🖤 सियाह अध्याय: धर्मेंद्र की अंतिम विदाई में अनकहा संघर्ष

 

प्रकरण 1: जुहू की सन्नाटे भरी सुबह

 

24 नवंबर 2025 की तारीख़। बॉलीवुड के इतिहास में यह दिन सिर्फ़ इसलिए नहीं दर्ज हुआ कि एक महान सुपरस्टार चला गया, बल्कि इसलिए कि इस दिन दशकों से चली आ रही एक पारिवारिक दरार, मीडिया की चकाचौंध के बीच बेपर्दा हो गई।

मुंबई के जुहू इलाक़े में प्लॉट नंबर 22 के आलीशान बंगले पर एक अजीब, ख़ौफ़नाक खामोशी पसरी थी। यह तूफान से पहले की शांति थी। पिछले एक महीने से लीजेंड्री एक्टर धर्मेंद्र की गिरती सेहत को लेकर अफ़वाहों का बाज़ार गर्म था। पर उस रविवार की सुबह, जब एंबुलेंस का सायरन गूंजा, तो सबको पता चल गया—89 वर्ष की उम्र में पंजाब का शेर, ‘ही-मैन’, अपनी अंतिम सांस ले चुका था।

चौंकाने वाली बात यह थी कि निधन की ख़बर बाहर आते ही परिवार ने रहस्यमय चुप्पी साध ली। आम तौर पर, इतने बड़े सितारे का पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए रखा जाता है, लेकिन यहाँ सब कुछ इतनी हड़बड़ी में हुआ कि किसी को संभलने का मौक़ा नहीं मिला। ऐसा लगा, जैसे देओल परिवार जानबूझकर मीडिया के जमावड़े को टालना चाहता था। क्या उन्हें डर था कि दो परिवारों का आमना-सामना किसी नई कंट्रोवर्सी को जन्म देगा?

दोपहर 1:30 बजे यह तय हो गया कि अंतिम संस्कार पवन हंस श्मशान घाट पर होगा। सुरक्षा बढ़ा दी गई, और यहीं से शुरू हुआ वह भावनात्मक ड्रामा, जिसकी गूंज बरसों तक सुनाई देगी।

प्रकरण 2: दो मिनट का अपमान और डिग्निफ़ाइड डिस्टेंस

 

सबकी नज़रें एक ही सवाल पर टिकी थीं: क्या हेमा मालिनी और उनकी बेटियाँ वहाँ पहुँचेंगी? और अगर पहुँचेगी, तो क्या उन्हें वह सम्मान मिलेगा जिसकी वह हक़दार थीं?

दोपहर ढलते ही, सफ़ेद लिबास में लिपटी, आँखों पर काला चश्मा लगाए हेमा मालिनी अपनी बेटी ईशा देओल के साथ श्मशान घाट पहुँचीं। माहौल तुरंत तनावपूर्ण हो गया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, भीड़ इतनी बेक़ाबू थी कि पुलिस को गेट बंद करना पड़ा।

इस बीच, गॉसिप की दुनिया में यह बात आग की तरह फैली कि हेमा मालिनी को गेट पर रोका गया। यह प्रशासन की मजबूरी थी, पर उस पल हेमा के चेहरे पर जो बेबसी और लाचारी थी, वह कैमरों ने कैद कर ली। 45 साल तक दुनिया के ताने सहने वाली, धर्मेंद्र के लिए धर्म बदलने वाली वह पत्नी, आज अपने पति के अंतिम सफ़र में भीड़ और प्रोटोकॉल के बीच संघर्ष करती नज़र आई। यह दृश्य पत्थर दिल को भी पिघलाने के लिए काफ़ी था।

अंदर का नज़ारा और भी दिल तोड़ने वाला था। हिंदू रीति-रिवाजों के मुताबिक़, अंतिम संस्कार के सारे हक़ घर के बेटों और पहली पत्नी के पास होते हैं। पवन हंस के ग्राउंड में सनी देओल और बॉबी देओल अपने पिता की देह के पास खड़े थे। उनकी आँखों में असहनीय दर्द था।

लेकिन इस पूरे दृश्य में, हेमा मालिनी और उनकी बेटियाँ—ईशा और अहाना—एक गरिमापूर्ण दूरी (Dignified Distance) बनाए हुए खड़ी थीं। यह वही दूरी थी जो उन्होंने 45 साल तक निभाई। वह मुख्य परिवार के दायरे से बाहर थीं।

प्रकरण 3: प्रकाश कौर की खामोशी और ‘मुखाग्नि’ का दर्द

 

जब पंडित जी ने रस्में शुरू कीं और मुखाग्नि देने के लिए सनी देओल आगे बढ़े, तो उस वक़्त दूर खड़ी हेमा मालिनी के दिल पर क्या गुज़री होगी, यह कोई सोच भी नहीं सकता। वह वहाँ मौजूद थीं, पर पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि महज़ एक दर्शक के रूप में।

यह सब देखकर, बॉलीवुड के बड़े सितारे—अमिताभ बच्चन से लेकर सलमान ख़ान तक—सन्न रह गए। सबने उस बारीक लकीर को महसूस किया जो देओल परिवार के दो हिस्सों को आज भी बाँटती थी।

इस पूरी कहानी का एक महत्वपूर्ण किरदार था—धर्मेंद्र की पहली पत्नी, प्रकाश कौर। 1954 से धर्मेंद्र की जीवनसंगिनी, वह महिला जिसने 1980 में धर्मेंद्र पर लगे ‘वुमनाइज़र’ के आरोपों पर ढाल बनकर अपने पति का साथ दिया था।

अंतिम संस्कार के दिन प्रकाश कौर भी वहाँ मौजूद थीं, लेकिन मीडिया की चकाचौंध से दूर। देओल परिवार का यह सख्त नियम रहा है कि घर की औरतें, ख़ासकर प्रकाश कौर, पब्लिक स्पेक्टिकल नहीं बनेंगी। लेकिन अंदरूनी ख़बरें बताती हैं कि वह पूरी तरह से टूटी हुई थीं। आज, 71 साल तक ख़ामोशी से अपना धर्म निभाने वाली उस महिला ने अपना जीवन साथी हमेशा के लिए खो दिया था।

प्रकरण 4: दो मिनट में क्यों निकलीं हेमा मालिनी?

 

हेमा मालिनी वहाँ मुश्किल से कुछ देर रुकीं (सूत्रों के अनुसार दो मिनट)। उन्होंने दूर से अपनी श्रद्धांजलि दी और फिर ईशा का हाथ थामे निकल गईं।

उनका इतनी जल्दी चले जाना कई सवाल खड़े कर गया।

क्या उन्हें वहाँ ‘अनवांटेड’ फील कराया गया?

यह सर्वविदित था कि सनी और बॉबी ने कभी भी हेमा मालिनी को दिल से स्वीकार नहीं किया था। उनके मन में हमेशा यह दर्द रहा कि हेमा मालिनी की वजह से उनकी माँ (प्रकाश कौर) को जीवन भर दुख और अकेलापन सहना पड़ा।

लेकिन, हेमा मालिनी का फ़ैसला उनके बड़प्पन को दर्शाता था। वह जानती थीं कि अगर वह वहाँ ज़्यादा देर रुकीं, या उन्होंने कोई रस्म निभाने की ज़िद की, तो तमाशा हो सकता है। उन्हें पता था कि चिता पर पहला हक़ प्रकाश कौर और उनके बेटों का था। उन्होंने वही किया जो वह 45 सालों से करती आ रही थीं—त्याग। उन्होंने अपने पति को अंतिम विदाई दी, लेकिन दूर से, बिना किसी को असहज किए।

हेमा मालिनी ने चुपचाप वहां से निकलकर, सनी और बॉबी को अपने पिता के साथ वह आख़िरी पल सुकून से बिताने का मौक़ा दिया। यह उनकी हार नहीं, बल्कि उनकी गरिमापूर्ण जीत थी।

प्रकरण 5: विरासत, वसीयत और भविष्य का संकट

 

धर्मेंद्र की अंतिम विदाई में यह नाइंसाफ़ी और जल्दबाज़ी कई और विवादों को जन्म दे गई।

    राजकीय सम्मान का अभाव: धर्मेंद्र जी को पद्म भूषण मिला था और वह सांसद रह चुके थे, फिर भी उन्हें राजकीय सम्मान (State Funeral) नहीं मिला। सूत्रों के मुताबिक़, यह सरकार का नहीं, बल्कि परिवार का फ़ैसला था। सनी देओल चाहते थे कि उनके पिता की अंतिम विदाई नितांत निजी और शांतिपूर्ण हो, बिना किसी सरकारी ताम-झाम के।

    जायदाद का बंटवारा: मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, धर्मेंद्र की संपत्ति 1000 करोड़ से ज़्यादा की थी। अंतिम संस्कार के दिन जिस तरह हेमा की फ़ैमिली ‘विज़िटर’ की तरह आई और चली गई, उसने भविष्य के संघर्षों की एक धुंधली तस्वीर पेश कर दी। हालांकि, वसीयत का मर्म बाद में पता चलेगा (जिसमें दोनों परिवारों को बराबर का हक़ मिलने की संभावना थी), पर अंतिम संस्कार के दिन का बंटवारा साफ़ दिख रहा था।

इस पूरे घटनाक्रम ने यह साबित कर दिया कि स्टारडम कितना भी बड़ा हो, मौत के सामने सब बराबर हो जाते हैं। धर्मेंद्र ने रिश्ते तो बहुत बनाए, लेकिन उन्हें सुलझा नहीं पाए।

अब जब वो कड़ी टूट गई थी जो इन सबको बाँधे रखती थी—यानी ख़ुद धर्मेंद्र—तो सवाल यह था कि क्या सनी देओल परिवार के मुखिया के तौर पर हेमा मालिनी और उनकी बेटियों को साथ लेकर चलेंगे? या फिर ये दूरियाँ अब खाइयों में बदल जाएँगी?

धर्मेंद्र की रूह को शांति तभी मिलेगी, जब उनका परिवार एक होगा। उनकी अंतिम यात्रा में वो भीड़ थी, वो शोर था, वो सितारे थे, लेकिन एक अजीब सा खालीपन भी था—वो खालीपन था एक ‘कंप्लीट फ़ैमिली’ का।

काश उस दिन गेट पर कोई रोक-टोक न होती, और काश उस दिन दो पत्नियाँ एक-दूसरे का हाथ थामकर अपने पति को विदा करतीं। लेकिन, हक़ीक़त हमेशा फ़िल्मों से ज़्यादा कड़वी होती है।