12 साल बाद खोई बेटी की वापसी: पिता की ममता का चमत्कार
शहर की हलचल भरी सड़क पर एक साधारण-सी चाय की दुकान थी, जहां एक किशोरी ग्राहकों को चाय परोस रही थी। उसके चेहरे पर मासूमियत थी, लेकिन आंखों में थकान और गहरे दर्द की छाया भी थी। उसी वक्त, एक लग्जरी कार दुकान के सामने आकर रुकी। कार से उतरे रमेश, जिनकी आंखों में बरसों की तलाश और उम्मीदें थीं। वे अपने बिजनेस के सिलसिले में निकले थे, लेकिन किस्मत उन्हें उस चाय की दुकान तक ले आई थी।
रमेश की नजर जैसे ही उस लड़की पर पड़ी, उनका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उन्हें लगा कि यह चेहरा कहीं देखा हुआ है, एक सपना जो कभी टूट गया था। उन्होंने लड़की से धीमी आवाज में कहा, “बिटिया, एक चाय देना।” लड़की ने मुस्कुराते हुए चाय बनाई और रमेश को थमाई। चाय का प्याला लेते ही रमेश की आंखें भर आईं। उन्हें अपनी छः साल की राधा की याद आ गई, जो 12 साल पहले मेले की भीड़ में उनसे बिछड़ गई थी।
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रमेश ने कांपती आवाज में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” लड़की ने कहा, “राधा।” यह सुनते ही रमेश के आंसू बह निकले। उन्होंने धीरे से पूछा, “क्या तुम्हारे पास कोई लॉकेट है?” राधा ने गर्दन झुकाई और वही लॉकेट दिखाया, जिसे रमेश ने उसके छठवें जन्मदिन पर पहनाया था। अब रमेश को पूरा यकीन हो गया कि यही उसकी खोई हुई बेटी है।
राधा की आंखों में भी आंसू आ गए। उसने कांपती आवाज में कहा, “पापा, क्या सच में आप मेरे पापा हैं?” रमेश ने उसे गले लगा लिया। 12 साल का दर्द, 12 साल की तड़प, सब एक पल में बह गया। लेकिन राधा के चेहरे पर डर था। उसने कहा, “पापा, आप यहां से चले जाइए, वरना वे लोग आ जाएंगे जिन्होंने मुझे यहां काम पर लगा रखा है।”

रमेश ने तुरंत पुलिस को फोन किया। कुछ ही देर में पुलिस आ गई और उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया जिन्होंने राधा को किडनैप कर चाय बेचने पर मजबूर किया था। राधा ने पुलिस को सब कुछ बता दिया—कैसे मेले में उसकी उंगली छूट गई थी, कैसे उसे उठाकर ले जाया गया, और कैसे वह सालों तक उस ठेले पर काम करती रही। पुलिस ने रमेश को आश्वासन दिया कि अब उसकी बेटी सुरक्षित है और दोषियों को सख्त सजा मिलेगी।
राधा को लेकर रमेश घर पहुंचे। दरवाजे पर मां सावित्री खड़ी थी। जैसे ही उसने बेटी को देखा, उसका दिल भर आया। सावित्री ने राधा को गले लगाकर कहा, “मेरी बच्ची, मैंने तुझे हर जगह ढूंढा, हर मंदिर में दुआ मांगी, आज तू मेरी गोद में है।” पूरे घर में खुशियों की लहर दौड़ गई। 12 साल का पिछड़ाव, दर्द और तड़प अब प्यार और अपनापन में बदल गया।
राधा ने धीरे-धीरे अपनी पुरानी यादें वापस पाई। उसने फिर से पढ़ाई शुरू की, अपने सपनों को जीना शुरू किया। रमेश और सावित्री ने वादा किया कि अब वे अपनी बेटी को कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे। मोहल्ले के लोग भी कहते, “देखो भगवान की लीला, खोई हुई बेटी को उसके असली घर पहुंचा दिया।”
उस दिन से उस परिवार की दुनिया बदल गई। हर दिन त्योहार जैसा लगने लगा। राधा की हंसी फिर से घर में गूंजने लगी। रमेश की आंखों में अब गर्व और सुकून था। सावित्री की दुआ पूरी हो गई थी। राधा ने अपने बचपन की मासूमियत और परिवार का प्यार फिर से पा लिया।
यह कहानी सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि हर उस दिल की है जो उम्मीद और रिश्तों की ताकत पर विश्वास रखता है। 12 साल की जुदाई और दर्द के बाद, प्यार और ममता ने एक बार फिर जीत हासिल की। यही है इंसानियत की असली ताकत—जो समय और तकदीर को भी बदल देती है।
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