सावित्री देवी की कहानी – मां की ममता, बहू की गलती और कर्मों का फल

शहर के शोरगुल से दूर एक शांत मोहल्ले में, जहां हर सुबह चिड़ियों की चहचहाहट से दिन की शुरुआत होती थी, एक साधारण सा घर था। बाहर से देखने पर वह किसी आम भारतीय परिवार जैसा लगता था, लेकिन उस घर की दीवारों के भीतर एक दर्दभरी कहानी पल रही थी – सावित्री देवी की।

सावित्री देवी लगभग 70 वर्ष की थीं। उन्होंने अपने पति को कम उम्र में ही खो दिया था और तब से अपने इकलौते बेटे विकास को अकेले पाला। खेतों में मजदूरी की, दूसरों के घरों में बर्तन मांजे, सिलाई का काम किया, लेकिन कभी विकास की जरूरतों में कमी नहीं आने दी। उन्होंने अपने सपनों को मारकर बेटे के सपनों को पंख दिए।

विकास पढ़ाई में होशियार था। उसने इंजीनियरिंग की डिग्री ली और शहर की प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी पा ली। सावित्री देवी का सीना गर्व से चौड़ा था। जब विकास की शादी कविता से हुई, तो उन्हें लगा अब उनका घर पूरा हो गया है। कविता पढ़ी-लिखी, आधुनिक और शहर की लड़की थी। शुरुआत में कविता बहुत अच्छी थी, सावित्री देवी की सेवा करती, उनके लिए खाना बनाती, कपड़े धोती, प्यार से बात करती।

लेकिन कुछ समय बाद कविता के स्वभाव में बदलाव आने लगा। उसे लगने लगा कि सावित्री देवी उसकी और विकास की आज़ादी छीन रही हैं। कविता को लगता था कि सावित्री देवी का गांव का पहनावा और पुराने विचार उसे शर्मिंदा करते हैं। धीरे-धीरे कविता ने विकास के मन में भी अपनी मां के खिलाफ बातें भरनी शुरू कर दीं। विकास भी अपनी मां से दूर होने लगा।

कविता ने सावित्री देवी को ताने मारना शुरू कर दिया, घर के सारे काम करवाने लगी, और रोज़ बासी खाना देने लगी। सावित्री देवी को बहुत दुख होता, लेकिन वे चुप रहतीं। उन्हें लगता था कि यही उनकी किस्मत है। विकास भी अब मां से बात नहीं करता था, उनकी जरूरतों को अनदेखा करता था।

एक दिन सावित्री देवी की पुरानी सहेली सुमित्रा मिलने आई। उसने सावित्री देवी की हालत देखी, तो बहुत दुख हुआ। सुमित्रा ने विकास से बात करने की कोशिश की, लेकिन विकास ने उसे भी अनदेखा कर दिया। सावित्री देवी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, पेट की समस्याएं, कमजोरी, बुखार – लेकिन कविता और विकास ने उनकी परवाह नहीं की।

तभी कविता गर्भवती हो गई। सब खुश थे, लेकिन कुछ हफ्तों बाद कविता को अजीब सी समस्या होने लगी – उसे ताजे खाने से घृणा होने लगी और सिर्फ बासी खाना ही अच्छा लगता था। डॉक्टरों ने जांच की, लेकिन कोई कारण नहीं मिला। कविता कमजोर होती गई, रोती रहती थी, उसे अपनी गलती का एहसास होने लगा।

एक दिन कविता ने सावित्री देवी से पूछा – “मां जी, मुझे क्या हो गया है?”
सावित्री देवी ने शांत स्वर में कहा – “बहू, जो बोया है वही काट रही हो। तुमने मुझे बासी खाना दिया, मुझे तिरस्कृत किया – अब तुम्हें वही मिल रहा है। यह कर्मों का फल है।”

कविता की आंखों से आंसू बहने लगे। उसने सावित्री देवी से माफी मांगी। विकास ने भी अपनी गलती स्वीकार की और मां से माफी मांगी। सावित्री देवी ने दोनों को गले लगाया और कहा – “मैंने तुम्हें माफ कर दिया है, लेकिन तुम्हें अपनी गलती का एहसास होना चाहिए।”

कविता ने वादा किया कि वह अब अपनी मां की सेवा करेगी। उसने सावित्री देवी के लिए ताजा खाना बनाना शुरू किया, उनके कपड़े धोए, प्यार से बात की। विकास भी अपनी मां की सेवा करने लगा। धीरे-धीरे कविता की हालत में सुधार हुआ। उसे अब ताजे खाने से घृणा नहीं होती थी, पेट की समस्या खत्म हो गई थी। कुछ महीनों बाद कविता ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया। घर में फिर से खुशियां लौट आईं।

सावित्री देवी ने अपने बेटे और बहू का प्यार और सम्मान पाया। उन्होंने अपने जीवन के बाकी दिन खुशी और शांति से बिताए। कविता और विकास ने सीखा कि पैसा सबकुछ नहीं होता, प्यार, सम्मान और इंसानियत सबसे जरूरी है। कर्मों का फल हमेशा मिलता है।