दो परिवार, 44 साल की दूरी… और एक मुलाक़ात जिसने सब बदल दिया ?

धर्मेंद्र और हेमा मालिनी: रिश्तों की जटिलता और एक नई शुरुआत

आज हम एक ऐसी कहानी पेश करने जा रहे हैं, जो केवल बॉलीवुड के चमकते सितारों की कहानी नहीं है, बल्कि रिश्तों की टूट-फूट, जटिलता, दर्द और फिर मेलजोल की पहेली भी है। यह कहानी है धर्मेंद्र की, जिनकी जिंदगी में दो परिवार और उनकी जिंदगियों के बीच एक अजीब सी दरार रही। इसी दरार को पाटने के लिए उनकी बेटी ईशा देओल ने एक ऐसा कदम उठाया जिसने पूरे बॉलीवुड और फैंस को चौंका दिया।

धर्मेंद्र का फिल्मी सफर

धर्मेंद्र, जिनका नाम भारतीय सिनेमा के स्वर्ण युग से जुड़ा है, एक ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने अपने अभिनय से लाखों दिलों को छुआ। उनकी जिंदगी जितनी चमकदार थी, उतनी ही जटिल उनके पारिवारिक रिश्ते थे। धर्मेंद्र की पहली शादी 1954 में प्रकाश कौर से हुई थी, और इस शादी से उनके चार बच्चे हुए: सनी, बॉबी, विजेता और अजीता।

धर्मेंद्र ने अपने करियर की शुरुआत 1960 के दशक में की। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से बॉलीवुड में एक अलग पहचान बनाई। लेकिन जैसे-जैसे उनका करियर ऊंचाइयों पर पहुंचा, उनके पारिवारिक रिश्तों में भी जटिलताएं बढ़ने लगीं।

हेमा मालिनी के साथ रिश्ता

धर्मेंद्र की जिंदगी में हेमा मालिनी की एंट्री 1960 के अंत में हुई, जब वे ‘तुम हसीन मैं जवान’ की शूटिंग कर रहे थे। हेमा उस समय बॉलीवुड की चांदनी थीं, और दोनों के बीच जो रिश्ता बना, वह केवल एक आकर्षण नहीं बल्कि एक गहरा भावनात्मक संबंध था। लेकिन इस प्रेम कहानी की कीमत दोनों परिवारों को चुकानी पड़ी।

धर्मेंद्र ने कभी तलाक नहीं लिया, और समाज, परिवार, धर्म के नाम पर वह एक टकराव में फंसे रहे। मीडिया ने कई बार सवाल उठाए कि क्या धर्मेंद्र दो जिंदगी जी रहे हैं? लेकिन यह कहानी केवल निर्देशक या दर्शकों की नजर से नहीं समझी जा सकती। यह कहानी उनसे भी ज्यादा मानवीय थी जितनी वह बाहर से दिखती थी।

परिवारों के बीच की दूरी

धर्मेंद्र और हेमा के बीच का रिश्ता जटिल होता गया। 1980 के दशक में, जब मीडिया ने धर्मेंद्र के इस्लाम कबूल करने की खबर फैलाई, तब यह स्थिति और भी संवेदनशील हो गई। धर्मेंद्र ने हेमा से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म अपनाया, लेकिन इस कदम ने दोनों परिवारों के बीच की दूरी को और बढ़ा दिया।

हेमा ने 1982 में जूहू में अपना बंगला अद्वैत बनवाया, जो एक ऐसा स्थान था जहां वह और धर्मेंद्र मिलते थे। लेकिन इस घर के 5 मिनट की दूरी पर धर्मेंद्र का पहला परिवार भी रहता था। इन दोनों घरों के बीच दूरी सिर्फ भौतिक नहीं थी, बल्कि मानसिक और भावनात्मक भी थी।

ईशा देओल का कदम

धर्मेंद्र के निधन के ठीक 14 दिन बाद, उनकी बेटी ईशा देओल ने प्रकाश कौर के घर जाकर एक बड़ा कदम उठाया। जूहू में स्थित उस घर में ईशा ने प्रकाश कौर के पैर छुए और लगभग आधा घंटे बातचीत की। यह मुलाकात बॉलीवुड की सबसे विवादास्पद और अनकही कहानी का मोड़ थी।

ईशा ने 2017 में अपनी मां हेमा मालिनी की आत्मकथा में खुलासा किया था कि उन्होंने पहले भी प्रकाश कौर से मुलाकात की थी। लेकिन यह नई मुलाकात उनके लिए एक नई उम्मीद लेकर आई। ईशा के दिल में यह भावना जागी कि इस घर में उनका भी कोई हक है।

पारिवारिक संबंधों की जटिलता

धर्मेंद्र की पहली पत्नी प्रकाश कौर ने अपने बच्चों को संभाला और हेमा मालिनी ने अपनी बेटियों ईशा और अहाना की परवरिश की। लेकिन दोनों परिवारों के बीच दूरी धीरे-धीरे आदत बन गई। सनी और बॉबी देओल ने ईशा और अहाना की शादी में हिस्सा नहीं लिया।

हेमा मालिनी कभी करण देओल की शादी में नहीं पहुंची। यही दूरी धीरे-धीरे आदत बन गई। मीडिया कहती रही कि देओल परिवार और हेमा मालिनी का परिवार अलग है। लेकिन सच्चाई यह थी कि इन दूरियों के पीछे दर्द, झिझक, गलतफहमियां और सामाजिक दबाव छिपे थे।

धर्मेंद्र का संघर्ष

धर्मेंद्र कभी भी दोनों परिवारों को लेकर सार्वजनिक रूप से ज्यादा नहीं बोले। वह दोनों के बीच संतुलन बनाकर चलते रहे। त्योहारों पर कभी उधर, कभी इधर, लेकिन हमेशा यह कोशिश कि दोनों परिवार एक दूसरे के प्रति सम्मान बनाए रखें। उनके करियर में उतार-चढ़ाव आए, लेकिन उनका स्टारडम कभी कम नहीं हुआ।

धर्मेंद्र के दोस्तों का कहना था कि वह खुद से कभी खुश नहीं थे कि उनकी किसी फैसले ने उनके बच्चों के बीच दीवार खड़ी कर दी है। सनी और बॉबी को अपनी बहनों की शादी में ना देखकर उनका दिल भर आता था।

अंतिम यात्रा और परिवार की एकता

24 नवंबर 2025 की रात, जब धर्मेंद्र का निधन हुआ, तो यह देश के लिए एक सदमा था। अगले ही दिन मुंबई और पंजाब दोनों से श्रद्धांजलि की खबरें आने लगीं। लेकिन जब उनके अंतिम राइट्स की बात आई, तो दूरी एक बार फिर सामने खड़ी थी।

सनी देओल ने पापा के लोनावला फार्म हाउस को अंतिम श्रद्धांजलि के लिए खोला। वही फार्म हाउस जहां धर्मेंद्र ने अपने दोनों परिवारों के साथ अलग-अलग वक्त बिताया था। हेमा मालिनी ने अपने घर पर शांति पाठ कराया और कहा कि पापा की आत्मा को शांति चाहिए।

ईशा का प्रयास

8 दिसंबर 2025 को, ईशा देओल ने प्रकाश कौर के घर जाकर एक नया अध्याय शुरू किया। यह मुलाकात केवल एक भावनात्मक शुरुआत नहीं थी, बल्कि यह दोनों परिवारों के बीच की दूरी को पाटने का एक प्रयास था। ईशा ने कहा, “पापा जहां भी हैं, आज बहुत खुश होंगे।”

यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने सभी को यह सोचने पर मजबूर किया कि क्या धर्मेंद्र की आखिरी इच्छा यही थी कि दोनों परिवार एक हो? क्या उन्होंने ईशा से कहा था कि वह कोशिश करें?

निष्कर्ष

यह कहानी सिर्फ बॉलीवुड की नहीं, बल्कि सामाजिक रिश्तों, अपेक्षाओं, मानवता और प्रेम की भी कहानी है। आज जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं, तो समझते हैं कि किसने क्या छोड़ा। हेमा मालिनी ने छोड़ी दौलत लेकिन बचाया सम्मान। सनी ने निभाया वादा और पूरा किया पिता का सपना।

धर्मेंद्र जी का नाम आज भी हर घर में सम्मान से लिया जाता है, क्योंकि उन्होंने हमें सिखाया कि जिंदगी की सबसे बड़ी कमाई रिश्ते हैं। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि असली दौलत हमारी भावनाएं होती हैं।

इसलिए, यह कहानी सिर्फ एक प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह एक सीख बन गई है कि रिश्ते निभाने का नाम है। क्या आप भी मानते हैं कि परिवार की असली दौलत एकता और सम्मान है, ना कि करोड़ों की संपत्ति? अपनी राय नीचे कमेंट में जरूर बताइए।

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