कहानी का शीर्षक: “भाई-बहन और कर्म का इंसाफ”

सीतापुर के एक छोटे से गाँव में प्रेम और पूजा नाम के भाई-बहन रहते थे। दोनों का रिश्ता गाँव में मिसाल माना जाता था। प्रेम बड़ा भाई था, जिसने अपनी छोटी बहन पूजा की हर खुशी के लिए हमेशा अपनी चाहतों और सपनों की परवाह नहीं की। पूजा उसके लिए सब कुछ थी, और प्रेम उसकी हर जिद पूरी करता था।

समय बीता, पूजा की शादी एक बड़े बिजनेसमैन के बेटे विक्रम से हो गई। मगर किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। एक भयानक सड़क हादसे में प्रेम और पूजा के माता-पिता का देहांत हो गया। अब सब कुछ सिर्फ प्रेम और पूजा के नाम रह गया। चौधरी साहब की वसीयत के अनुसार सारी जायदाद दोनों भाई-बहन में बराबर-बराबर बाँट दी गई।

भाई की सारी सम्पत्ति बहन ने धोखे से हड़प ली, फिर कर्मा ने ऐसा सबक सिखाया की  होश उड़ गए और रोते हुए

विक्रम के दिल में लालच की आग पैदा हो गई। उसने पूजा के मन में अपने भाई के लिए शक बो दिया। विक्रम के बहकावे में आकर पूजा ने प्रेम को धोखे से उसके ही घर और जायदाद से बेदखल कर दिया। हवेली और संपत्ति खुद के नाम कराकर, प्रेम को घर से निकाल दिया गया। प्रेम ने अपने ही घर की देहलीज भिखारी की तरह पार की।

टूटे हुए दिल से प्रेम ने अपने पुराने दोस्त शंकर के सहारे एक नई शुरुआत की। उसने शहर की एक नर्सरी में काम शुरू किया, अपने ज्ञान और मेहनत से फार्म हाउस का कारोबार बड़ा कर दिया। जिन्दगी ने उसे फिर से ऊँचाइयों पर पहुँचा दिया और उसने एक बड़ी एग्रो कंपनी स्थापित की।

इधर, पूजा और विक्रम ने ऐशो-आराम से जीवन बिताया, लेकिन जल्दी ही गलत फैसलों, विक्रम की सट्टेबाजी और लापरवाही से सबकुछ बर्बाद हो गया। पूजा फिर अकेली और गरीब हो गई। विक्रम भी उसे छोड़ गया। अंत में, पूजा को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह रोती-बिलखती अपने भाई प्रेम के पास जा पहुँची।

प्रेम ने उसे गले लगाकर माफ कर दिया, लेकिन एक शर्त रखी: “तुम्हें मेहनत से मेरी कंपनी में काम करना होगा और अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना होगा।” पूजा ने सच्चे मन से मेहनत की, और भाई की मदद से फिर से सम्मान और अपने रिश्ते की गर्माहट वापस पा ली।

समय के साथ, प्रेमभूमि ऑर्गेनिक्स नाम की कंपनी देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बन गई। पूजा अब उसकी डायरेक्टर थी, उसकी आँखों में बस भाई के लिए प्यार और सम्मान था, लालच नहीं।