रोज़ देर से स्कूल आने वाली बच्ची की सच्चाई जानकर टीचर ने बदल दी उसकी ज़िंदगी

झारखंड के धनबाद में एक छोटी सी बच्ची रचना अपने पिता के साथ रहती थी। माँ का साया उसके सिर से बहुत पहले उठ चुका था, और पिता मजदूरी करके जैसे-तैसे घर चला रहे थे। रचना उम्र में नन्ही, मासूम थी, लेकिन उसकी आँखों में हमेशा गहरी उदासी झलकती थी।

हर सुबह वह किताबों का बैग लेकर स्कूल जाती, लेकिन उसकी एंट्री हमेशा देर से होती। क्लास में बच्चे हँसते, टीचर डाँटते, छड़ी चलती, लेकिन रचना कभी सफाई नहीं देती। उसकी हथेलियों पर छड़ी की चोटें पड़तीं, और वह सिर झुकाकर सब सहती रहती।

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एक दिन मास्टर साहब की नज़र उसकी थकी हुई, उदास आँखों पर पड़ी। उन्होंने पहली बार नरम स्वर में पूछा, “रचना, तुम रोज़ देर से क्यों आती हो?” पूरी क्लास सन्नाटा हो गया। रचना की आँखों में आँसू थे, लेकिन उसने धीरे से कहा, “सर, मेरे घर में माँ नहीं है। सुबह सारे काम मुझे ही करने पड़ते हैं। झाड़ू-पोछा, बर्तन, खाना बनाना… जब तक सब खत्म होता है, स्कूल देर हो जाती है।”

पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया। मास्टर साहब की आँखों में भी आँसू आ गए। उन्होंने छड़ी को हमेशा के लिए एक तरफ रख दिया और रचना को गले लगा लिया। “अब से तुम्हें अकेले सब नहीं सहना होगा। मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

बच्ची रोज़ देर से आती थी स्कूल… एक दिन टीचर ने जो किया, इंसानियत रो पड़ी |  Heart touching story

मास्टर साहब ने उसके पिता से भी बात की, उन्हें समझाया कि बेटी को प्यार और सहारे की जरूरत है। पिता ने शराब छोड़ दी, बेटी के साथ बैठना शुरू किया, उसका होमवर्क देखने लगे। रचना की ज़िंदगी बदल गई। अब वह समय पर स्कूल आने लगी, पढ़ाई में आगे बढ़ने लगी।

सालों बाद, रचना खुद माँ बनी। एक दिन उसकी बेटी ने स्कूल से चॉकलेट लाकर उसे दी और कहा, “माँ, आप मेरी सबसे अच्छी दोस्त हो।” रचना की आँखों में आँसू थे, लेकिन इस बार वो खुशी के थे। उसने अपनी बेटी को गले लगाया और सोचा—अगर धर्मवीर सर ने उस दिन उसकी सच्चाई नहीं समझी होती, तो शायद उसकी ज़िंदगी आज ऐसी न होती।

रचना अपने परिवार के साथ धर्मवीर सर से मिलने गई। सर ने उसे देखकर कहा, “बेटी, तू तो बड़ी हो गई, परिवार भी है। कितना अच्छा लग रहा है तुम्हें देखकर।” रचना बोली, “सर, यह सब आपकी वजह से संभव हुआ।”

उस दिन सबको यह सीख मिली कि एक सच्चा शिक्षक सिर्फ पढ़ाने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि अपने विद्यार्थियों की ज़िंदगी सँवारना ही उसका सबसे बड़ा धर्म होता है।

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