, ईमान नहीं,” उसने कहा। रहान ने बदला लेने की बजाय माफ कर दिया।

धीरे-धीरे, दोनों ने गाँव में मदरसा खोला। ज़ैनब बच्चों को कुरान पढ़ाती, औरतों को तिलावत सिखाती। उसकी बातों से लोगों के दिल बदलने लगे। रहान गरीबों की सेवा करता, खुद को बदलने लगा। एक दिन, वही पार्टनर शर्मिंदा होकर लौटा, तौबा की। रहान ने उसे माफ कर दिया।

मौलवी साहब बोले, “जो गुनाह से लौट आए, अल्लाह उससे नाराज़ नहीं रहता।” ज़ैनब ने ख्वाब देखा, जिसमें रोशनी थी और बच्चों की तिलावत। उसकी तौबा कबूल हो गई थी।

अब गाँव में ईमान की खुशबू फैल गई थी। ज़ैनब और रहान की कहानी मिसाल बन गई। ज़ैनब कहती, “गुनाह के बाद मायूसी नहीं, तौबा की उम्मीद होनी चाहिए।” रहान ने कहा, “मोहब्बत तब मुकम्मल होती है, जब उसमें अल्लाह शामिल हो।”

आसमान पर चाँद चमक रहा था। ज़ैनब ने महसूस किया, अल्लाह ने उनकी तौबा कबूल कर ली थी। उनकी जिंदगी दूसरों के लिए रोशनी बन चुकी थी।

यह कहानी बताती है कि सच्चा ईमान, तौबा और सब्र इंसान को अंधेरे से रोशनी की तरफ ले जाते हैं।