शादी का ‘खूनी तोहफा’: खुशियों के आंगन में बिछ गई लाशें, पटनागढ़ गिफ्ट बम कांड की रोंगटे खड़े कर देने वाली दास्तां

पटनागढ़, उड़ीसा। 26 मई 2025 को उड़ीसा की एक अदालत ने जब अपना फैसला सुनाया, तो पूरे देश की निगाहें उस पर टिक गईं। यह फैसला मात्र एक सजा नहीं थी, बल्कि सात साल से न्याय की गुहार लगा रही एक विधवा और एक उजड़े हुए परिवार के घावों पर मरहम था। यह कहानी है भारतीय आपराधिक इतिहास के सबसे सनसनीखेज और सुनियोजित ‘वेडिंग गिफ्ट बम’ कांड की, जिसने रिश्तों, ईर्ष्या और बदले की एक ऐसी डरावनी तस्वीर पेश की जो आज भी लोगों को झकझोर देती है।

खुशियों का घर और वो काल बनकर आया कूरियर

कहानी शुरू होती है उड़ीसा के एक छोटे से शहर पटनागढ़ से। सौम्य शेखर साहू, जो एक होनहार सॉफ्टवेयर इंजीनियर थे, उनका परिवार खुशियों से सराबोर था। 18 फरवरी 2018 को सौम्य की शादी रीमा से हुई। घर में नई बहू आई थी, मंगल गीत गाए जा रहे थे और आने वाले सुनहरे भविष्य के सपने बुने जा रहे थे।

शादी के पांच दिन बाद, 23 फरवरी 2018 को घर में हलचल कुछ कम थी। सौम्य के पिता अपनी बेटी को छोड़ने एयरपोर्ट गए थे और मां कॉलेज की ड्यूटी पर थीं। घर पर सिर्फ सौम्य, उनकी पत्नी रीमा और उनकी 85 वर्षीय दादी थीं। दोपहर के करीब 12:45 बजे दरवाजे की घंटी बजी। बाहर एक कूरियर बॉय खड़ा था, जिसके हाथ में एक बड़ा पैकेट था। उस पर भेजने वाले का नाम लिखा था— ‘एस.के. सिन्हा, रायपुर’।

सौम्य को लगा कि शायद किसी दोस्त या रिश्तेदार ने शादी का तोहफा भेजा है। रीमा रसोई में खाना बना रही थी। सौम्य पैकेट लेकर रसोई में गए। जिज्ञासावश दादी भी पास आ गईं। जैसे ही सौम्य ने पैकेट खोला, उसके भीतर एक और डिब्बा मिला जो हरे कागज में लिपटा था। उस पर एक सफेद धागा लगा था। सौम्य ने जैसे ही उस धागे को खींचा, एक ऐसा भीषण धमाका हुआ जिसने पूरे इलाके को हिलाकर रख दिया।

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पल भर में उजड़ गई दुनिया

धमाका इतना जबरदस्त था कि रसोई की दीवारें और छत ढह गईं। पड़ोसी दौड़े आए, उन्हें लगा गैस सिलेंडर फटा है। लेकिन रसोई के भीतर का मंजर खौफनाक था। सौम्य और उनकी दादी खून से लथपथ और बुरी तरह झुलसी हुई हालत में तड़प रहे थे। रीमा, जो थोड़ी दूर थी, वह भी गंभीर रूप से घायल थी।

अस्पताल पहुँचते ही दादी ने दम तोड़ दिया। सौम्य शेखर, जो 90% झुलस चुके थे, कुछ ही घंटों में इस दुनिया को छोड़ गए। एक दुल्हन, जिसके हाथों की मेहंदी अभी सूखी भी नहीं थी, उसने अपने पति और घर के बुजुर्ग को अपनी आंखों के सामने खो दिया।

पुलिस की तफ्तीश और फर्जी सुरागों का जाल

शुरुआत में पुलिस उलझी रही। बम स्क्वॉड ने पुष्टि की कि यह एक ‘आईईडी’ (IED) धमाका था। कूरियर रायपुर से आया था, लेकिन ‘एस.के. सिन्हा’ नाम का कोई व्यक्ति वहां नहीं मिला। पता फर्जी था। केस इतना पेचीदा था कि उड़ीसा सरकार ने इसे क्राइम ब्रांच को सौंप दिया।

क्राइम ब्रांच की टीम ने जब तफ्तीश शुरू की, तो उनके हाथ एक गुमनाम पत्र लगा। उस पत्र में पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की गई थी। लेकिन वही पत्र कातिल का काल बन गया। पत्र में इस्तेमाल किए गए अंग्रेजी के कुछ खास शब्द जैसे ‘Project Undertaking’ ने पुलिस का ध्यान एक व्यक्ति की ओर खींचा— पंजीलाल मेहर

ईर्ष्या की आग और ‘प्रोफेसर’ का खूनी दिमाग

पंजीलाल मेहर कोई साधारण अपराधी नहीं था। वह उसी कॉलेज में अंग्रेजी का वरिष्ठ शिक्षक था जहां सौम्य की मां प्राचार्य (Principal) थीं। जांच में सामने आया कि पंजीलाल पहले खुद उस कॉलेज का प्राचार्य था, लेकिन अपनी खराब कार्यशैली के कारण उसे हटा दिया गया और सौम्य की मां को वह पद दे दिया गया।

बस यही बात पंजीलाल के दिल में नफरत की आग बनकर सुलगने लगी। उसे लगा कि सौम्य की मां ने उसकी कुर्सी छीनी है। उसने ठान लिया कि वह न सिर्फ उन्हें, बल्कि उनके पूरे परिवार को खत्म कर देगा।

पंजीलाल ने सात महीने तक इंटरनेट पर बम बनाने की तकनीक सीखी। उसने बॉलीवुड और हॉलीवुड की क्राइम फिल्में देखीं ताकि वह पकड़ा न जाए। उसने अकेले अपने घर में बम तैयार किया। वह इतना शातिर था कि उसने खुद को बचाने के लिए कजाकिस्तान में पढ़ रही सौम्य की बहन के नाम से भी फर्जी ईमेल भेजे ताकि जांच भटक जाए।

उसने रायपुर जाकर कूरियर भेजा, अपना फोन घर पर छोड़ा ताकि लोकेशन ट्रेस न हो, और बिना टिकट ट्रेन में सफर किया। वह सौम्य की शादी में भी गया और उन्हें ‘लंबी उम्र’ का आशीर्वाद दिया, यह जानते हुए कि वह उन्हें मौत का पैकेट भेज चुका है।

ऐतिहासिक फैसला: जब न्याय की जीत हुई

क्राइम ब्रांच ने वैज्ञानिक साक्ष्यों, कूरियर ऑफिस के गवाहों और पंजीलाल के घर से मिले बम बनाने के सामान के आधार पर उसे गिरफ्तार किया। करीब 7 साल तक चले लंबे मुकदमे के बाद, 26 मई 2025 को अदालत ने पंजीलाल मेहर को दोषी करार दिया।

अदालत ने इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ केस की श्रेणी के करीब माना और पंजीलाल को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। न्यायाधीश ने कहा कि एक शिक्षित शिक्षक द्वारा किया गया यह कृत्य समाज पर एक धब्बा है।

एक सबक: ईर्ष्या की कोई सीमा नहीं

पटनागढ़ गिफ्ट बम कांड हमें यह सिखाता है कि ईर्ष्या और अहंकार इंसान को किस हद तक गिरा सकते हैं। एक शिक्षक, जिसका काम समाज को रौशनी दिखाना था, उसने अंधेरे का रास्ता चुना।

आज रीमा जिंदा है, लेकिन उसके जीवन का वो खालीपन कभी नहीं भर पाएगा। सौम्य शेखर साहू की कहानी हमें सतर्क रहने की प्रेरणा देती है और यह विश्वास दिलाती है कि अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, कानून के लंबे हाथ उसकी गर्दन तक पहुँच ही जाते हैं।

इस घटना ने भारतीय कूरियर सेवाओं के नियमों में भी बड़े बदलावों की मांग की, ताकि भविष्य में कोई ‘तोहफे’ के नाम पर ‘मौत’ न भेज सके।

निष्कर्ष: सफलता और पद के लिए प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है, लेकिन जब यह प्रतिस्पर्धा नफरत में बदल जाती है, तो वह न सिर्फ दूसरों का जीवन तबाह करती है, बल्कि अपराधी को भी नरक के द्वार तक ले जाती है। पंजीलाल मेहर आज जेल की सलाखों के पीछे है, लेकिन उसने जो घाव समाज और साहू परिवार को दिए हैं, वे इतिहास के पन्नों में हमेशा दर्ज रहेंगे।

मैं आपके लिए आगे क्या कर सकता हूँ? क्या आप इस केस के कानूनी पहलुओं या क्राइम ब्रांच की जांच प्रक्रिया पर एक और लेख चाहते हैं?