Dharmendra की अंतिम इच्छा (भाग 2): 40 साल का अंधेरा और सनी देओल का सबसे बड़ा बलिदान

 

🚪 पहला कदम: देओल मेंशन का सन्नाटा

 

अगले दिन, देओल मेंशन का माहौल असहनीय रूप से तनावपूर्ण था। घर की हर चीज़, संगमरमर के फर्श से लेकर छत के झूमर तक, 40 साल के इतिहास के बोझ तले दबी हुई लग रही थी। घर के मुख्य हॉल में प्रकाश कौर बैठी थीं, उनका चेहरा शांत था, लेकिन उनके हाथ की उंगलियां कस कर एक-दूसरे में उलझी हुई थीं। वह सनी की बात मान चुकी थीं कि यह उनके पति की अंतिम इच्छा का हिस्सा है, लेकिन उन्हें हेमा मालिनी के आने की कोई जानकारी नहीं थी।

बॉबी देओल अपनी बहनों—अजीता और विजिता—के साथ एक कोने में खड़े थे। उनका डर स्पष्ट था। सनी ने उन्हें सख्त निर्देश दिए थे: “कोई कुछ नहीं बोलेगा। जो भी होना है, पापा के लिए होगा।”

कार का हॉर्न बजते ही, सबकी साँसें थम गईं।

सनी देओल ने गहरे कपड़े पहने हुए थे। उन्होंने किसी भी तरह के भाव को अपने चेहरे पर आने से रोक रखा था। वह खुद दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़े।

हेमा मालिनी अंदर आईं। उनके साथ उनकी बेटियाँ—ईशा और अहाना—थीं। 40 साल बाद, यह पहली बार था जब उन्होंने इस घर की दहलीज पार की थी। हेमा मालिनी का चेहरा भी भावनाशून्य था, लेकिन उनकी आँखों में एक अजीब-सी रोशनी थी—सम्मान की, और एक अधूरेपन को पूरा करने की चाहत की।

🧊 दो सौतनों का आमना-सामना: 40 साल का इंतज़ार

हेमा मालिनी ने जैसे ही हॉल में कदम रखा, उनकी नज़र सीधे प्रकाश कौर पर पड़ी। प्रकाश कौर ने उन्हें देखा—वह पल ऐसा था, जैसे समय ठहर गया हो। दो सुंदर महिलाएँ, दोनों ने एक ही आदमी से प्यार किया, और दोनों के बीच 40 साल की एक अनकही दीवार खड़ी थी।

प्रकाश कौर को समझाने के लिए सनी के पास शब्द नहीं थे। उन्होंने हिम्मत की और बस इतना कहा, “मम्मी… पापा चाहते थे कि हम सब… एक साथ हों।”

प्रकाश कौर के चेहरे पर दर्द की एक लहर आई। वह उठीं। उनकी आवाज़ शांत थी, लेकिन अंदर तूफान था।

“सनी,” उन्होंने कहा, “तुम्हारे पिता की इच्छा… पूरी होगी।”

फिर, उन्होंने हेमा मालिनी की ओर देखा। उस पल, वह गुस्सा या ईर्ष्या नहीं थीं। वह सिर्फ एक और पत्नी थीं जिसने अपने पति को खो दिया था।

हेमा मालिनी ने आगे बढ़कर पहला कदम उठाया। उन्होंने हाथ जोड़कर प्रकाश कौर को नमस्ते किया। “प्रकाश जी। मेरे आने से अगर आपको कोई तकलीफ़ हुई हो, तो माफ़ करना। मैं बस… उनकी आख़िरी इच्छा पूरी करने आई हूँ।”

प्रकाश कौर ने बस धीरे से सिर हिलाया। वह जानती थीं कि आज का दिन उनके अपने दर्द से ज़्यादा, धर्मेंद्र के दर्द के बारे में था। उन्होंने हेमा मालिनी को बैठने के लिए कहा।

📖 डायरी का राज़: आख़िरी वसीयत

 

सनी देओल ने हिम्मत की और डायरी का वह पन्ना निकाला। उन्होंने कहा कि उनके पिता की अंतिम इच्छा थी कि परिवार इस घर में एक हो जाए।

बॉबी ने हिम्मत जुटाई और एक बात कही, “पापा ने एक और चीज़ लिखी थी… एक बार जब सब साथ बैठेंगे, तो उन्हें पता चलेगा कि उनके लिए पापा ने क्या किया।”

सनी ने आगे पढ़ा। पन्ने पर एक और वसीयत का ज़िक्र था। यह वसीयत, धर्मेंद्र ने हाल ही में अपने वकील से बनवाई थी। यह कोई संपत्ति का बँटवारा नहीं था। यह था ज़िम्मेदारी का बँटवारा।

धर्मेंद्र ने लिखा था कि उन्होंने अपनी सारी संपत्ति—फ़िल्में, स्टूडियो, और ज़मीन—को एक ट्रस्ट (Trust) में डाल दिया है। इस ट्रस्ट का नाम था ‘देओल-धर्मा ट्रस्ट’

प्रकाश कौर और उनके बच्चों को ट्रस्ट के आर्थिक लाभ का 60% मिलेगा, क्योंकि उन्होंने हमेशा परिवार के संघर्षों को संभाला।

हेमा मालिनी और उनकी बेटियों को 40% मिलेगा।

लेकिन सबसे बड़ी बात: ट्रस्ट का मुख्य प्रबंधक (Chief Administrator) हेमा मालिनी को बनाया गया था।

सब सदमे में थे। हेमा मालिनी को प्रबंधक क्यों बनाया गया?

डायरी के आख़िरी शब्दों ने सबका जवाब दिया: “मैंने प्रकाश से ज़्यादा हेमा को दर्द दिया है। उसने 40 साल अकेले अपनी दुनिया सँभाली है। मैं जानता हूँ कि हेमा मालिनी कभी किसी के साथ अन्याय नहीं करेगी। वह इस ट्रस्ट को न्याय के साथ चलाएगी, और यह एक पुल बनेगा जो दोनों परिवारों को हमेशा जोड़े रखेगा।”

🤝 पिता का अंतिम संदेश

 

यह वसीयत संपत्ति के बारे में नहीं थी। यह धर्मेंद्र का अंतिम संदेश था—एक माँ का सम्मान करना और दूसरी माँ को विश्वास दिलाना।

सनी देओल ने डायरी बंद की। उन्होंने देखा कि उनकी माँ, प्रकाश कौर, अब शांत थीं। उनके चेहरे पर अब कोई आक्रोश नहीं था, बल्कि एक गहरी समझ थी। हेमा मालिनी की आँखों में भी आँसू थे।

प्रकाश कौर ने धीरे से कहा, “तुम्हारे पापा ने हमेशा कहा था… हेमा बहुत नेक दिल है। उन्होंने यह वसीयत हमें जोड़ने के लिए की है।”

हेमा मालिनी खड़ी हुईं, और इस बार, उन्होंने प्रकाश कौर के हाथ पकड़ लिए। “प्रकाश जी… हम दोनों ने उन्हें खो दिया है। उनका सपना था कि बच्चे एक हों। मेरी बेटियाँ, आपके बेटे… आज के बाद, कोई बँटवारा नहीं होगा।”

सनी देओल ने पहली बार 40 साल बाद अपने परिवार को एक होते देखा। उनकी हिम्मत, उनका डर, उनका बलिदान… सब सफल हो गया था।

बॉबी, अजीत और विजिता ने ईशा और अहाना को गले लगाया। यह आँसुओं से भरा, लेकिन पवित्र पल था। धर्मेंद्र का सपना पूरा हो चुका था।

यह केवल अंतिम इच्छा का पालन नहीं था। यह सनी देओल का सबसे बड़ा बलिदान था, जिन्होंने अपने पिता के अधूरे प्यार को पूरा करने के लिए अपनी माँ के दर्द और 40 साल के तनाव का सामना किया।

**(दोस्तों, धर्मेंद्र ने अपनी अंतिम इच्छा के ज़रिए परिवार को जोड़ने का जो तरीका अपनाया, उस पर आपका क्या कहना है? क्या यह उनकी सबसे बड़ी सीख थी? कमेंट में ज़रूर बताएँ और इस ऐतिहासिक पल पर अपनी राय दें।) **