विमान में एक व्यापारी को दिल का दौरा पड़ा, लड़के ने अपनी समझदारी से उसकी जान बचा ली।

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लखनऊ, नवाबों का शहर, अपनी तहजीब, अपनी नजाकत और अपनी धीमी रफ्तार जिंदगी के लिए मशहूर था। इसी शहर की एक पुरानी मध्यमवर्गीय बस्ती में राहुल मिश्रा का परिवार रहता था। राहुल 24 साल का एक होनहार नौजवान था, जिसकी आंखों में बड़े सपने थे, लेकिन किस्मत शायद उससे रूठी हुई थी। वह अपने मां-बाप का इकलौता बेटा था, उनका गर्व। राहुल ने शहर के सबसे अच्छे कॉलेज से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में ग्रेजुएशन किया था, वह भी गोल्ड मेडल के साथ। उसकी मार्कशीट पर लिखे नंबर उसकी काबिलियत की गवाही देते थे।

राहुल के पिता, अशोक मिश्रा, एक छोटी सी सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे। उनकी पेंशन से घर का गुजारा तो चलता था, लेकिन पिछले दो सालों में घर पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। अशोक जी को गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया था, जिसके इलाज में उनकी सारी जमा पूंजी और प्रोविडेंट फंड का पैसा पानी की तरह बह गया था। घर पर कर्ज चढ़ गया था। राहुल की मां, सरला जी, ने अपने गहने तक बेच दिए थे। राहुल नौकरी के लिए दिन-रात मेहनत करता था। वह शहर की हर छोटी-बड़ी कंपनी के दरवाजे पर दस्तक देता, घंटों लाइन में लगकर इंटरव्यू देता। हर इंटरव्यू में उसके ज्ञान और समझ की तारीफ होती, लेकिन नौकरी नहीं मिलती थी। कभी कहते थे “तुम्हारे पास अनुभव नहीं है,” तो कभी “हमारे पास अभी जगह खाली नहीं है।”

धीरे-धीरे राहुल की सारी उम्मीदें टूटने लगी थीं। उसे अपनी गोल्ड मेडल की डिग्री कागज का एक बेकार टुकड़ा लगने लगी थी। घर की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। पिता के इलाज का खर्च, घर का राशन, और सबसे बढ़कर साहूकारों का रोज-रोज दरवाजे पर आकर बेइज्जत करना। राहुल यह सब बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। एक रात उसने अपनी मां को चुपके-चुपके आंगन में बैठकर रोते हुए देखा। उस वक्त उसने एक ऐसा फैसला किया जिसने उसकी रूह को अंदर तक कंपा दिया।

राहुल ने अपने एक दोस्त से बात की, जो दुबई में एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता था। उसने बताया कि वहां मजदूरों की बहुत जरूरत है। काम मुश्किल है, धूप में पत्थर तोड़ने पड़ेंगे, लेकिन महीने के 15-20 हजार रुपये मिलेंगे। राहुल के लिए वह रकम किसी खजाने से कम नहीं थी। उसने अपनी डिग्रियां, अपने सपने सब कुछ एक संदूक में बंद किया और अपने मां-बाप से झूठ बोला कि उसे दुबई की एक बड़ी कंपनी में सुपरवाइजर की नौकरी मिल गई है। उसने एजेंट को पैसे देने और वीजा टिकट का इंतजाम करने के लिए घर का बचा-खुचा सामान भी बेच दिया।

जिस दिन वह दिल्ली एयरपोर्ट के लिए निकल रहा था, उस दिन उसके मां-बाप की आंखों में खुशी के आंसू थे। उन्हें लग रहा था कि उनका बेटा अब उनकी सारी मुश्किलें दूर कर देगा। लेकिन राहुल का दिल जानता था कि वह किसी सुनहरे भविष्य की तरफ नहीं बल्कि एक अंधेरे कुएं में छलांग लगाने जा रहा था।

उसी दिन उसी एयरपोर्ट पर एक और मुसाफिर था। वह था मिस्टर राजवीर सिंघानिया। 50 साल का एक बिजनेस टाइकून, जिसका नाम देश के सबसे अमीर और ताकतवर लोगों में शुमार था। सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज का मालिक राजवीर सिंघानिया ने अपनी मेहनत और बेरहम कारोबारी नीतियों से एक छोटा सा कारोबार शुरू करके उसे ग्लोबल एंपायर में बदल दिया था। उसके लिए रिश्ते, भावनाएं, इंसानियत ये सब किताबी बातें थीं। उसकी दुनिया सिर्फ प्रॉफिट, लॉस, डील और डेडलाइन के इर्द-गिर्द घूमती थी। वह अपने बिजनेस के सिलसिले में दुबई जा रहा था, जहां उसकी एक बहुत बड़ी डील होने वाली थी।

राहुल साधारण सी इकोनॉमी क्लास की लाइन में अपने पुराने से बैग के साथ खड़ा था, जबकि राजवीर सिंघानिया वीआईपी लाउंज में बैठकर अपनी फर्स्ट क्लास की फ्लाइट का इंतजार कर रहा था। दोनों एक ही मंजिल पर जा रहे थे, लेकिन दोनों की दुनिया एक-दूसरे से कोसों दूर थी।

प्लेन ने उड़ान भरी। राहुल खिड़की वाली सीट पर बैठा नीचे छूटते हुए अपने शहर, अपने देश को देख रहा था। उसकी आंखों में आंसू थे। वह सोच रहा था कि क्या वह कभी एक इज्जत की जिंदगी जी पाएगा? क्या वह कभी अपने मां-बाप के सपनों को पूरा कर पाएगा? उसका दिल भारी था, भविष्य अनिश्चित था।

वहीं फर्स्ट क्लास के आलीशान कैबिन में राजवीर सिंघानिया अपने लैपटॉप पर झुका हुआ था। वह अपनी दुबई वाली मीटिंग की प्रेजेंटेशन को आखिरी बार देख रहा था। उसके चेहरे पर तनाव था, बेचैनी थी। पिछले कुछ दिनों से उसे अपने सीने में हल्का सा दर्द महसूस हो रहा था, लेकिन उसने इसे काम के स्ट्रेस का नतीजा समझकर नजरअंदाज कर दिया था। उसके लिए अपनी सेहत से ज्यादा जरूरी उसकी वो डील थी।

प्लेन को उड़ते हुए करीब दो घंटे हो चुके थे। वह अरब सागर के ऊपर से गुजर रहा था। तभी फर्स्ट क्लास के कैबिन में अचानक हड़कंप मच गया। राजवीर सिंघानिया को अपने सीने में तेज असहनीय दर्द महसूस हुआ। सांस लेना मुश्किल हो गया। माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं और वह अपनी कुर्सी से नीचे गिर पड़ा। एयर होस्टेस भागी-भागी आईं। उन्होंने तुरंत घोषणा की कि क्या प्लेन में कोई डॉक्टर है? यहां एक मेडिकल इमरजेंसी है। लेकिन प्लेन में उस वक्त कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था।

केबिन क्रू ने फर्स्ट एड देने की कोशिश की, लेकिन राजवीर की हालत बिगड़ती जा रही थी। उसका चेहरा नीला पड़ने लगा, नब्ज़ डूब रही थी। पायलट ने पास के एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग की इजाजत मांगी, लेकिन उसमें कम से कम 40 मिनट लगते। डॉक्टर जानते थे कि उनके पास 40 सेकंड भी नहीं है।

यह शोर-शराबा इकोनॉमिक क्लास तक पहुंच रहा था। राहुल ने सुना कि किसी को हार्ट अटैक आया है। उसने अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। कॉलेज के दिनों में उसने एनसीसी कैंप के दौरान कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (CPR) की ट्रेनिंग ली थी। यह एक ऐसी जीवन रक्षक तकनीक है जो दिल का दौरा पड़ने पर इंसान की जान बचा सकती है। उसने कभी सोचा नहीं था कि उसे इसका इस्तेमाल असल जिंदगी में करना पड़ेगा।

एक पल के लिए वह झिझका, “मैं कौन होता हूं किसी की जिंदगी में दखल देने वाला?” लेकिन फिर उसके अंदर का इंसान जाग उठा। एक जान जा रही थी और शायद सिर्फ वह उसे बचा सकता था। उसने अपनी सारी झिझक छोड़कर फर्स्ट क्लास कैबिन की तरफ भागा।

वहां का माहौल देखकर उसका दिल दहल गया। एक अमीर, ताकतवर दिखने वाला आदमी मौत और जिंदगी के बीच झूल रहा था। एयर होस्टेस उसे रोकने लगीं, “आप कौन हैं? आप यहां नहीं आ सकते।” राहुल ने घबराई हुई लेकिन दृढ़ आवाज में कहा, “मैं डॉक्टर नहीं हूं, लेकिन मुझे CPR देना आता है। प्लीज मुझे एक मौका दीजिए। हमारे पास वक्त नहीं है।” उसकी आंखों में ऐसी सच्चाई और अर्जेंसी थी कि क्रू मेंबर्स ने उसे रास्ता दे दिया।

राहुल तुरंत राजवीर सिंघानिया के पास घुटनों के बल बैठ गया। उसने उनकी नब्ज़ चेक की, जो लगभग बंद हो चुकी थी। बिना एक पल गवाए उसने CPR देना शुरू किया। अपने दोनों हाथों से एक खास लय में उनके सीने को दबा रहा था। यह बहुत थका देने वाला काम था, लेकिन राहुल अपनी पूरी ताकत और आत्मा से जुटा रहा। वह सिर्फ एक शरीर नहीं, बल्कि एक जिंदगी वापस लाने की कोशिश कर रहा था।

मिनट गुजर रहे थे। हर गुजरता पल एक घंटे जैसा लग रहा था। प्लेन में सन्नाटा छा गया था। हर कोई सांस रोके उस लड़के को देख रहा था जो एक अजनबी की जान बचाने के लिए अपनी पूरी जान लगा रहा था। करीब दस मिनट की लगातार मशक्कत के बाद चमत्कार हुआ। राजवीर के शरीर में हल्की हरकत हुई। उसने लंबी गहरी सांस ली। उसकी आंखें खुलीं। पूरे प्लेन में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी। एयर होस्टेस की आंखों में खुशी के आंसू थे। राहुल पसीने से तर-बतर, हाफता हुआ वहीं जमीन पर बैठ गया। उसे लगा जैसे उसने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई जीत ली हो।

प्लेन ने दुबई में इमरजेंसी लैंडिंग की। एयरपोर्ट पर पहले से ही एंबुलेंस और मेडिकल टीम तैयार थी। राजवीर को तुरंत शहर के सबसे अच्छे अस्पताल ले जाया गया। उस आपाधापी में किसी ने राहुल पर ध्यान नहीं दिया। जब सब कुछ शांत हुआ, तो राहुल चुपचाप उठा और इमीग्रेशन की लाइन में जाकर खड़ा हो गया। उसने कोई श्रेय लेने की कोशिश नहीं की। उसने सिर्फ अपना फर्ज निभाया था और अब वह अपनी मजबूरी की मंजिल की तरफ बढ़ रहा था।

अस्पताल में डॉक्टरों ने बताया कि राजवीर को बड़ा हार्ट अटैक आया था। अगर समय पर CPR नहीं मिलता, तो बचना नामुमकिन था। उस लड़के ने सचमुच उनकी जान बचाई थी।

दो दिन बाद जब राजवीर को होश आया और पूरी बात पता चली, तो वह हैरान रह गए। वह जो हमेशा मानते थे कि पैसा ही भगवान है, आज एक ऐसे लड़के की वजह से जिंदा थे जिसे वह जानते तक नहीं थे। उन्हें अपने ऊपर शर्मिंदगी महसूस हुई। उन्हें याद आया कि कैसे वह अपनी सेहत को नजरअंदाज करके सिर्फ एक डील के पीछे भाग रहे थे। मौत को इतने करीब से देखने के बाद उन्हें जिंदगी की कीमत समझ में आई।

उनके मन में सिर्फ एक ही बात थी, “वो लड़का कौन था? वह फरिश्ता कौन था जिसने मुझे दूसरी जिंदगी दी?” वे उससे मिलना चाहते थे, उसका शुक्रिया अदा करना चाहते थे।

उन्होंने एयरलाइन कंपनी से संपर्क किया। कंपनी ने रिकॉर्ड्स चेक करके बताया कि लड़के का नाम राहुल मिश्रा था। राजवीर ने अपने दुबई ऑफिस के सबसे बड़े मैनेजर को बुलाया और कहा, “मुझे यह लड़का चाहिए। राहुल मिश्रा को ढूंढकर मेरे सामने लाओ।”

यह काम आसान नहीं था। दुबई में लाखों भारतीय मजदूर काम करते हैं। उनमें से किसी एक राहुल को ढूंढना समंदर में मोती खोजने जैसा था। सिंघानिया की टीम ने अपनी पूरी ताकत लगा दी। लेबर कैंपों, कंस्ट्रक्शन साइट्स पर हर जगह राहुल की तस्वीर दिखाकर पूछताछ की।

इधर राहुल की जिंदगी एक नरक बन चुकी थी। वह दुबई की चिलचिलाती धूप में एक बड़ी कंस्ट्रक्शन साइट पर पत्थर तोड़ने का काम कर रहा था। उसका शरीर हर रोज टूटता था। लेकिन वह अपने घर पैसे भेजने के लिए यह सब सह रहा था। वह अफसर उस प्लेन वाली घटना को याद करता, सोचता कि वह अमीर आदमी अब कैसा होगा? क्या वह जिंदा भी होगा? लेकिन फिर वह अपनी हकीकत की दुनिया में वापस आ जाता।

एक हफ्ता बीत गया। सिंघानिया की टीम को राहुल का कोई सुराग नहीं मिला। राजवीर की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उन्हें लग रहा था कि शायद वह अपने उस जीवनदाता से कभी नहीं मिल पाएंगे।

आखिरकार एक दिन एक छोटा सा सुराग मिला। एक लेबर कैंप के सुपरवाइजर ने राहुल की तस्वीर पहचानी, “हां, यह लड़का हमारे ही कैंप में रहता है। नया आया है लखनऊ से।”

अगले ही पल राजवीर की चमचमाती रोल्स रॉयस उस गंदे, ठूले लेबर कैंप के बाहर आकर रुकी। राजवीर, जो कभी ऐसे इलाकों की तरफ देखना भी पसंद नहीं करते थे, आज खुद चलकर वहां आए थे।

जब मैनेजर ने राहुल को बताया कि कोई बड़ा साहब उससे मिलने आया है, तो राहुल डर गया। उसे लगा कि शायद उसने कोई गलती कर दी है और अब उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। वह डरते-डरते अपने पसीने और धूल से सने कपड़ों में उस शानदार गाड़ी के पास पहुंचा।

गाड़ी का शीशा नीचे उतरा। अंदर जो शख्स बैठा था, उसे देखकर राहुल के होश उड़ गए। वह वही आदमी था जिसकी जान उसने प्लेन में बचाई थी। राजवीर भी राहुल को देखकर हैरान रह गए। यह लड़का इतना पढ़ा-लिखा, होशियार दिखने वाला लड़का यहां मजदूरी कर रहा था।

राजवीर गाड़ी से बाहर निकले। उन्होंने राहुल को ऊपर से नीचे तक देखा। उनकी आंखों में एक अजीब सी पीड़ा और गहरा सम्मान था। वे कुछ बोल पाते उससे पहले ही उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। वे आगे बढ़े और राहुल को कसकर गले लगा लिया, “मैं तुम्हें कहां-कहां नहीं ढूंढता रहा बेटे।”

राहुल हक्का-बक्का खड़ा था, कुछ समझ नहीं पा रहा था। राजवीर राहुल को अपने साथ अपने आलीशान होटल ले गए। उन्होंने उसे बिठाया और उसकी पूरी कहानी सुनी। जब उन्होंने राहुल की काबिलियत, उसकी मजबूरी और परिवार के बलिदान के बारे में सुना, तो उनका दिल भर आया। उन्हें एहसास हुआ कि यह लड़का सिर्फ एक जीवनदाता ही नहीं, बल्कि एक ऐसा हीरा है जिसे दुनिया ने धूल में फेंक दिया था।

उन्होंने उसी वक्त फैसला किया, “बेटा, तुम्हारी जगह यहां इन रेगिस्तानों में पत्थर तोड़ने की नहीं है। तुम्हारी जगह मेरे साथ इंडिया में है।” उन्होंने तुरंत राहुल के एजेंट को फोन करके उसका कॉन्ट्रैक्ट कैंसिल करवाया। सारा हिसाब-किताब किया और अगले ही दिन की फ्लाइट से राहुल को अपने प्राइवेट जेट में बिठाकर भारत ले आए।

जब राहुल वापस लखनऊ पहुंचा, तो उसके मां-बाप हैरान रह गए। और जब राजवीर सिंघानिया जैसी बड़ी हस्ती खुद उनके घर आई, तो वे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पाए। राजवीर ने हाथ जोड़कर कहा, “मैं आपकी अमानत आपको वापस लौटाने आया हूं। आपके बेटे ने मुझे एक नई जिंदगी दी है। आज से यह सिर्फ आपका नहीं, मेरा भी बेटा है। और इसकी सारी जिम्मेदारियां मेरी हैं।”

उन्होंने अशोक जी के इलाज के लिए देश के सबसे बड़े डॉक्टरों का इंतजाम किया, सारा कर्ज चुका दिया। राहुल के सामने उन्होंने ऐसा प्रस्ताव रखा कि राहुल के होश उड़ गए, “बेटा, मैं जानता हूं कि तुम बहुत काबिल हो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरी कंपनी ज्वाइन करो। मैं तुम्हें कोई छोटी-मोटी नौकरी नहीं, बल्कि अपनी मुंबई की सबसे बड़ी ब्रांच का जनरल मैनेजर बनाना चाहता हूं।”

राहुल कांपती आवाज में बोला, “सर, मेरे पास तो कोई अनुभव नहीं है। इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे? मुझे अनुभव नहीं, ईमानदारी और काबिलियत चाहिए। और वह तुम में कूट-कूट कर भरी है।”

जिस लड़के ने 300 फीट की ऊंचाई पर बिना किसी साधन के एक मरते हुए आदमी की जान बचाने का फैसला लिया, वह जिंदगी की किसी भी चुनौती का सामना कर सकता है। राजवीर ने कहा, “मुझे तुम पर पूरा भरोसा है।”

उस दिन उस छोटे से घर में खुशी के आंसुओं की बरसात हो रही थी। राहुल को लग रहा था जैसे वह कोई सपना देख रहा हो।

राहुल मुंबई आ गया। उसने सिंघानिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के जनरल मैनेजर का पदभार संभाला। शुरुआत में कंपनी के बड़े-बड़े विदेशी विश्वविद्यालय से पढ़े अधिकारियों ने उसे स्वीकार नहीं किया। उन्होंने उसका मजाक उड़ाया, “एक मामूली लड़का जिसे सिर्फ मालिक की जान बचाने की वजह से इतनी बड़ी कुर्सी मिल गई।”

लेकिन राहुल ने अपनी मेहनत, लगन और अनोखी सोच से जल्दी सबको गलत साबित कर दिया। उसने कंपनी में ऐसे बदलाव किए, नए आइडियाज लागू किए जिनके बारे में किसी ने सोचा भी नहीं था। वह सिर्फ एयर कंडीशंड कैबिन में बैठकर फैसले नहीं लेता था, फैक्ट्री के मजदूरों के साथ बैठकर उनकी समस्याएं सुनता था। उसने कुछ ही सालों में कंपनी का मुनाफा दोगुना कर दिया।

राजवीर सिंघानिया बदल चुके थे। वे अब सिर्फ एक बेरहम बिजनेसमैन नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और नेकदिल इंसान बन गए थे। वह अपना ज्यादातर समय समाज सेवा में लगाते थे। उन्होंने राहुल को सिर्फ अपना मैनेजर ही नहीं, बल्कि अपना बेटा, अपना वारिस मान लिया था।

राजवीर अक्सर कहते थे, “मैंने अपनी जिंदगी में हजारों डील की हैं, लेकिन सबसे मुनाफे का सौदा उस दिन हुआ जब मैंने अपनी जिंदगी के बदले में एक हीरा खरीदा।”

यह कहानी हमें सिखाती है कि नेकी का एक छोटा सा काम भी कभी व्यर्थ नहीं जाता। राहुल ने बिना किसी स्वार्थ के एक जान बचाई, और उस नेकी ने उसकी पूरी जिंदगी बदल दी। यह कहानी याद दिलाती है कि इंसान की असली पहचान उसकी डिग्री या नौकरी से नहीं, बल्कि उसके चरित्र और इंसानियत से होती है।

राजवीर सिंघानिया ने राहुल की डिग्री नहीं, बल्कि उसकी सूझबूझ और नेक दिल को पहचाना और उसे वह मौका दिया जिसका वह हकदार था।

यह कहानी हमें प्रेरणा देती है कि कभी भी अपने आप को कम मत समझो, क्योंकि कभी-कभी एक छोटा सा कदम आपकी पूरी जिंदगी बदल सकता है।