🕊️ पिता की अमानत: ईशा देओल का नेक कदम और टूटे परिवार को जोड़ने का प्रयास

 

प्रकरण 1: खामोशी और एक पुरानी डायरी

 

बॉलीवुड के ‘ही-मैन’, लीजेंड धर्मेंद्र जी, के जाने से पूरा देश गम में डूबा हुआ था। पर उनके जुहू स्थित घर के अंदर, दुःख से भी ज़्यादा बड़ी चीज़ थी—वह थी एक ख़ामोश सवाल: पिता की अमानत का क्या होगा?

यह अमानत दौलत या संपत्ति की नहीं थी, जैसा कि सब सोचते थे। यह थी रिश्तों की, यादों की, और उनकी अंतिम, अनकही इच्छा की।

धर्मेंद्र जी की मृत्यु के कुछ ही घंटों बाद, उनकी बेटी ईशा देओल अपनी माँ, हेमा मालिनी कांपते हुए हाथ थामकर सबसे पहले उस कमरे की ओर बढ़ीं जहाँ उनके पिता अपने सबसे ख़ास काग़ज़ात और यादें रखा करते थे।

ईशा के दिल में एक अजीब सी बेचैनी थी। वह जानती थी कि उनके पिता ने हमेशा दो परिवारों के बीच एक संतुलन बनाए रखा। अब जब वह नहीं रहे, तो इस संतुलन को कौन संभालेगा?

कमरे में खोजबीन के दौरान, एक पुराने संदूक में एक पुरानी, चमड़े की डायरी मिली। डायरी के पहले पन्ने पर धर्मेंद्र जी की अपनी हैंडराइटिंग में लिखा था: “पापा का पर्सनल नोट।”

ईशा ने कांपते हाथों से डायरी खोली। अंदर लिखी बातों ने ईशा को अंदर तक हिला दिया।

प्रकरण 2: अमानत का असली अर्थ

 

डायरी के पन्ने, सालों के अनुभवों और भावनाओं से भरे थे। लेकिन बीच में एक पृष्ठ था, जहाँ धर्मेंद्र जी ने अपने दिल की बात लिखी थी—एक ऐसा नोट जो उनकी सच्ची अमानत थी:

“मेरा परिवार दो हिस्सों में बँटा है। प्रकाश और उनके बच्चों (सनी, बॉबी, अजीता, विजीता) ने मेरे जीवन की शुरुआत में मेरा साथ दिया। हेमा और मेरी बेटियाँ (ईशा, अहाना) मेरी दूसरी दुनिया थीं, जिन्होंने मुझे वह प्यार दिया जो मैंने खो दिया था।

मैं अपनी संपत्ति का बंटवारा कर सकता हूँ, लेकिन मेरे दिल की सच्ची अमानत यह है: मेरा परिवार टूटे नहीं, जुड़े। मेरे दोनों परिवार – प्रकाश कौर की फैमिली और हेमा मालिनी की फैमिली – एक दूसरे की इज्जत करें। एक-दूसरे का सम्मान करें। मेरे जाने के बाद कोई विवाद न हो।

यही मेरी सच्ची अमानत है। यही मेरी आखिरी इच्छा है।

यह पढ़कर ईशा की आँखें भर आईं। यह उनकी संपत्ति नहीं थी; यह एकता और सम्मान का संदेश था। यह वह बोझ था जिसे उनके पिता जीवन भर उठाते रहे और अब अपनी सबसे प्यारी बेटी के कंधों पर छोड़ गए थे।

ईशा जानती थी कि पिछले कई दशकों से, वह और उनके भाई-बहन (सनी, बॉबी) एक-दूसरे से दूर रहे थे। कभी मुलाकात नहीं हुई, कभी बात नहीं हुई। प्रकाश कौर से मिलना तो दूर की बात थी।

प्रकरण 3: नेक काम और साहसी कदम

धर्मेंद्र जी की डायरी पढ़ने के बाद, ईशा देओल ने एक साहसी और ठोस कदम उठाया। यह ऐसा कदम था जिसे शायद उनके पिता भी अपने जीवनकाल में उठाने से हिचकिचाते थे।

ईशा ने तुरंत सनी देओल और बॉबी देओल को एक अर्जेंट मीटिंग के लिए बुलाया। यह मुलाकात एक-दूसरे से वर्षों की दूरी के बाद पहली बार होने वाली थी।

जब दोनों परिवार के सदस्य—बॉबी, सनी (और बाद में, अहाना)—इकट्ठे बैठे, तो कमरे में तनाव था।

ईशा ने उस पल की चुप्पी को तोड़ा। उन्होंने अपनी आँखें पोंछीं और सीधे उस डायरी को उठाया।

उन्होंने कहा, “पापा ने हमें दौलत से बड़ी चीज़ दी है। उन्होंने हमें एक ज़िम्मेदारी दी है।”

ईशा ने डायरी का वह पन्ना पढ़ा, जहाँ धर्मेंद्र जी ने दोनों परिवारों के सम्मान और एकता की बात लिखी थी। जैसे ही उन्होंने अंतिम लाइन पढ़ी—“यही मेरी सच्ची अमानत है। यही मेरी आखिरी इच्छा है”—पूरा कमरा भावुक हो उठा।

सनी देओल, जो हमेशा से अपनी माँ के दर्द के कारण हेमा मालिनी और उनकी बेटियों से दूरी बनाए रखते थे, अब अपने पिता के अंतिम शब्दों के सामने नि:शब्द थे।

ईशा ने आगे बढ़कर एक और नेक काम किया। उन्होंने एक लकड़ी का पुराना बॉक्स निकाला, जिसमें धर्मेंद्र जी अपनी सबसे कीमती यादें रखते थे:

धर्मेंद्र की पुरानी घड़ी।

पहली कमाई से खरीदी गई पहली शर्ट का टुकड़ा।

उनकी पहली फ़िल्म की स्क्रिप्ट की एक प्रति।

उनका पसंदीदा पेन।

ईशा ने घोषणा की कि ये यादें सिर्फ़ एक बंद कमरे में नहीं रहेंगी। उन्होंने कहा कि वह धर्मेंद्र जी के नाम, काम और इंसानियत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने के लिए एक ट्रस्ट बनाएंगी। इस ट्रस्ट में दोनों परिवार (प्रकाश कौर और हेमा मालिनी की फैमिली) बराबर के साझेदार होंगे।

इस फ़ैसले से ईशा ने सिर्फ़ पिता की अमानत नहीं संभाली, बल्कि टूटते परिवार को जोड़ने की एक भरपूर कोशिश भी की।

प्रकरण 4: भावनात्मक पल और एक बेटी का फ़र्ज़

 

ईशा देओल ने वाकई बेटी होने का फ़र्ज़ निभाया। उनकी छोटी बहन, अहाना देओल, भी देर रात घर पहुँचीं और अपनी बड़ी बहन के साथ पापा को याद किया।

अहाना ने अपने हाथों से वह खाना बनाया जो धर्मेंद्र जी को सबसे ज़्यादा पसंद था। फ़ार्म हाउस पर रहने के दौरान, उन्हें सरसों का साग, मक्के की रोटी, और दाल मखनी बेहद पसंद थी। अहाना ने ये सारे पकवान बनाए, मानो वे आज भी अपने पिता के लिए प्यार से खाना बना रही हों।

यह सिर्फ़ खाना नहीं था; यह प्यार और यादों का प्रसाद था।

ईशा देओल भावनात्मक रूप से भी बहुत टूट चुकी थीं। धर्मेंद्र जी उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा थे। ईशा के व्यक्तिगत जीवन में जब मुश्किल समय आया था (भरत तख्तानी से अलगाव के बाद), तो धर्मेंद्र जी ही थे जिन्होंने उन्हें संभाला था, उनकी ज़िंदगी सँवारी थी।

जब उन्हें पता चला था कि ईशा और भरत अलग हो रहे हैं, तो धर्मेंद्र जी ने हर संभव प्रयास किया था कि उनकी बेटी की ज़िंदगी सँवर जाए। इस मुश्किल समय में, पिता की यादें ईशा के लिए और भी ज़्यादा मायने रखती थीं।

प्रकरण 5: संस्कार और विरासत

 

कहते हैं कि किसी इंसान की असली विरासत, उनके शब्द और उनके संस्कार होते हैं। धर्मेंद्र जी की यह अमानत—सम्मान, एकता, और निस्वार्थ प्रेम का संदेश—ईशा देओल ने न सिर्फ़ संभाली, बल्कि पूरे देओल परिवार को एक धागे में जोड़कर आगे बढ़ा दिया।

ईशा देओल का यह नेक कदम एक मिसाल बन गया। उन्होंने साबित कर दिया कि पारिवारिक रिश्ते दौलत से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण होते हैं। उन्होंने अपने पिता के अंतिम शब्दों का सम्मान किया और वर्षों की दूरी और गलतफहमियों को प्यार और समझदारी के पुल से पाटने की कोशिश की।

धर्मेंद्र जी शायद आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन ईशा देओल के इस कार्य से उनकी आत्मा को निश्चित रूप से शांति मिली होगी। उन्होंने एक पिता, एक पति और एक इंसान के रूप में जो आदर्श स्थापित किए, उनकी बेटी ने उसे आगे बढ़ाया।

आज, धर्मेंद्र जी की विरासत केवल उनकी फ़िल्मों में नहीं, बल्कि एकजुट होते देओल परिवार के हर सदस्य के दिल में ज़िंदा है।

(यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है।)