पति मुस्लिम, खुद पारसी—फिर जरीन खान का हिंदू रीति-रिवाज से क्यों हुआ अंतिम संस्कार? जानिए इस भावुक कहानी के पीछे की सच्चाई
बॉलीवुड इंडस्ट्री में शोक की लहर
बॉलीवुड इंडस्ट्री में उस दिन गहरा शोक छा गया जब दिग्गज अभिनेता संजय खान की पत्नी जरीन खान का निधन हो गया। 81 वर्ष की उम्र में जरीन ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। उनके जाने की खबर जैसे ही सामने आई, फिल्म इंडस्ट्री के कई सितारे, उनके करीबी और फैंस गहरे दुख में डूब गए। सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि देने वालों की बाढ़ आ गई। लेकिन जरीन खान के अंतिम संस्कार को लेकर एक सवाल हर किसी के मन में उठ रहा था—आखिर मुस्लिम पति और पारसी पत्नी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से क्यों हुआ?
अंतिम संस्कार की वायरल वीडियो और लोगों के सवाल
जरीन खान के अंतिम संस्कार की कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इन वीडियो में एक दृश्य ने सबका ध्यान खींचा—उनके बेटे, एक्टर जायद खान, सिर पर मटका लिए और गले में जनेऊ पहने हुए नजर आए। आमतौर पर यह हिंदू परंपरा का हिस्सा है, जिसमें बेटा अपनी मां या पिता को मुखाग्नि देता है। जनेऊ पहनना और मटका सिर पर रखना हिंदू अंतिम संस्कार की रस्मों में आता है। ऐसे में लोगों ने सवाल उठाना शुरू कर दिया कि मुस्लिम होकर जरीन खान का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से क्यों हुआ?
जरीन खान की पृष्ठभूमि—पारसी से बॉलीवुड तक
जरीन खान का जन्म एक पारसी परिवार में हुआ था। उनका असली नाम जरीन कतरक था। पारसी समुदाय की परंपराएँ अंतिम संस्कार को लेकर बहुत अलग हैं। पारसी धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद शरीर को ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ में रखा जाता है, जहाँ गिद्ध शरीर को खाते हैं। यह एक प्राचीन प्रथा है, जिसे ‘डखमा’ भी कहा जाता है। पारसी धर्म में यह माना जाता है कि पृथ्वी, अग्नि, जल और वायु को अशुद्ध नहीं किया जाना चाहिए, इसलिए शरीर को दफनाना या जलाना उचित नहीं समझा जाता।
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लेकिन बदलते समय के साथ यह प्रथा अब लगभग बंद हो चुकी है। बड़े शहरों में टॉवर ऑफ साइलेंस कम रह गए हैं, और गिद्धों की संख्या भी घट गई है। ऐसे में ज्यादातर पारसी परिवार अब या तो अंतिम संस्कार करते हैं या फिर दफनाते हैं। जरीन खान के परिवार ने भी यही रास्ता चुना।
संजय खान—मुस्लिम परिवार, लेकिन खुले विचार
संजय खान का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनका फिल्मी सफर काफी सफल रहा, और उन्होंने कई यादगार फिल्में दीं। निजी जीवन में वे हमेशा खुले विचारों के रहे। उन्होंने जरीन कतरक से विवाह किया, जो पारसी थीं। दोनों की प्रेम कहानी भी बॉलीवुड गलियारों में खूब चर्चा में रही। शादी के बाद जरीन ने अपने नाम के साथ खान जोड़ लिया, लेकिन अपनी पारसी पहचान कभी नहीं छोड़ी।
जरीन खान की अंतिम इच्छा
मीडिया रिपोर्ट्स और परिवार के करीबी सूत्रों के अनुसार, जरीन खान की इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से किया जाए। उन्होंने अपने बच्चों से पहले ही कह दिया था कि जब उनका वक्त आए, तो उन्हें हिंदू परंपराओं के अनुसार विदा किया जाए। इसकी वजह क्या थी? दरअसल, जरीन खान ने अपने जीवन में हिंदू संस्कृति को बहुत करीब से देखा और अपनाया था। उनके बच्चे, खासकर जायद खान और सुजैन खान, हिंदू संस्कृति के काफी करीब रहे। परिवार में त्योहारों और परंपराओं का मिश्रण था—ईद, दिवाली, नवरात्रि, क्रिसमस सब मिलजुलकर मनाए जाते थे।

पारसी अंतिम संस्कार की बदलती परंपराएँ
जैसा कि ऊपर बताया गया, पारसी धर्म में परंपरागत रूप से शरीर को टॉवर ऑफ साइलेंस में रखा जाता है। लेकिन आधुनिक समय में यह प्रथा मुश्किल हो गई है। कई पारसी परिवार अब दफनाना या हिंदू रीति से अंतिम संस्कार करना पसंद करते हैं। जरीन खान ने भी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में हिंदू संस्कृति को अपनाया और उसी के अनुसार विदा होने की इच्छा जताई।
अंतिम संस्कार का भावुक दृश्य
जरीन खान के अंतिम संस्कार के समय परिवार और फिल्म इंडस्ट्री के कई बड़े चेहरे मौजूद थे। उनके बेटे जायद खान ने हिंदू परंपरा के अनुसार अपनी माँ को मुखाग्नि दी। सिर पर मटका और गले में जनेऊ पहने जायद की तस्वीरें वायरल हो गईं। यह दृश्य भावुक करने वाला था। संजय खान इस दौरान पूरी तरह टूटे हुए नजर आए। उन्हें संभालने के लिए परिवार और करीबी दोस्त मौजूद थे। सुजैन खान, जो ऋतिक रोशन की एक्स वाइफ हैं, भी माँ की विदाई में बेहद इमोशनल दिखीं। ऋतिक रोशन अपनी गर्लफ्रेंड सबा आजाद के साथ सुजैन का दुख बांटने पहुँचे।
फिल्म इंडस्ट्री के सितारे पहुंचे श्रद्धांजलि देने
जरीन खान को अंतिम विदाई देने के लिए फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई सितारे पहुँचे। इनमें बॉबी देओल, शबाना आजमी, जया बच्चन, पूनम ढिल्लो, जैकी श्रॉफ, रकुलप्रीत सिंह, जैकी भगनानी, अली गोनी और जसमीन भसीन समेत कई कलाकारों ने जरीन खान को श्रद्धांजलि दी। सभी की आँखों में आँसू थे और माहौल बेहद भावुक था। जरीन खान की विदाई ने सबको झकझोर दिया।
जरीन खान—एक बहुआयामी व्यक्तित्व
जरीन खान ने फिल्मों में भी अपनी किस्मत आजमाई थी। ‘तेरे घर के सामने’, ‘एक फूल दो माली’ जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया। हालांकि फिल्मी सफर लंबा नहीं चला, लेकिन बाद में उन्होंने इंटीरियर डिजाइनर और राइटर के तौर पर खुद की अलग पहचान बनाई। जरीन ने कई किताबें लिखीं और बॉलीवुड के कई सितारों के घरों की सजावट की। उनका जीवन संघर्ष, प्रेम और कला से भरा रहा।
संजय खान और जरीन की प्रेम कहानी
संजय खान और जरीन की प्रेम कहानी भी काफी चर्चित रही। दोनों का मिलना, प्यार होना और फिर शादी करना बॉलीवुड की रोमांटिक कहानियों में गिना जाता है। शादी के बाद उनके चार बच्चे हुए—सुजैन खान, सिमोन अरोरा, फरा अली खान और जायद खान। परिवार हमेशा एकजुट रहा, और बच्चों को हर धर्म और संस्कृति की शिक्षा दी गई।
धर्म, परंपरा और आधुनिकता का मेल
जरीन खान के अंतिम संस्कार ने एक बड़ा संदेश दिया। एक तरफ मुस्लिम पति, दूसरी तरफ पारसी पत्नी, और अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से। यह आधुनिक भारत की तस्वीर है, जहाँ धर्म और संस्कृति के बंधन अब उतने कठोर नहीं रहे। लोग अपनी पसंद, अपनी भावनाओं और अपने अनुभवों के अनुसार जीवन जीते हैं। जरीन खान ने अपने जीवन में कई धर्मों की अच्छाइयों को अपनाया और अपने बच्चों को भी यही सिखाया।
परिवार की भावनाएँ और समाज का संदेश
जरीन खान के अंतिम संस्कार के समय परिवार भावुक था। संजय खान का चेहरा गमगीन था। जायद खान अपनी माँ को आखिरी विदाई देते हुए टूट गए। सुजैन खान अपनी माँ की यादों में खोई थीं। पूरे परिवार ने मिलकर जरीन को विदा किया। इस दौरान फिल्म इंडस्ट्री के लोग भी परिवार के साथ खड़े रहे।
इस घटना ने समाज को एक बड़ा संदेश दिया—धर्म से बढ़कर इंसानियत है। अंतिम संस्कार की रस्में केवल एक परंपरा हैं, असली महत्व उस प्यार और सम्मान का है, जो हम अपने प्रियजन को विदा करते समय देते हैं। जरीन खान की इच्छा का सम्मान करते हुए परिवार ने हिंदू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया, और यही उनकी सच्ची श्रद्धांजलि थी।
सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि और सवाल
सोशल मीडिया पर जरीन खान के अंतिम संस्कार की तस्वीरें और वीडियो वायरल हो गईं। लोग भावुक होकर श्रद्धांजलि दे रहे थे। कई लोगों ने सवाल भी उठाए कि मुस्लिम पति और पारसी पत्नी का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाज से क्यों हुआ। जवाब था—यह जरीन खान की अपनी इच्छा थी। उन्होंने अपनी जिंदगी में हिंदू संस्कृति को अपनाया था और उसी के अनुसार विदा होना चाहती थीं। परिवार ने उनकी इच्छा का सम्मान किया।
मिश्रित संस्कृति—नई पीढ़ी की सोच
जरीन खान के परिवार की कहानी आज के समाज की नई सोच को दर्शाती है। जहाँ धर्म, जाति और परंपरा के बंधन अब उतने कठोर नहीं रहे। लोग अपनी पसंद और भावनाओं के अनुसार जीवन जीते हैं। संजय खान ने मुस्लिम होते हुए भी अपनी पत्नी की इच्छा का सम्मान किया। बच्चों ने माँ की विदाई हिंदू रीति-रिवाज से की। यह एकता, प्रेम और सम्मान का प्रतीक है।
अंतिम विदाई—ओम शांति
जरीन खान की अंतिम विदाई ने सभी को भावुक कर दिया। परिवार, दोस्त और फिल्म इंडस्ट्री के लोग सब उनकी यादों में खो गए। जरीन खान अपने पीछे एक ऐसी विरासत छोड़ गईं, जिसमें धर्म, संस्कृति और इंसानियत का सुंदर मेल है। उनकी विदाई हिंदू रीति-रिवाज से हुई, लेकिन दिलों में उनकी याद हमेशा जिंदा रहेगी।
निष्कर्ष—धर्म से ऊपर है इंसानियत
जरीन खान की कहानी हमें यह सिखाती है कि धर्म केवल एक पहचान है, असली महत्व इंसानियत और प्यार का है। अंतिम संस्कार की रस्में चाहे किसी भी धर्म की हों, असली श्रद्धांजलि उस प्यार और सम्मान में है, जो हम अपने प्रियजन को देते हैं। जरीन खान ने अपने जीवन में सभी धर्मों की अच्छाइयों को अपनाया और अपने बच्चों को भी यही सिखाया। उनकी अंतिम विदाई हिंदू रीति-रिवाज से हुई, लेकिन उनका जीवन हर धर्म और संस्कृति का सम्मान करता रहा।
अगर आपको यह लेख पसंद आया हो, तो कमेंट में ‘ओम शांति’ जरूर लिखें और इस कहानी को अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। ताकि और लोग भी जान सकें कि प्यार, सम्मान और इंसानियत सबसे बड़ी पूजा है।
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