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शिवपुर की शेरनी: आईपीएस साक्षी राठौड़ की जंग
शिवपुर शहर की धड़कन अर्जुन चौक था। दिन-रात वहां ट्रकों, गाड़ियों और लोगों की भीड़ लगी रहती थी। लेकिन इस चौराहे की असली पहचान थी—वसूली।
हर ट्रक, ऑटो, टेम्पो को पुलिस के नाम पर पैसे देने पड़ते थे। यह एक खुला खेल था, जिसमें नीचे से ऊपर तक हर अफसर का हिस्सा तय था।
शहर की जनता बेबस थी, डर के मारे कोई बोलता नहीं था। पुलिस से पंगा लेने का मतलब था अपनी रोजी-रोटी गंवाना।
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इसी शहर में एक दिन एक नई जीप आकर रुकी। उसमें से उतरीं आईपीएस साक्षी राठौड़।
साक्षी का नाम पूरे डिपार्टमेंट में डर और उम्मीद का दूसरा नाम था। उन्होंने पहले ही पोस्टिंग में शराब माफिया और नेताओं को जेल भेजा था।
शिवपुर में उनकी पोस्टिंग की खबर से ही बड़े अफसरों की नींद उड़ गई थी।
साक्षी ने पहले हफ्ते कुछ नहीं किया। वह बस अपनी जीप में बैठकर शहर का चक्कर लगाती रहीं, खासकर अर्जुन चौक के आसपास।
वह देख रही थीं कैसे ट्रक वाले पैसे देते हैं, कैसे पुलिसवाले बेशर्मी से वसूली करते हैं।
लेकिन सिर्फ देखने से कुछ नहीं होता। उन्हें चाहिए थे ठोस सबूत।
एक सुबह साक्षी ने वर्दी उतार दी। साधारण सलवार-कुर्ता पहना, सिर पर दुपट्टा, हाथ में सब्जी का थैला और उसमें छुपा मोबाइल कैमरा।
वह आम औरत बनकर अर्जुन चौक पहुंचीं।
हवलदार राम भरोसे की नजर उन पर पड़ी।
“ए औरत, इधर आ!”
साक्षी ने डरी हुई आवाज में कहा, “जी साहब, बाजार से आ रही हूँ।”
हवलदार ने शक से थैला चेक किया। छीना-झपटी में मोबाइल बाहर गिर गया। कांस्टेबल ने मोबाइल तोड़ दिया और साक्षी का हाथ पकड़ लिया।
दुपट्टा हटते ही सबकी आंखें फटी रह गईं।
सामने कोई आम औरत नहीं, बल्कि आईपीएस साक्षी राठौड़ थीं।
साक्षी ने वॉकी-टॉकी से कंट्रोल रूम को बुलाया।
कुछ ही मिनटों में स्पेशल टीम ने अर्जुन चौक को घेर लिया।
17 पुलिसकर्मी और 2 दलाल गिरफ्तार हुए।
साक्षी ने सबकी जेब की तलाशी ली, सीसीटीवी फुटेज ज़ब्त किया, और टूटे मोबाइल का मेमोरी कार्ड फॉरेंसिक लैब भेजा।
शहर में हलचल मच गई। पहली बार जनता ने देखा कि पुलिस खुद पुलिस को पकड़ रही है।
लोगों के चेहरे पर खुशी थी, डर की दीवार में दरार पड़ चुकी थी।
रात को विधायक रमाकांत तिवारी का फोन आया।
“मैडम, मामला ज्यादा मत फैलाइए, वरना आपकी सर्विस लाइन लंबी है, कहीं बीच में कट न जाए।”
साक्षी ने जवाब दिया, “मैं अपनी लाइन की चिंता नहीं करती, लेकिन कानून की लाइन तोड़ने वालों को नहीं छोड़ूंगी।”
अगले दिन डीआईजी शर्मा ने बुलाया।
“इतना बड़ा ऑपरेशन क्यों किया?”
साक्षी बोलीं, “सर, बदनामी तब होती है जब वर्दी पहनकर वसूली होती है। मैंने तो बस सफाई की है।”
डीआईजी ने केस बंद करने का आदेश दिया, लेकिन साक्षी ने मना कर दिया।
अब लड़ाई खुली थी।
साक्षी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर सारे सबूत जनता और मीडिया के सामने रख दिए।
शहर साक्षी के समर्थन में खड़ा हो गया।
नेता और अफसर बौखला गए।
साक्षी पर झूठे आरोप लगाने शुरू हुए, अखबारों में फर्जी खबरें छपने लगीं।
साक्षी ने फिर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा, “अगर मेरे खिलाफ सबूत हैं तो सामने लाइए, वरना अफवाह फैलाने वालों को सजा दिलवाऊंगी।”
अब दुश्मनों ने हिंसा का रास्ता चुना।
एक रात साक्षी की जीप पर हमला हुआ, लेकिन वह बच गईं।
उनकी टीम के इंस्पेक्टर अंकित का अपहरण कर लिया गया।
साक्षी ने खुद रेस्क्यू ऑपरेशन लीड किया।
फैक्ट्री में घुसकर अंकित को जिंदा छुड़ा लिया।
अब साक्षी और भी मजबूत हो चुकी थीं।
अर्जुन चौक की वसूली से जुड़े पैसे का पीछा करते-करते साक्षी और उनकी टीम ने डीआईजी शर्मा, विधायक तिवारी और उनके गुंडों तक पहुंच बनाई।
छापेमारी में करोड़ों रुपये, सोना, प्रॉपर्टी के कागजात और डायरी मिली जिसमें पूरे राज्य का वसूली नेटवर्क लिखा था।
अब साक्षी ने ऑपरेशन न्याय शुरू किया।
एक ही रात, छह जगहों पर एक साथ रेड हुई।
फार्म हाउस पर भीषण मुठभेड़ के बाद तिवारी गिरफ्तार हुआ।
पूरे नेटवर्क का पर्दाफाश हो गया।
कोर्ट में केस चला।
वकीलों ने साक्षी पर झूठे आरोप लगाए, सबूतों को गलत साबित करने की कोशिश की।
लेकिन साक्षी ने हर दलील को काटा।
आखिरकार जज ने फैसला सुनाया—
तिवारी, डीआईजी शर्मा और 25 साथी आजीवन कारावास की सजा पाए।
शिवपुर के लोगों ने साक्षी को फूलों और मालाओं से लाद दिया।
उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे।
एक पत्रकार ने पूछा, “क्या आपकी लड़ाई खत्म हो गई?”
साक्षी ने कहा, “नहीं, यह तो बस शुरुआत है। मेरी लड़ाई तब तक जारी रहेगी जब तक इस देश का आखिरी अपराधी जेल में नहीं पहुंच जाता।”
उस रात शिवपुर में जश्न था।
साक्षी की आंखों में सुकून था।
उन्होंने सिर्फ अपराधियों को नहीं हराया, बल्कि लोगों के दिलों में उम्मीद की लौ जला दी थी।
अगर आपको कहानी का अगला भाग चाहिए या किसी किरदार की गहराई जाननी है, तो बताइए!
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