सुपर मार्किट की गरीब सेल्सगर्ल ने अरबपति महिला का गुम हुआ हीरों का हार लौटाया, फिर उसने जो किया
ईमानदारी की चमक और अरबपति की बहू
1. पूजा की दुनिया और गायत्री देवी का वैभव
गुलाबी शहर जयपुर की भीड़भाड़ वाली मानसरोवर कॉलोनी में स्थित बिग मार्ट सुपरमार्केट की चमकदार रोशनी में एक छोटी सी, पर बहुत मेहनती दुनिया बसती थी—वह थी पूजा की दुनिया। 23 साल की पूजा ग्रोसरी सेक्शन की एक सेल्स गर्ल थी। सांवला, पर सलोना रंग, बड़ी-बड़ी गहरी और ईमानदार आँखें, और चेहरे पर एक शांत मुस्कान जो उसकी ज़िंदगी के तूफानों को बड़ी ख़ूबी से छिपा लेती थी।
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पूजा के लिए यह 10,000 रुपये की मासिक तनख्वाह एक जीवन रेखा थी। उसके पिता, एक ईमानदार सरकारी क्लर्क, कुछ साल पहले एक हादसे में गुजर गए थे। अब घर की सारी ज़िम्मेदारी उसके नाजुक कंधों पर थी। घर में उसकी बूढ़ी, शुगर और दिल की बीमारी से पीड़ित माँ शारदा, और उसकी छोटी बहन रिया थी, जो इंजीनियर बनने का सपना देखती थी। माँ की महँगी दवाइयाँ, रिया की पढ़ाई का खर्च और घर का किराया—सब कुछ इसी छोटी सी तनख्वाह से निकालना किसी चमत्कार से कम नहीं था। पूजा ने अपने पिता की एक सीख को हमेशा याद रखा था: “बेटी, हालात कितने भी बुरे हों, अपनी ईमानदारी का दामन कभी मत छोड़ना। हमारी असली दौलत हमारा चरित्र है।”
दूसरी तरफ, इसी शहर के सबसे पॉश इलाके, सिविल लाइंस में ओबेरॉय मेंशन किसी राजमहल से कम नहीं था। यह घर था श्रीमती गायत्री देवी ओबेरॉय का, जो 60 साल की उम्र में भी ओबेरॉय ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की मालकिन थीं। उनके पास दौलत, शोहरत और रुतबा सब कुछ था, पर मन का सुकून नहीं था।
उनके पति की आख़िरी निशानी थी—एक बेशकीमती हीरे और पन्ने का हार, जो उन्होंने उन्हें 25वीं सालगिरह पर दिया था। यह सिर्फ़ गहना नहीं, उनके अटूट प्रेम का प्रतीक था।
गायत्री देवी को अपने इकलौते बेटे आरव की चिंता सताती रहती थी। आरव दिल का अच्छा था पर दुनियादारी से बेख़बर। गायत्री देवी अपने बेटे के लिए एक ऐसी बहू चाहती थीं जो संस्कारी और ईमानदार हो—जो उनके बेटे की दौलत को नहीं, बल्कि उनके परिवार को संभाले।
2.एक नेक इरादा और किस्मत का मोड़
किस्मत ने इन दो अलग-अलग दुनियाओं को एक ही बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया। एक दिन पूजा के सुपरमार्केट के बाहर गायत्री देवी की करोड़ों की बेंटली गाड़ी आकर रुकी। गायत्री देवी को पूजा के ग्रोसरी सेक्शन में कुछ ख़ास और दुर्लभ चीज़ें ख़रीदनी थीं।
जैसे ही गायत्री देवी, अपनी महँगी सिल्क की साड़ी और उस बेशकीमती हार को पहने, सुपरमार्केट में दाख़िल हुईं, सबकी निगाहें उन पर टिक गईं। मैनेजर दौड़ता हुआ आया। लेकिन गायत्री देवी की नज़रें एक सेल्स गर्ल पर पड़ीं, जो एक बूढ़ी औरत को बड़े ही प्यार और सब्र से सामान ढूंढने में मदद कर रही थी। वह लड़की पूजा थी।
गायत्री देवी उसकी विनम्रता और सेवा भाव से बहुत प्रभावित हुईं और उन्होंने माँग की कि वही लड़की उनकी शॉपिंग में मदद करे। अगले एक घंटे तक पूजा ने पूरी श्रद्धा और विनम्रता से उनकी मदद की।
शॉपिंग ख़त्म होने के बाद, बिलिंग काउंटर की ओर बढ़ते हुए, अचानक किसी वीआईपी के आने की वजह से बाज़ार में अफरा-तफरी मच गई। धक्का-मुक्की में गायत्री देवी का संतुलन बिगड़ा, और इसी अफरा-तफरी में उनके गले से उस हार का हुक खुल गया। वह नीचे गिरकर, पास ही रखी चावल की एक बड़ी बोरी के पीछे जा गिरा। उन्हें पता ही नहीं चला। बिल चुकाकर गायत्री देवी घर चली गईं।
3. अंधेरे कोने में हीरे की चमक
कुछ घंटे बाद, जब पूजा अपने सेक्शन की सफाई कर रही थी और चावल की बोरियों को ठीक से लगा रही थी, तो उसकी नज़र बोरी के पीछे चमकती हुई एक चीज़ पर पड़ी। उसने झुककर उसे उठाया।
वह वही हीरे और पन्ने का हार था। उसकी चमक इतनी तेज़ थी कि पूजा की आँखें चौंधिया गईं। उसने अपनी ज़िंदगी में इतना कीमती गहना कभी नहीं देखा था।
एक पल के लिए उसके दिमाग में एक ख़्याल आया, ‘किसी ने नहीं देखा।’
उसके सामने एक ऐसा तूफान उठा जिसने उसे अंदर तक हिला दिया। उसने सोचा: इस एक हार को बेचकर उसकी सारी मुश्किलें ख़त्म हो सकती हैं। माँ का ऑपरेशन दिल्ली के सबसे बड़े अस्पताल में हो सकता है। रिया का इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन हो सकता है। वह इस किराए की सीलन भरी खोली को छोड़कर अपना एक छोटा सा घर खरीद सकती है।
लालच का एक काला नाग उसके ज़मीर को डसने लगा था। उसने डर के मारे जल्दी से हार को अपनी जेब में डाल लिया। उसका पूरा शरीर पसीने से भीग गया था। उसने सोचा, ‘मैं आज ही यह नौकरी छोड़ दूँगी।’
वह सुपरमार्केट से बाहर निकलने ही वाली थी कि अचानक उसे अपने पिता का कमजोर पर दृढ़ चेहरा याद आया। “बेटी, हमारी सबसे बड़ी दौलत हमारी ईमानदारी है।”
यह शब्द उसके कानों में हथौड़े की तरह लगे। उसके कदम ज़मीन में धँस गए। उसके अंदर एक भयानक जंग छिड़ गई। एक तरफ उसकी गरीबी, उसकी लाचारी, उसकी ज़रूरतें थीं, और दूसरी तरफ उसके पिता के दिए हुए संस्कार, उसका ज़मीर, उसकी ईमानदारी थी।
“मैं यह नहीं कर सकती। यह पाप है, यह चोरी है।”
काफी देर तक वह इसी उधेड़बुन में रही। आख़िरकार, उसकी इंसानियत जीत गई। “नहीं, यह हार मेरा नहीं है। यह किसी की अमानत है और मुझे इसे लौटाना ही होगा।” उसने फ़ैसला किया कि वह यह हार सीधा सुपरमार्केट के मैनेजर मिस्टर गुप्ता को सौंपेगी।
4. ईमानदारी की अग्निपरीक्षा
उधर ओबेरॉय मेंशन में, हार के ग़ायब होने का अहसास होते ही गायत्री देवी के पैरों तले ज़मीन खिसक गई। यह सिर्फ़ गहना नहीं, उनके पति की आख़िरी निशानी थी। उन्होंने फ़ौरन सुपरमार्केट में फ़ोन किया।
मिस्टर गुप्ता को जब पता चला तो उनके हाथ-पैर फूल गए। उन्होंने तुरंत सारे स्टाफ़ को इकट्ठा किया। शक की सुई सबसे पहले पूजा पर गई, क्योंकि आख़िरी बार गायत्री देवी उसी के साथ थीं।
गुप्ता ने पूजा को अपने केबिन में बुलाया। “कहाँ है हार? मुझे पता है वह तुमने ही चुराया है। सच-सच बता दो, वरना मैं तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूँगा।”
“साहब, मैंने चोरी नहीं की है,” पूजा ने काँपती हुई आवाज़ में कहा। “हार मुझे मिला है और मैं उसे लौटाने ही आपके पास आ रही थी।” उसने अपनी जेब से हार निकाला और टेबल पर रख दिया।
गुप्ता की आँखों में एक लालच की चमक आ गई। उसने सोचा, ‘अगर मैं यह हार ख़ुद रख लूँ और इल्ज़ाम इस लड़की पर डाल दूँ…’ उसने कहा, “तुम इसे अपनी जेब में रखकर क्या कर रही थी? तुम इसे लेकर भागने की फ़िराक में थी!”
“नहीं साहब, ऐसा नहीं है!”
तभी केबिन का दरवाज़ा खुला और गायत्री देवी ख़ुद, अपने बेटे आरव के साथ, अंदर दाख़िल हुईं।
“क्या हो रहा है यहाँ?” गायत्री देवी ने अपनी भारी, रसूखदार आवाज़ में पूछा।
गुप्ता ने लपक कर कहा, “मैडम! हमने चोर को पकड़ लिया है। यही है वह लड़की पूजा। इसी ने आपका हार चुराया था!”
गायत्री देवी ने एक नज़र पूजा के डरे हुए, पर सच्चे चेहरे को देखा, और फिर एक नज़र गुप्ता के धूर्त चेहरे को। उन्होंने पूजा से पूछा, “क्या यह सच है, बेटी?”
“नहीं मैडम,” पूजा की आँखों में आँसू थे। “मुझे यह हार चावल की बोरी के पीछे मिला था। मैं तो बस इसे लौटाना चाहती थी।”
गायत्री देवी एक अनुभवी और पारखी औरत थीं। उन्होंने पूजा की आँखों में सच्चाई पढ़ ली। उन्होंने तुरंत CCTV फुटेज मंगवाई। फुटेज में साफ़ दिख रहा था कि कैसे धक्का-मुक्की में हार गिरता है, और फिर पूजा की घबराहट, उसका रोना, उसके मन की कशमकश—सब कुछ रिकॉर्ड हो गया था।
गायत्री देवी अपनी कुर्सी से उठीं। वह धीरे-धीरे चलकर पूजा के पास आईं, उनके सिर पर हाथ रखा। उनकी आँखों में अब एक गहरा सम्मान और ममता थी।
“मुझे माफ़ कर दो, बेटी। हम तुम्हें ग़लत समझ रहे थे।”
गुप्ता को तुरंत नौकरी से निकाल दिया गया और उस पर झूठा इल्ज़ाम लगाने के लिए क़ानूनी कार्यवाही शुरू की गई।
5. दौलत से बड़ा इनाम: बहू का दर्जा
अब गायत्री देवी ने पूजा को अपने पास बिठाया। “बताओ बेटी, तुम्हारी इस ईमानदारी के लिए मैं तुम्हें क्या इनाम दूँ? जो माँगोगी, वो मिलेगा।”
पूजा ने हाथ जोड़ दिए। “नहीं मैडम, मुझे कुछ नहीं चाहिए। आपकी अमानत आप तक पहुँच गई। मेरे लिए यही सबसे बड़ा इनाम है।”
गायत्री देवी मुस्कुराईं। “तुम्हारी यही बात तुम्हें सबसे अलग बनाती है, पूजा।”
जब उन्हें पूजा की पूरी कहानी—उसकी माँ की बीमारी, बहन के सपने—पता चली, तो उनका दिल भर आया। उन्होंने आरव की ओर देखा, जो अब तक चुपचाप यह सब देख रहा था। आरव भी पूजा की सादगी और उसके स्वाभिमान से बहुत प्रभावित था।
गायत्री देवी ने एक ऐसा फ़ैसला लिया जिसने वहाँ मौजूद हर किसी के होश उड़ा दिए। उन्होंने आरव का हाथ पकड़ा और उसे पूजा के सामने लाकर खड़ा कर दिया।
“पूजा बेटी, मैं तुम्हें इनाम में पैसा या नौकरी नहीं देना चाहती। मैं तो तुमसे अपनी सबसे क़ीमती चीज़—अपने इस नादान बेटे का हाथ माँग रही हूँ। मैं चाहती हूँ कि तुम मेरे नादान बेटे की जीवन साथी बनो। मेरी बहू बनो। इस घर की और इस पूरे साम्राज्य की मालकिन बनो।”
मैडम, यह… यह आप क्या कह रही हैं?” पूजा ने काँपती हुई आवाज़ में कहा, “मैं… मैं एक ग़रीब लड़की, और आपके बेटे…”
गायत्री देवी ने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया। “बेटी, गरीबी और अमीरी कपड़ों और मकानों से नहीं, संस्कारों और चरित्र से होती है। और चरित्र की तुम जितनी अमीर हो, उतनी अमीर लड़की मैंने आज तक नहीं देखी। मुझे अपने बेटे के लिए कोई राजकुमारी नहीं, बल्कि तुम्हारे जैसी एक नेक दिल और ईमानदार जीवन साथी ही चाहिए थी।”
आरव भी अपनी माँ के इस फ़ैसले से हैरान तो था, पर बहुत खुश था। उसने आगे बढ़कर पूजा से कहा, “मेरी माँ सही कह रही हैं, पूजा। अगर आप हाँ कहें, तो मैं दुनिया का सबसे ख़ुशकिस्मत इंसान हूँगा।”
उस दिन उस सुपरमार्केट के छोटे से केबिन में दो दिलों का, दो परिवारों का, और दो दुनियाओं का एक ऐसा मिलन हुआ, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी।
अगले ही हफ़्ते बड़ी धूमधाम से पूजा और आरव की शादी हो गई। गायत्री देवी ने पूजा को अपनी बेटी बनाकर रखा, उसकी माँ का अच्छे अस्पताल में इलाज करवाया, और रिया की पढ़ाई का सारा खर्च उठाया। पूजा ने भी अपनी समझदारी और प्यार से उस घर को स्वर्ग बना दिया, आरव को एक बेहतर और ज़िम्मेदार इंसान बनाया, और कुछ सालों बाद ओबेरॉय ग्रुप के व्यापार को आरव के साथ मिलकर नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया। उसने साबित कर दिया कि ईमानदारी दुनिया की सबसे बड़ी दौलत है।
यह कहानी सचमुच दिल को छू लेने वाली है। यह हमें याद दिलाती है कि हमारे चरित्र की क़ीमत हमारी दौलत से कहीं ज़्यादा होती है।
क्या आप चाहेंगे कि हम चर्चा करें कि पूजा ने ओबेरॉय ग्रुप के व्यापार को कैसे संभाला, या शायद उसकी बहन रिया के इंजीनियरिंग कॉलेज में क्या हुआ?
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