सादा कपड़ों में SP मैडम साड़ी खरीदने पहुंची | दुकानदार ने पुलिस बुला ली….
यह कहानी है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की, जहाँ पुलिस विभाग की कमान हाल ही में एसपी रजनी वर्मा ने संभाली थी। रजनी वर्मा को उनके अटूट ईमानदारी और न्याय के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता था। वह जहाँ भी जाती, अपने काम से एक मिसाल कायम करती थीं। उनकी कार्यशैली इतनी स्पष्ट थी कि भ्रष्टाचारी अधिकारी उनसे दूर भागते थे। उनकी नियुक्ति को अभी एक दिन ही हुआ था कि उनके छोटे भाई आलोक उनसे मिलने लखनऊ पहुंचे। आलोक के चेहरे पर आने वाली शादी की रौनक थी। दिवाली से पहले ही उसका विवाह तय हुआ था और वह अपनी बहन को शादी में अपने साथ ले जाने के लिए आया था।
भाई का प्यार
“दीदी, अगर आप मेरी शादी में नहीं आई, तो मैं बिल्कुल शादी नहीं करूंगा,” आलोक ने बचपन की तरह जिद करते हुए कहा। एसपी रजनी वर्मा ने अपने भाई के प्रेम को प्राथमिकता दी। उनका पूरा परिवार अभी लखनऊ शिफ्ट नहीं हुआ था और दफ्तर का काम भी बहुत था। लेकिन भाई के स्नेह के आगे वह रुक नहीं पाईं। “ठीक है मेरे भाई,” रजनी ने मुस्कुराते हुए कहा। “तुम चिंता मत करो। मैं जरूर तुम्हारी शादी में आऊंगी। तुम अपनी तैयारी करो। मैं कल शाम तक तुम्हारे यहां पहुंच जाऊंगी।”
शादी की तैयारी
भाई से वादा करने के बाद अगले दिन सुबह-सुबह एसपी रजनी वर्मा शादी और दिवाली के लिए कपड़े खरीदने की तैयारी करने लगीं। उन्होंने सोचा कि वह एक अधिकारी के तौर पर नहीं बल्कि एक सामान्य नागरिक के तौर पर बाजार जाएंगी। वह देखना चाहती थीं कि बिना वर्दी और बिना पद की शक्ति के एक आम नागरिक को बाजार में कैसा अनुभव मिलता है। उन्होंने अपनी सरकारी गाड़ी और वर्दी को छोड़कर एक साधारण सूती सलवार कमीज पहनी और अपनी पर्सनल गाड़ी लेकर लखनऊ के व्यस्त बाजार में निकल पड़ीं।
बाजार की सैर
उनका लक्ष्य था बिना किसी दिखावे के एक अच्छी साड़ी खरीदना। पहले वह कई बड़ी दुकानों पर गईं, लेकिन उन्हें कोई साड़ी पसंद नहीं आई। ऐसे ही घूमते-घूमते उन्हें 2-3 घंटे हो चुके थे। अंत में वह एक अपेक्षाकृत छोटी पर काफी भीड़ वाली दुकान पर पहुंचीं, जिसका नाम था “सुरेश साड़ी भंडार।” दुकान के मालिक सुरेश एक अनुभवी व्यापारी थे, जिनका ग्राहकों के प्रति व्यवहार बहुत मीठा था। काफी साड़ियां देखने के बाद रजनी वर्मा को एक गहरे रंग की बेहतरीन रेशमी साड़ी पसंद आई।
“अंकल, इस साड़ी का दाम क्या है?” रजनी ने पूछा। सुरेश ने तुरंत कहा, “मैडम, हमारी दुकान का नियम है फिक्स रेट। आपने बाहर बोर्ड पर देखा होगा। इस साड़ी का दाम ₹3500 है। ₹1 भी कम नहीं होगा।” रजनी को फिक्स रेट का सिद्धांत पसंद आया। उन्होंने बिना मोलभाव किए तुरंत ₹3500 निकालकर सुरेश को दे दिए। सुरेश ने फटाफट नोट गिने और उन्हें दराज में बंद करके साड़ी पैक कर दी।
साड़ी में खामी
साड़ी लेकर रजनी संतुष्ट होकर दुकान से बाहर निकलीं और पास की ही एक छोटी दुकान पर कुछ और एक्सेसरीज खरीदने के लिए रुक गईं। यहीं पर कहानी ने अप्रत्याशित मोड़ लिया। चूड़ी की दुकान में जल्दबाजी में रजनी के हाथ से साड़ी वाला थैला फिसल कर जमीन पर गिर गया और साड़ी बाहर निकलकर थोड़ी फैल गई। जैसे ही रजनी ने साड़ी उठाई, उनकी तेज और पैनी नजर ने साड़ी के कपड़े में एक स्पष्ट डिफेक्ट देखा। उन्होंने साड़ी को पूरी तरह फैला कर देखा और पाया कि साड़ी में कई जगह धागों के गुच्छे, लूप्स और धागे के टूटे हुए सिरे थे, जिसे कपड़ा उद्योग में खासर या मैन्युफैक्चरिंग डिफेक्ट कहते हैं। यह ₹3500 की साड़ी में एक गंभीर कमी थी जो उसकी गुणवत्ता को पूरी तरह खराब कर रही थी।
“यह तो सरासर धोखा है,” रजनी ने मन ही मन सोचा। उन्होंने तुरंत अपनी बाकी की खरीदारी रोकी और गुस्से पर काबू रखते हुए वापस सुरेश साड़ी भंडार पहुंचीं। उन्होंने साड़ी सुरेश के सामने मेज पर रखते हुए कहा, “अंकल, यह साड़ी डिफेक्टिव है। इसमें खासर है। मुझे कोई और साड़ी पसंद नहीं आई। इसलिए आप यह साड़ी वापस लीजिए और मेरे पैसे लौटा दीजिए।”
व्यापारी की कठोरता
सुरेश का चेहरा तुरंत बदल गया। वह तुरंत सौम्य व्यापारी से कठोर व्यापारी बन गया। डिफेक्ट स्पष्ट था पर वह पैसे वापस करने से बचना चाहता था। उसने तुरंत काउंटर के पास चिपके एक छोटे से पर्चे की ओर इशारा किया जिस पर लिखा था, “बिका हुआ माल वापस नहीं होगा, केवल बदला जाएगा। मैडम, यही हमारा नियम है। माल एक बार बिक गया तो बिक गया। आप इसे बदल सकती हैं लेकिन पैसे वापस नहीं होंगे।” सुरेश ने हकड़ कर कहा।
“यह गलत है अंकल। यह डिफेक्टिव माल है। यह आपकी गलती है। उपभोक्ता कानून का उल्लंघन क्यों कर रहे हैं आप?” रजनी ने अपनी बात समझानी चाही। “बहस मत करो मैडम। आपको दूसरी लेनी है तो लो वरना जाओ। मैं अपने नियम नहीं तोडूंगा,” सुरेश ने चिल्लाकर कहा। रजनी ने अपनी आखिरी दलील दी। “ठीक है। लेकिन मैं इसे अभी तक घर नहीं ले गई हूं। मैं यहीं पास की दुकान पर गई थी और वहीं यह डिफेक्ट सामने आया। यह ग्राहक का नुकसान क्यों हो?”
लेकिन सुरेश अपनी बात पर अडिग रहा और बोला, “नहीं मैडम, यह साड़ी वापस नहीं होगी। आप चाहे जो कर लो।” रजनी वर्मा जानती थीं कि अब यह सिर्फ पैसे का मामला नहीं है। यह आम नागरिक के साथ हो रहे अन्याय का मामला है। उन्होंने दृढ़ता से कहा, “यह साड़ी आपको वापस करनी होगी वरना मैं यहां से नहीं जाने वाली।” ऐसा कहकर वह दुकान के कोने में बैठ गईं।
पुलिस की धमकी
सुरेश को यह देखकर बहुत गुस्सा आया कि एक महिला उसकी दुकान में हंगामा कर रही है। उसने तुरंत उन्हें पुलिस की धमकी दी। “या तो आप यहां से चली जाएं वरना मैं पुलिस को बुला लूंगा और फिर देख लेना। आपको जेल की हवा खानी पड़ेगी। यहां सीसीटीवी कैमरे भी लगे हुए हैं। आपका हंगामा रिकॉर्ड हो रहा है।” एसपी रजनी वर्मा के चेहरे पर एक मुस्कान आई। उन्हें वह मौका मिल गया था जिसका उन्हें इंतजार था। “ठीक है अंकल,” रजनी ने शांत आवाज में कहा। “तुम पुलिस को ही बुला लो। कोई बात नहीं। वही आकर हमारा फैसला कर देगी।”
सुरेश ने तुरंत फोन लगाया और थाने में शिकायत की। रजनी वर्मा अपने मन में सोच रही थीं कि पुलिस आते ही उन्हें पहचान लेगी या कम से कम एक साधारण नागरिक के साथ ईमानदारी से पेश आएगी। थोड़ी देर बाद दरोगा महेंद्र सिंह दो हवलदारों के साथ दुकान पर पहुंचे। सुरेश ने तुरंत दरोगा को एक तरफ ले जाकर फुसफुसाते हुए शिकायत बताई और बड़ी चालाकी से अपने हाथ में दबे हुए रिश्वत के नोट दरोगा की जेब में खिसका दिए।

रिश्वतखोरी का पर्दाफाश
एसपी रजनी वर्मा ने अपनी आंखों से खुलेआम हो रही रिश्वतखोरी को देखा। उनकी रणनीति अब पूरी तरह से पक्की हो गई थी। रिश्वत लेने के तुरंत बाद दरोगा महेंद्र सिंह का रवैया पूरी तरह से क्रूर हो गया। वो सीधे रजनी के पास आया और अपमानजनक स्वर में चिल्लाया, “ए औरक, क्या तमाशा लगा रखा है? यहां लिखा है कि माल वापस नहीं होगा तो तू क्यों नहीं मानती? तू क्या कानून से बड़ी है?”
रजनी ने शांत रहकर अपनी बात रखी। “दरोगा जी, इस साड़ी में डिफेक्ट है। दुकानदार ने झूठा माल बेचा है। आपको दुकानदार के खिलाफ एक्शन लेना चाहिए।” दुकानदार सुरेश बीच में आया और झूठा आरोप लगाया। “साहब, यह झूठ बोल रही है। हो सकता है इसने साड़ी बदल कर ले आई हो। यह मुझे ब्लैकमेल कर रही है।”
रजनी ने अपनी आखिरी दलील दी। “दरोगा जी, आप सीसीटीवी फुटेज चेक कर लीजिए। मैं अभी यहीं पास से आई हूं। अगर मैंने साड़ी बदली है तो फुटेज में दिख जाएगा। यह दुकानदार झूठा है।” दरोगा महेंद्र सिंह, जिसने रिश्वत ले ली थी, वो अब इस मामले को रफादफा करना चाहता था। उसने फुटेज चेक करने या जांच करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। “चुप कर, तू मुझे कानून मत सिखा। ज्यादा बकवास की तो तुझे गिरफ्तार कर लूंगा। तूने सरकारी काम में बाधा डाली और दुकानदार को परेशान किया है।”
गिरफ्तारी का आदेश
एसपी रजनी वर्मा ने तुरंत दरोगा की चुनौती स्वीकार की। “ठीक है दरोगा जी, अगर ऐसी बात है तो आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए। मैं भी तो देखूं कि आप मुझे बिना वजह कैसे बंद कर सकते हैं।” दरोगा महेंद्र सिंह उसकी चुनौती सुनकर आग बबूला हो गया। उसने तुरंत हवलदार को आदेश दिया, “चल, उठा रे इसे। इसे पकड़कर जीप में बिठाओ और थाना लेकर चलो। एक रात हवालात की हवा खाएगी तो इसे पता चलेगा कि कायदा कानून क्या होता है।”
हवलदार जैसे ही रजनी की ओर बढ़ा, रजनी वर्मा ने एक और कानूनी दाव चला। “दरोगा जी,” रजनी ने जोर देकर कहा, “आप कानून के रक्षक हैं। आपको इतना भी नहीं पता कि किसी भी महिला को गिरफ्तार करते वक्त एक महिला पुलिस अधिकारी का होना अनिवार्य है। आप बिना महिला कांस्टेबल के मुझे गिरफ्तार नहीं कर सकते।”
यह सुनकर दरोगा का गुस्सा चरम पर पहुंच गया। उसे लगा कि यह महिला उसे सबके सामने नीचा दिखा रही है। भीड़ जमा हो चुकी थी। उसने तुरंत वायरलेस पर एक महिला कांस्टेबल को दुकान पर आने का संदेश दिया। उसे लगा कि महिला कांस्टेबल के आते ही वह इस महिला को सबक सिखा देगा। कांस्टेबल पूजा वहां पहुंची। दरोगा ने उसे आदेश दिया, “पूजा, इसे पकड़ो और जीप में बिठाओ। थाने ले चलो। इसने दुकानदार को बहुत परेशान किया है।”
महिला कांस्टेबल पूजा ने दरोगा के आदेश का पालन किया और एसपी रजनी वर्मा को पकड़कर पुलिस जीप में बिठा दिया। बाजार के अंदर सभी लोग यह सब कुछ हैरानी और खामोशी के साथ देख रहे थे। पुलिस के सामने भला कौन बोलेगा? यही सोचकर सब लोग चुप रहे। एसपी रजनी वर्मा, जो एक दिन पहले ही शहर की कमान संभालने वाली अधिकारी थीं, उन्हें एक आम मुजरिम की तरह पुलिस जीप में बैठाकर थाने ले जाया गया।
थाने में घटनाक्रम
जैसे ही एसपी रजनी वर्मा थाने पहुंचीं, दरोगा महेंद्र सिंह ने बिना किसी पूछताछ या लिखापढ़ी के उन्हें सीधे लॉकअप में बंद करने का आदेश दिया। लेकिन थाने में एक अप्रत्याशित घटना हुई। थ
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