जब एक फटे कपड़ों वाला रिक्शावाला निकला प्रदेश का DGP – लखनऊ की रात में हिल गया पूरा सिस्टम!

रात के 11 बजे लखनऊ के सरकारी अस्पताल के बाहर एक बाप बैठा था, आंखों में आंसू सूख चुके थे, कपड़े खून से सने थे। अंदर उसका बेटा अजय मौत से लड़ रहा था। कुछ घंटे पहले एक अमीर लड़के की तेज रफ्तार कार ने उसे उड़ा दिया था। पुलिस आई, लेकिन मदद की जगह रामदीन को ही डांटने लगी—“ठेला सड़क पर लाओगे तो यही होगा!” अमीर लड़का आराम से निकल गया, पुलिस ने नंबर तक नहीं लिखा।

रामदीन की दुनिया अंधेरे में डूब गई थी। लेकिन उसी अंधेरे में एक बूढ़ा रिक्शावाला, जिसे सब हरिया काका कहते थे, शहर की सड़कों पर अपनी सवारी का इंतजार कर रहा था। कोई नहीं जानता था कि हरिया काका असल में उत्तर प्रदेश के नए DGP विक्रम सिंह हैं। उन्होंने भेष बदलकर शहर की हकीकत जानने का फैसला किया था। हर रात वे देखते—कैसे पुलिसवाले गरीबों से वसूली करते, शराब पीकर हुड़दंग मचाते, और बेबसों को सताते।

.

.

.

एक रात हवलदार मुरारी ने उनका रिक्शा रोका—“आज की कमाई दे!” विक्रम सिंह ने चुपचाप 50 रुपये थमा दिए। उनका निशाना छोटी मछली नहीं, उस भ्रष्ट सिस्टम की बड़ी मछली थी।

जब DGP ने खुद गवाही दी

अगले दिन विक्रम सिंह उसी थाने पहुंचे, जहां अजय का एक्सीडेंट हुआ था। आम फरियादी की तरह बोले—“मैंने गाड़ी का नंबर देखा था।” नंबर सुनते ही इंस्पेक्टर राकेश तोमर घबरा गया, क्योंकि वह विधायक के बेटे की गाड़ी थी। तोमर ने ताना मारा—“तेरी औकात है गवाही देने की?” और गुस्से में एक जोरदार थप्पड़ मार दिया।

लेकिन विक्रम सिंह की आंखों में डर नहीं, बल्कि शांति थी। उन्होंने कहा—“वर्दी पहनकर हाथ उठाने का शौक तुम्हें बचपन से ही था या अपने बाप से सीखा?” यह सुनते ही राकेश तोमर के होश उड़ गए। विक्रम सिंह वही अफसर थे जिन्होंने 20 साल पहले उसकी मां की मदद की थी, उसे अनाथ कोटे से पुलिस में भर्ती करवाया था। आज उसी मसीहा को उसने थप्पड़ मार दिया।

जब असलियत आई सामने

विक्रम सिंह ने अपना पुराना फोन निकाला—“अब फोन करने की जरूरत नहीं, तुम्हारा थाना मेरी टीम ने घेर लिया है।” कुछ ही मिनटों में ADG, DM, SP समेत भारी पुलिस फोर्स थाने में घुस आई। सब हैरान थे—राज्य के DGP फटे कपड़ों में, एक रिक्शावाले के भेष में सामने खड़े थे।

विक्रम सिंह ने सबूतों की फाइल मेज पर फेंकी—विधायक और पुलिस की मिलीभगत, झूठे केस, काली कमाई। उन्होंने आदेश दिया—“इंस्पेक्टर तोमर, विधायक गजेंद्र राणा और उसके बेटे को गिरफ्तार करो। दोषी पुलिसकर्मी वर्दी उतारें और जेल जाएं।”

न्याय की जीत, बदलाव की शुरुआत

रामदीन को न्याय मिला, बेटे अजय का इलाज सरकार ने करवाया। पूरे प्रदेश में भूचाल आ गया। विक्रम सिंह का यह ‘ऑन ऑपरेशन’ भ्रष्ट सिस्टम की नींव हिला गया। यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती—यह शुरुआत है।

सीख:
विक्रम सिंह जैसे अधिकारी आज भी हैं, लेकिन वे अकेले नहीं लड़ सकते। अगली बार जब आप अन्याय देखें, चुप मत रहें। आपका मोबाइल आपका सबसे बड़ा हथियार है। रिकॉर्ड कीजिए, आवाज उठाइए, सोशल मीडिया पर डालिए। आपकी एक शिकायत हजारों छुपे हुए विक्रम सिंह को ताकत दे सकती है। बदलाव आपसे और मुझसे शुरू होता है।

आइए, बदलाव का हिस्सा बनें!