📰 भारतीय जनता पार्टी ने धर्मेंद्र को क्यों छोड़ा? सियासत का कड़वा सच!
बीजेपी की सत्ता में अनदेखी का शिकार हुए ‘ही मैन’, अंतिम समय में भी नहीं मिला सम्मान
नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में यह एक कड़वा सच है कि सत्ता तब तक ही किसी को पूछती है जब तक वो काम का रहे। बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के पूर्व सांसद धर्मेंद्र के साथ जो हुआ, वह इसी राजनीतिक निर्ममता का जीता-जागता उदाहरण है।
आज जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सत्ता के शिखर पर है, और देओल परिवार के सदस्य—हेमा मालिनी (वर्तमान सांसद), धर्मेंद्र (पूर्व सांसद), और सनी देओल (सांसद) भी इस पार्टी से जुड़े हुए हैं, तब यह सवाल बड़ा हो जाता है कि आखिर अंतिम समय में पार्टी ने अपने इस महान स्तंभ से दूरी क्यों बना ली?
सत्ता में चांदी, मगर दिग्गज से दूरी
यह सर्वविदित है कि जब कोई पार्टी सत्ता में होती है, तो उससे जुड़े लोगों की चांदी होती है। देओल परिवार ने भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीता है और सत्ता का स्वाद चखा है। हेमा मालिनी आज भी मथुरा से सांसद हैं और पार्टी के हर बड़े कार्यक्रम में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं, यहाँ तक कि राम मंदिर के सांस्कृतिक कार्यक्रम में उन्होंने नृत्य भी किया था।
लेकिन गम की बात यह है कि बीजेपी ने धर्मेंद्र को, जो खुद भी सांसद रह चुके हैं और सरकारी पेंशन पाते थे, उनके अंतिम दिनों में बिल्कुल छोड़ दिया। राजनीतिक गलियारों में इसे एक तरह से “धोखा” माना जा रहा है।
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अस्पताल में भर्ती थे, कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा
वीडियो में उठाए गए सवालों के अनुसार, जब धर्मेंद्र अस्पताल में भर्ती थे और कई दिनों तक इलाज चला, तब बीजेपी का कोई भी बड़ा नेता उनकी खोज-खबर लेने या उनसे मिलने नहीं पहुंचा। इतना ही नहीं, जब वह घर पहुंचे तब भी किसी बड़े नेता ने उनसे मुलाकात नहीं की।
यहां तक कि उनकी पत्नी, हेमा मालिनी, जो खुद बीजेपी की एक सक्रिय सांसद हैं, उनके साथ भी कोई पार्टी का बड़ा चेहरा नहीं पहुंचा। यह अनदेखी उस पार्टी के लिए बड़ी शर्म की बात है, जिसके लिए धर्मेंद्र ने अपनी सेवाएं दी थीं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे महान अभिनेता और पूर्व सांसद को जीते जी सम्मान न देना, राजनीति के चरित्र पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है।
अंतिम संस्कार में भी वीआईपी दूरी
सबसे बड़ी और चौंकाने वाली बात यह रही कि एक ऐसे व्यक्ति के अंतिम संस्कार में भी बीजेपी का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा, जो न सिर्फ महान अभिनेता था, बल्कि बीजेपी का सांसद भी रह चुका था।
वीडियो के मुताबिक, यह बात किसी के गले नहीं उतरती कि उनकी ही पार्टी के नेताओं ने इस अंतिम विदाई में हिस्सा क्यों नहीं लिया। भले ही बाद में सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी और भावपूर्ण पोस्ट लिखे, लेकिन जीते जी और अंतिम विदाई के वक्त उनका न पहुंचना एक गंभीर राजनीतिक संदेश देता है।
क्या यह सरकारी मजबूरी थी? कोई प्रोटोकॉल था? या फिर यह राजनीतिक कीचड़ का वह गंदा पहलू है जहाँ कमल भी मैला हो जाता है?

‘सियासत’ सिर्फ़ तब तक पूछती है?
यह घटना एक पुरानी कहावत को सच साबित करती है: “सियासत किसी को तब तक ही पूछती है जब तक वो काम का रहे।” ऐसा लगता है कि बीजेपी के लिए धर्मेंद्र का राजनीतिक उपयोग खत्म हो चुका था, जिसके कारण उन्हें सम्मान और समर्थन देना ज़रूरी नहीं समझा गया।
धर्मेंद्र को आखिरी सलाम देने के लिए मोदी जी और योगी जी जैसे बड़े नेताओं का न पहुंचना कई सवाल खड़े करता है: क्या राजनीति में मानवीय रिश्ते और पार्टी के प्रति वफादारी का कोई मोल नहीं है?
आगे की राह: हेमा मालिनी के लिए मौका
हालांकि, जो हो चुका है उसे बदला नहीं जा सकता। अब सवाल यह है कि आगे क्या हो सकता है?
धर्मेंद्र की दूसरी पत्नी हेमा मालिनी, जो सक्रिय सांसद हैं, अब इस मौके का उपयोग कर सकती हैं। वह बीजेपी से कुछ मांगें रख सकती हैं ताकि धर्मेंद्र के योगदान को सही मायने में सम्मान मिल सके।
सम्मान कार्यक्रम: धर्मेंद्र के सम्मान में एक भव्य सरकारी कार्यक्रम आयोजित किया जाए।
योजना या स्मारक: उनके नाम पर कोई योजना लागू की जाए, या कोई स्मारक/सड़क बनाई जाए।
लेकिन इससे पहले, बीजेपी को इस बात का जवाब देना चाहिए कि उसने धर्मेंद्र से दूरी क्यों बनाई और उन्हें धोखा क्यों दिया? इस सवाल का जवाब आना न केवल देओल परिवार के लिए, बल्कि बीजेपी के हर पुराने और वफादार कार्यकर्ता के लिए भी ज़रूरी है।
यह घटना दर्शाती है कि राजनीति में ‘अपनों’ का साथ भी तभी तक होता है, जब तक सत्ता की जरूरतें पूरी होती रहें।
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