सीमा की सुहागरात: एक बदकिस्मत दुल्हन की दर्दनाक दास्तान
सीमा सिर्फ 18 साल की थी—नादान, मासूम और सपनों से भरी। उसके रूप की चर्चा पूरे गांव में थी। हर कोई चाहता था कि सीमा उसकी पत्नी बने, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। सीमा के पिता ने उसका रिश्ता गांव के सबसे सम्मानित व्यक्ति लालबाबू के बेटे मोहन से तय कर दिया। मोहन मानसिक रूप से कमजोर था, जिसे गांव वाले पागल कहते थे। सीमा का दिल टूट गया, लेकिन उसने पिता की इज्जत के लिए शादी स्वीकार कर ली।
शादी धूमधड़ाके से हुई, सीमा दुल्हन बनकर सजी। उसके मन में सुहागरात की हज़ारों उम्मीदें थीं। वह सोचती थी—आज उसका पति उसे प्यार करेगा, उसकी ख्वाहिशें पूरी करेगा। लेकिन जब रात आई, मोहन कमरे में आया, चुपचाप बिस्तर पर लेट गया और सो गया। सीमा ने सोचा शायद वह शर्मीला है, लेकिन यही सिलसिला रोज़ चलता रहा। हर रात उसकी उम्मीदें टूटती रहीं।
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कुछ दिनों बाद सीमा ने हिम्मत जुटाई, मोहन से बात करने की कोशिश की। तब उसे पता चला कि मोहन सिर्फ मानसिक ही नहीं, शारीरिक रूप से भी पति होने में अक्षम है। सीमा के सारे सपने एक झटके में बिखर गए। उसे लगा जैसे उसके साथ बड़ा धोखा हुआ है। वह घर में एक नौकरानी बनकर रह गई—ना कोई अपना, ना कोई सहारा।
धीरे-धीरे सीमा की हालत बिगड़ने लगी। उसके भीतर का खालीपन उसे अंदर ही अंदर खा रहा था। मोहन अब छोटी-छोटी बातों पर उसे मारता-पीटता। सीमा के शरीर पर चोट के निशान बनने लगे। उसकी आत्मा हर दिन घुटती रही। एक दिन उसने हिम्मत दिखाई, अपने मायके चली गई और पुलिस में घरेलू हिंसा की शिकायत दर्ज कराई।
लालबाबू को अपनी इज्जत की चिंता सताने लगी। उसने सीमा को समझाया, मनाया और घर वापस लाने की कोशिश की। सीमा वापस आ गई, लेकिन उसके दिल में अब कोई उम्मीद नहीं थी। मोहन से उसे कोई सुख नहीं मिल सकता था। अब उसके जीवन में बस अकेलापन था।

इसी अकेलेपन में लालबाबू ने सीमा की तरफ ध्यान देना शुरू किया। वह उसके दुख और जरूरतों को समझने लगा। सीमा को लगा कि शायद उसके ससुर ही उसे वो सहारा दे सकते हैं जिसकी उसे सख्त जरूरत थी। धीरे-धीरे दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता बनने लगा। सीमा को लालबाबू में अपनापन और सुकून मिलना शुरू हो गया।
एक दिन, जब घर के लोग सो रहे थे, सीमा चुपके से लालबाबू के कमरे में गई। दोनों ने अपने दर्द और इच्छाएं एक-दूसरे से बांटी। सीमा को ऐसा लगा जैसे उसे वो प्यार मिल गया जिसकी वो वर्षों से प्यास थी। यह रिश्ता समाज की नजरों में गलत था, लेकिन उनके लिए यह सच्चाई बन गया था।
समय के साथ सीमा और लालबाबू का रिश्ता गहरा होता गया। सीमा अब इस रिश्ते को छुपाना नहीं चाहती थी। एक रात उसने लालबाबू से कहा, “अब मुझे पत्नी का दर्जा दो, वरना मैं सबको सच बता दूंगी।” लालबाबू डर गया—उसकी इज्जत, समाज में उसकी छवि खतरे में थी। उसने सीमा को समझाने की कोशिश की, लेकिन सीमा अपनी बात पर अड़ी रही।
लालबाबू ने सीमा से दूरी बनानी शुरू कर दी। वह खेत की झोपड़ी में सोने लगा ताकि सीमा उसके पास ना आए। सीमा का दिल टूट गया। उसका प्यार अब गुस्से और कड़वाहट में बदलने लगा। उसने ठान लिया कि वह लालबाबू को इतनी आसानी से नहीं छोड़ने वाली।
एक सुबह गांव के आम के बगीचे में सीमा की लाश मिली। शरीर पर संघर्ष के निशान थे। पूरे गांव में सनसनी फैल गई। पुलिस ने जांच शुरू की। शक मोहन और लालबाबू पर गया। मोहन अपनी ही दुनिया में खोया था, कोई जवाब नहीं दे पाया। पुलिस ने लालबाबू से सख्त पूछताछ की। आखिरकार उसने कबूल किया कि उसने गुस्से में सीमा की हत्या कर दी थी, क्योंकि वह उसे ब्लैकमेल कर रही थी।
लालबाबू को आजीवन कारावास की सजा मिली। गांव के लोग हैरान रह गए कि जिस आदमी को वे सम्मानित मानते थे, उसने इतना बड़ा गुनाह किया। सीमा की कहानी पूरी हुई—एक लड़की जो प्यार, सम्मान और सुख की तलाश में अपने जीवन से हाथ धो बैठी।
यह दास्तान हमें सिखाती है कि समाज की गलत सोच, स्वार्थ और वासना किस तरह मासूम जिंदगियों को बर्बाद कर देती है। सीमा की कहानी हमेशा एक चेतावनी रहेगी कि सच्चा प्यार और सम्मान हर किसी का हक है, और किसी भी कीमत पर उससे समझौता नहीं करना चाहिए।
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