नेहा शर्मा: एक बेटी की हिम्मत और इंसाफ की कहानी
बाजार की भीड़ में दो महिलाएं धीरे-धीरे चल रही थीं। एक थी कमला देवी, जो लगभग 60 साल की थीं और नीली साड़ी पहने हुए थीं। उनके साथ चल रही थीं उनकी बेटी, नेहा, जो साधारण जींस और कुर्ती में थी। आज वह एसपी नेहा शर्मा नहीं थी, बल्कि अपनी मां की बिटू थी। कई महीनों बाद उन्हें यह मौका मिला था कि वे अपनी मां का हाथ थाम कर यूं बाजार में घूम सकें।
कमला देवी ने एक ठेले पर सजी ताजा सब्जियों को देखकर कहा, “देख नेहा, कितनी ताजा पालक है। तेरे पापा को बहुत पसंद थी।” नेहा मुस्कुराई, “हां मां, और आप हमेशा पालक पनीर ही बनाती थीं।” दोनों मां-बेटी हंसते-खिलखिलाते आगे बढ़ीं। अचानक, माहौल में बदलाव आया। बाजार के अंदर से पुलिस की जीपों के सायरन गूंजने लगे। लोग डर कर इधर-उधर देखने लगे।
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एक हवलदार जीप से उतरकर चिल्लाया, “हट जाओ, रास्ता खाली करो!” उसकी आवाज में घमंड था। दुकानदारों ने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटना शुरू कर दिया। नेहा ने अपनी मां का हाथ कसकर पकड़ लिया। उसे पता था कि यह प्रोटोकॉल गलत है। तभी उसकी नजर एक बूढ़ी अम्मा पर पड़ी, जो अमरूद बेच रही थी।
एक पुलिस वाले ने उस पर चिल्लाया, “ए बुढ़िया, हट क्यों नहीं रही?” उसने अपनी लात से बूढ़ी अम्मा की टोकरी को लात मार दी। अमरूद सड़क पर बिखर गए। कमला देवी के चेहरे पर आंसू आ गए। नेहा का खून खौल उठा। वह उस पुलिस वाले की तरफ बढ़ने लगी, लेकिन उसकी मां ने उसका हाथ पकड़ लिया। “बेटा, चुप रह। मैं नहीं चाहती कि कोई बखेड़ा खड़ा हो।”

नेहा ने गहरी सांस ली और अपनी मां को दूसरी तरफ ले जाने लगी। लेकिन उसके दिल में आग लगी हुई थी। अचानक, नेहा ने अपने गुस्से को पी लिया। उसने अपनी मां को एक पुरानी दुकान के बाहर बक्से पर बैठाया और खुद सब्जियां लेने गई। जैसे ही वह सब्जियों के ठेले के पास पहुंची, उसने देखा कि बलबीर यादव, एक घमंडी इंस्पेक्टर, अपनी मूछों पर ताव दे रहा था।
नेहा ने देखा कि बलबीर ने अपनी पूरी ताकत से कमला देवी को थप्पड़ मारा। यह दृश्य नेहा के लिए असहनीय था। उसने बलबीर की तरफ बढ़ते हुए कहा, “तुमने मेरी मां पर हाथ उठाया।” बलबीर ने उसे घूरते हुए कहा, “तू क्या कर लेगी?”
नेहा ने अपनी पहचान छिपाने का फैसला किया। “किस कानून ने तुम्हें यह अधिकार दिया कि तुम एक बूढ़ी औरत पर हाथ उठाओ?” बलबीर ने उसे धमकी दी, “चल, जीप में बैठ।” लेकिन नेहा ने कहा, “मैं कहीं नहीं जा रही। तुम्हें माफी मांगनी होगी।”
नेहा ने एक ऑटो रोका और अपनी मां को घर भेज दिया। फिर उसने अपने मोबाइल पर डीएसपी को मैसेज किया, “डीएसपी सर, जनता मार्केट में इंस्पेक्टर बलवीर यादव ने मेरी मां पर हाथ उठाया है।” नेहा ने अपनी पहचान छिपाने का फैसला किया।
जब बलबीर ने जीप को हाईवे पर चलाया, तभी पुलिस की दूसरी गाड़ियां रास्ता रोकने के लिए आईं। बलबीर और उसके हवलदारों को घेर लिया गया। डीएसपी कुलदीप सिंह ने बलबीर को बाहर खींचा और गुस्से से कहा, “तुमने एसपी मैडम पर हाथ उठाया है?”
नेहा ने बलबीर की तरफ देखा और कहा, “तुम्हें सजा मिलेगी।” बलबीर ने कहा, “यह सब झूठ है,” लेकिन नेहा ने उसे सस्पेंड करने का आदेश दिया।
इंक्वायरी हॉल में बलबीर के खिलाफ सबूतों की कमी नहीं थी। जब बूढ़ी अम्मा और दुकानदार राम भरोसेल ने अपनी गवाही दी, तो बलबीर का चेहरा पसीने से तर हो गया। अंत में, डीआईजी ने कहा, “आपकी वर्दी को दागदार करने के लिए आपको बर्खास्त किया जाता है।”
नेहा ने बूढ़ी अम्मा के हाथों को अपने हाथ में लिया और कहा, “अब आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं है।” उस दिन नेहा ने सिर्फ अपनी मां का सम्मान नहीं किया, बल्कि पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया।
जब नेहा घर लौटी, तो कमला देवी ने उसे गले लगाया और कहा, “बिटू, तूने आज मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है।” नेहा ने मुस्कुराते हुए कहा, “अब आपको किसी से डरने की जरूरत नहीं।”
इस कहानी ने साबित कर दिया कि सच्चाई की ताकत हमेशा जीतती है।
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