1. सुबह का दृश्य

एक सुबह, जिले की आईपीएस अधिकारी अंशिका वर्मा अपनी मां सरिता देवी के साथ बाजार जा रही थीं। अचानक उनकी नजर सड़क के दूसरी तरफ पड़ी, जहां उनके तलाकशुदा पिता अशोक मोची का काम कर रहे थे। यह देखकर अंशिका की आंखों में चमक आ गई। उसने तुरंत अपनी मां से कहा, “मां, देखिए! यही मेरे पापा हैं।”

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2. मां की प्रतिक्रिया

सरिता देवी घबरा गईं और बोलीं, “नहीं बेटा, यह तुम्हारे पापा कैसे हो सकते हैं? तुम्हारे पापा तो अच्छे खासे आदमी थे। यह तो एक मोची है।” लेकिन अंशिका ने दृढ़ता से कहा, “नहीं मां, मैंने उनकी तस्वीर देखी है। यही मेरे पापा हैं। प्लीज, इन्हें हमारे घर लेकर चलिए।”

3. अशोक की पहचान

अशोक ने जूते पॉलिश करते-करते सरिता को देखा और तुरंत पहचान गए। शर्म से उनका सिर झुक गया। अंशिका ने यह सब देखा और उसे यकीन हो गया कि यही उसके पापा हैं। लेकिन सरिता ने उसे खींचते हुए वहां से ले जाने की कोशिश की, यह कहते हुए कि “यह तुम्हारे पापा नहीं हैं।”

4. अंशिका की जिद

अंशिका ने कहा, “मां, देखिए उनकी हालत कितनी खराब है। वह मेरे पापा हैं, और मैं उन्हें घर ले जाऊंगी।” लेकिन सरिता ने गुस्से में कहा, “अगर तुम उन्हें घर लेकर जाओगी, तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रहूंगी।” अंशिका मजबूरी में अपनी मां के साथ घर लौट गई।

5. अशोक का दुख

अशोक ने यह सब देखा और मन ही मन सोचने लगे, “काश मेरी बेटी मेरे पास होती।” उन्हें अपनी स्थिति पर पछतावा हुआ, लेकिन वह अपनी बेटी को दुखी नहीं करना चाहते थे।

6. अंशिका का निर्णय

घर लौटकर, अंशिका ने अपनी मां से पूछा, “मां, आप झूठ क्यों बोल रही हैं? वही मेरे पापा हैं। मुझे उनसे मिलना है।” लेकिन सरिता ने कुछ नहीं बताया। अंशिका ने ठान लिया कि वह अपने पिता से मिलेगी।

7. अगली मुलाकात

अंशिका ने अगले दिन चुपके से बाजार जाकर अपने पिता से मुलाकात की। उसने कहा, “आप मुझे पहचानते हैं?” लेकिन अशोक ने शर्म से सिर झुकाते हुए कहा, “नहीं, मैं आपको नहीं जानता।” अंशिका ने कहा, “मैं आपकी बेटी हूं। मुझे आप दोनों को फिर से एक साथ देखना है।”

8. ललिता की मदद

अंशिका ने अपनी मां की सहेली ललिता से मदद मांगी। ललिता ने बताया कि अशोक का एक लड़की के साथ अफेयर था, जिससे सरिता को बहुत दुख हुआ। अंशिका ने कहा, “मुझे अपने पापा को घर लाना है।”

9. पुनर्मिलन की कोशिश

अंशिका और ललिता ने मिलकर अशोक से मिलने का फैसला किया। उन्होंने अशोक को समझाने की कोशिश की कि उसे अपनी बेटी के लिए घर जाना चाहिए। अंशिका ने कहा, “पापा, आप मेरे लिए घर चलिए।”

10. परिवार का पुनर्मिलन

अंत में, अशोक ने अंशिका की बात मान ली और वे घर लौट आए। सरिता ने गुस्से में आकर अंशिका को डांटा, लेकिन अंशिका ने कहा, “यह घर मेरा है। आप कहीं नहीं जाएंगे।”

11. भावनात्मक क्षण

अंशिका की भावनाओं को देखकर, सरिता ने धीरे-धीरे अशोक का हाथ पकड़ लिया और दोनों ने गले मिलकर अपने रिश्ते को फिर से मजबूत किया। अंशिका ने अपनी हिम्मत और समझदारी से अपने माता-पिता को फिर से एक साथ कर दिया।

निष्कर्ष

यह कहानी हमें सिखाती है कि परिवार के रिश्ते कितने महत्वपूर्ण होते हैं और कभी-कभी एक समझदार व्यक्ति ही उन रिश्तों को फिर से जोड़ सकता है।

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