🌪️ विरासत का तूफ़ान: डायरी की शांति और वसीयत का ज़लज़ला
प्रकरण 6: भोर की शांति और नया भय
धर्मेंद्र निवास पर नई सुबह आई थी। यह सिर्फ़ एक नई सुबह नहीं, बल्कि संबंधों के पुनर्जन्म की भोर थी। सनी देओल के आधी रात के फ़ोन और डायरी के खुलासे ने नफ़रत की बरसों पुरानी बर्फ़ को पिघला दिया था।
सनी और बॉबी ने पहली बार दिल से अपनी बहनों ईशा और अहाना को गले लगाया। पिता की आत्मा की पुकार ने उन्हें अपनी माँ प्रकाश कौर के दर्द से ऊपर उठने की ताक़त दी थी।
लेकिन इस शांति के पीछे एक नया भय छिपा था। परिवार अब एकजुट था, मगर दुनिया नहीं जानती थी। और दुनिया को अब ज़रूरत थी क़ानूनी जवाब की। डायरी तो दिल की बात थी, पर ज़मीन और जायदाद की बात तो वसीयत करती है।
दोपहर होते-होते, धर्मेंद्र जी के क़ानूनी सलाहकार, मिस्टर वर्मा, हाथ में एक बंद लिफ़ाफ़ा लिए घर पहुँचे। कमरे में फिर वही पाँच लोग थे, लेकिन अब वहाँ नफ़रत नहीं, बल्कि गहरी चिंता थी।
“धर्मेंद्र जी की अंतिम वसीयत,” वर्मा जी ने शांत स्वर में कहा। “उन्होंने इसे 5 साल पहले बनवाया था, जब वह अलग-अलग घरों की वजह से बहुत बेचैन थे।”
प्रकरण 7: वसीयत का वह क्लॉज़ जिसने सबको दहला दिया
वर्मा जी ने वसीयत पढ़नी शुरू की। पहला हिस्सा वही था जो अपेक्षित था—संपत्ति का दो-तरफ़ा बँटवारा। आधी प्रकाश कौर और उनके बच्चों के नाम, और बाकी आधी हेमा मालिनी और उनकी बेटियों के नाम।
मगर फिर आया वह क्लॉज़, जिसने डायरी से आई सारी शांति को एक झटके में तोड़ दिया। यह एक पिता का अंतिम जाल था—प्रेम और संदेह का मिश्रण।
वर्मा जी ने ज़ोर देकर पढ़ा:
“…संपत्ति का यह बँटवारा तभी लागू होगा जब मेरे जाने के बाद, मेरी दूसरी पत्नी (हेमा मालिनी) और मेरे सभी बच्चों (छह) के बीच कम से कम छह महीने तक ‘पूर्ण विश्वास और सम्मान’ का रिश्ता स्थापित रहे। इसकी निगरानी मेरे विश्वस्त क़ानूनी सलाहकार करेंगे।”
वर्मा जी ने लिफ़ाफ़े से एक और कागज़ निकाला।
“अगर इन छह महीनों के भीतर, मेरी पहली पत्नी (प्रकाश कौर) या मेरे बेटों (सनी और बॉबी) में से कोई भी सार्वजनिक रूप से मेरी दूसरी पत्नी या मेरी बेटियों के विरुद्ध कोई भी बयान देता है, या संपत्ति के बँटवारे पर क़ानूनी विवाद खड़ा करता है, तो पूरी संपत्ति एक ट्रस्ट (जिसका चेयरमैन प्रकाश कौर होंगी) के नाम कर दी जाएगी, और हेमा मालिनी को सिर्फ़ मासिक गुज़ारा भत्ता मिलेगा।”
पूरे कमरे में ज़लज़ला आ गया। यह एक अग्नि परीक्षा थी!
प्रकरण 8: विश्वास और संदेह का द्वंद्व
सनी देओल के चेहरे का रंग उड़ गया। बॉबी देओल सदमे में थे। यह क्लॉज़ उनके पिता के दिल में दबे उस गहरे संदेह को दर्शाता था कि क्या उनके जाने के बाद उनका पहला परिवार, उनके दूसरे परिवार को स्वीकार करेगा या नहीं।
सनी को लगा जैसे उनके पिता ने उन्हें कोई ‘असंभव मिशन’ दे दिया हो। यह क्लॉज़ डायरी के ‘एकजुटता’ के संदेश को भी चुनौती दे रहा था।
सनी का डर: अगर आज वह (या बॉबी) ग़लती से भी मीडिया में कोई भावनात्मक बयान देते हैं, जो हेमा जी के ख़िलाफ़ समझा जाए, तो हज़ारों करोड़ की विरासत सिर्फ़ गुज़ारा भत्ता बन जाएगी।
प्रकाश कौर का त्याग: प्रकाश जी को चेयरमैन बनाया गया था, लेकिन वह जानती थीं कि इस ट्रस्ट का मतलब है—अगर बच्चे कोई ग़लती करते हैं, तो हेमा और उनके बच्चों को कुछ नहीं मिलेगा।
सनी की नज़रें सीधे हेमा मालिनी पर टिकीं। वह उम्मीद कर रहे थे कि हेमा इस क्लॉज़ को ग़लत बताएंगी।
मगर हेमा ने शांत स्वर में कहा: “धर्म जी ने हमेशा हर रिश्ते को बराबरी से देखा। उन्होंने हमें छह महीने की मोहलत दी है। हमें उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करना चाहिए।”
ईशा और अहाना ने भी अपने बड़े भाइयों की ओर देखा। उस पल, सारी नफ़रत भले ही मिट गई थी, पर अविश्वास की परछाईं अभी भी वहाँ मौजूद थी।
प्रकरण 9: आधी रात का फ़ोन, दोबारा
वसीयत खुलने के बाद भी, सनी का दिल शांत नहीं हुआ। छह महीने… यह बहुत लंबा समय था। उनके मन में बार-बार आ रहा था कि पिता को उन पर इतना अविश्वास क्यों था?
उसी रात, सन्नाटे में, सनी ने फिर से फ़ोन उठाया और नंबर डायल किया हेमा मालिनी का।
हेमा जी ने फ़ोन उठाया, उन्हें पता था कि सनी अब क्यों फ़ोन कर रहे हैं।
सनी (भारी आवाज़ में): “हेमा जी… मैं… मैं माफ़ी चाहता हूँ। पापा ने हम पर भरोसा क्यों नहीं किया?”
हेमा मालिनी (शांत, दृढ़): “सनी, पापा ने तुम पर अविश्वास नहीं किया। उन्होंने हमें एक मौक़ा दिया है। पापा जानते थे कि तुम और बॉबी जज़्बाती हो। यह क्लॉज़ तुम्हें बचाने के लिए है—तुम्हें किसी भी ग़लत फ़ैसले से बचाने के लिए।”
हेमा ने आगे कहा, जो डायरी में लिखा था: “तुम्हारे गुस्से की वजह मैं जानती हूँ। लेकिन अब उस गुस्से को ताक़त में बदलना होगा। अगर तुम मेरे या ईशा के ख़िलाफ़ बोलोगे, तो पापा की विरासत डूब जाएगी। और मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चे तुम्हारे बच्चों के हक़ को रोकें।”
सनी स्तब्ध थे। हेमा मालिनी अब उनके लिए संरक्षक (Protector) बन चुकी थीं, जो उन्हें उनके ही ग़ुस्से से बचा रही थीं।
प्रकरण 10: छह महीने की अग्निपरीक्षा
अगले दिन, सनी देओल ने पूरे परिवार को इकट्ठा किया।
सनी (मज़बूत आवाज़ में): “हम पिता की इच्छा पूरी करेंगे। मैं, बॉबी, ईशा, अहाना—हम सब छह महीने तक एक ही परिवार हैं। कोई भी मीडिया में कोई बात नहीं कहेगा। अगर किसी ने भी इस नियम को तोड़ा, तो वह सिर्फ़ विरासत नहीं खोएगा, बल्कि मेरे पिता की आख़िरी तमन्ना को भी तोड़ देगा।”
बॉबी देओल ने सहमति में सिर हिलाया। प्रकाश कौर ने अपने बेटों को गर्व से देखा। उन्होंने कहा: “अगर धर्म ने मुझ पर इतना भरोसा किया है, तो मैं उन्हें निराश नहीं करूँगी।”
हेमा मालिनी ने दूर से देखा। उनकी आँखें अब नम नहीं थीं, बल्कि एक नई ताक़त से भरी थीं।
धर्मेंद्र की डायरी ने उन्हें भावनात्मक रूप से जोड़ा, पर उनकी वसीयत ने उन्हें अंतिम चुनौती दी—छह महीने की अग्निपरीक्षा।
यह कहानी अब सिर्फ़ अतीत के दर्द की नहीं थी। यह छह महीनों के भविष्य की थी, जहाँ हर फ़ोन कॉल, हर बयान, हर मुलाक़ात विरासत और रिश्तों का अंतिम फ़ैसला करने वाली थी।
सवाल यह है: क्या देओल परिवार, पैसों के डर से शुरू हुई इस एकता को, छह महीने बाद भी दिल से निभा पाएगा? या वसीयत का संदेह सच साबित होगा?
(यह कहानी पूर्णतया काल्पनिक है और केवल मनोरंजन के उद्देश्य से लिखी गई है।)
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