जमीन पे गीरे दाने उठाकर खाओ – एक अमीर औरत का अत्याचार, फिर एक दिन गरीब औरत ने जो किया…

दो भाइयों की कहानी – दिल, लालच और नियति का सच
प्रस्तावना
बहुत समय पहले एक कस्बे में दो भाई रहते थे। एक भाई बहुत अमीर था, दूसरा बेहद गरीब। दोनों शादीशुदा थे। अमीर भाई के पास धन, जमीन, घर, नौकर-चाकर सब था। गरीब भाई के पास सिर्फ मेहनत और उम्मीद थी। उसकी पत्नी खूबसूरत और नेकदिल थी, लेकिन घर में खाने के लिए कुछ नहीं बचता था। इसलिए वह रोज सुबह से शाम तक अमीर भाई की पत्नी के घर काम करती – झाड़ू-पोछा, बर्तन, खाना, सब कुछ। मगर उसे मजदूरी के नाम पर जो गेहूं के दाने जमीन पर गिर जाते, वही बटोरने को कहा जाता। यही उसकी मजदूरी थी।
अमीर भाई की बीवी के दिल में ईर्ष्या और जलन की आग जलती रहती थी। क्योंकि गरीब की पत्नी हुस्न में उससे कहीं बढ़कर थी। इसी जलन का बदला वह मजदूरी ना देकर, अपमान करके लेती। वह हंसकर देखती कि एक खूबसूरत औरत मिट्टी में सने दानों को चुन रही है और उसका दिल अजीब खुशी से भर जाता।
दिन गुजरते गए। गरीब भाई और उसकी पत्नी बच्चों के लिए यह बेइज्जती सहते रहे। रात को दोनों अल्लाह से दुआ करते – “ए मालिक, कभी तो हमारी हालत बदलेगी।”
संकट और घर छोड़ना
एक दिन गरीब भाई का सब्र टूट गया। उसने टूटी आवाज में कहा – “अब मुझसे यह जिल्लत और गरीबी बर्दाश्त नहीं होती। मैं यहां और एक दिन भी नहीं रुकूंगा। मैं निकल रहा हूं। अल्लाह की इस धरती पर शायद मेरे लिए भी कोई राह हो।” उसने छोटा सा सामान उठाया, बच्चों के सिर पर हाथ फेरा, पत्नी की आंखों में देखा और बिना मंजिल जाने घर छोड़ दिया।
वह चलता ही गया – जंगलों, पगडंडियों, अनजानी राहों से गुजरता रहा। जब तक कि वह एक गहरे रहस्यमय जंगल में गुम नहीं हो गया। अंधेरा छा चुका था। पेड़ों से सरसराहट की आवाजें आ रही थीं। उसे डर लगा और अपनों को छोड़ आने का अफसोस उसके दिल में चुभने लगा।
रहस्यमय महल – नवीरा से मुलाकात
घने अंधेरे में उसने एक काले लबादे में लिपटी लड़की को जाते देखा। बिना आवाज, बिना ठहराव, मानो हवा की तरह गुजर गई। वह घबरा गया। लेकिन उम्मीद की चमक आई – जहां इंसान है, वहां रास्ता भी होगा। वह उस लड़की के पीछे चल पड़ा।
लड़की पेड़ों के बीच से ऐसे गुजर रही थी जैसे रात की परछाई हो। गरीब भाई उसके पीछे-पीछे चलता रहा। टूटे पत्तों की आवाज, सन्नाटा, दूर कहीं उल्लूओं की चीख। कुछ दूर जाने के बाद घने सायों के बीच एक विशाल पुराना डरावना सा महल उभर आया। उसके चारों ओर काली बेलें लिपटी थीं, खिड़कियों में अंधेरा भरा था।
वह हिम्मत करके अंदर गया। दरवाजा धकेला – एक बड़ा सुनसान कमरा सामने था, बीचोंबीच अंगीठी जल रही थी और उस पर बड़े बर्तन में मांस पकने की खुशबू फैल रही थी। भूख से उसका पेट जैसे फटने लगा। वह बर्तन के पास जाकर खड़ा ही हुआ था कि पीछे से आवाज आई – “लगता है भूख ने आंखों की चमक छीन ली है।”
वह घबरा कर पलटा। सामने वही लड़की खड़ी थी – काले लिबास में, चेहरे पर हल्की मुस्कान। “डरो मत। मेरा नाम नवीरा है। तुम इंसान हो, मैं पहचान सकती हूं। आओ खाना खाओ और अपनी कहानी मुझे सुनाओ।”
भूख ने डर को हरा दिया। वह बैठ गया। खाना खाते-खाते उसने अपनी कहानी बयान की। गरीबी, मेहनत, पत्नी की बेइज्जती, अमीर भाई के ताने और घमंड, फिर घर छोड़ देना। यह सब कहते हुए उसकी आवाज भारी हो गई। आंखें नम हो गईं – “मेरे बच्चे आज भूखे होंगे और मैं यहां बैठकर सबसे अच्छा खाना खा रहा हूं।”
नवीरा की आंखें भी भर आईं। वह चुपचाप सुनती रही। फिर बोली, “तुम्हारा दुख, तुम्हारी सच्चाई तुम्हें खाली हाथ नहीं जाने देगी।”
चार कमरों की रहस्य – लालच और हिदायत
नवीरा ने कमरे के कोने की ओर इशारा किया – “इस गलियारे में चार कमरे हैं। तुम सिर्फ चौथा कमरा खोलना और वहां जो चांदी पड़े उतना ले जाना जितना उठा सको। लेकिन कसम है, पहले तीन कमरों को मत छूना। और एक बात, इस बात को कभी किसी को बताना मत। और कभी लौटकर यहां मत आना।”
गरीब आदमी ने नवीरा की बातें ध्यान से सुनी। उसके मन में कोई लालच नहीं उठ रहा था, क्योंकि उसने कभी जिंदगी में धन के सपने देखे ही नहीं थे। उसकी बस एक ख्वाहिश थी – अपने बच्चों का पेट भर सके।
वह गलियारा पार करता हुआ चमकते नक्काशीदार दरवाजों के पास पहुंचा। चारों दरवाजे ऐसे खामोश थे जैसे सदियों से किसी के छूने का इंतजार कर रहे हों। उसने पहला दरवाजा छूना चाहा, फिर नवीरा की बात याद आई – पहले तीन कमरे नहीं खोलना। उसने हाथ पीछे खींच लिया। हिम्मत जुटाई और चौथे दरवाजे की ओर बढ़ा। दरवाजा चरमराया, अंदर की चमक आंखों में समा गई।
फर्श पर चांदी के पहाड़ जैसे ढेर लगे थे। उसने एक छोटी बोरी उठाई और सिर्फ उतना भरा जितना आराम से उठा सके। ना ज्यादा, ना कम।
वापसी – सच्चाई और संतोष
जब वह बाहर आया, नवीरा ने देखा और उसके चेहरे पर मुस्कान आई – “तुम लालची नहीं निकले। इसलिए जो तुम ले जा रहे हो, वह तुम्हारा हक है। अगर तुमने बोरी पूरी भर ली होती, तुम दूर तक नहीं जा पाते और मेरी मां तुम्हें कभी वापस ना जाने देती।”
वह दंग रह गया, मगर समझ गया – कभी-कभी जान बचाना भी दौलत से ज्यादा कीमती होता है। “मैंने हमेशा खुद को गरीब समझा, पर शायद मैं गरीब नहीं। दुनिया की दो नजरें – हक और लालच – बस इन्हीं ने फर्क बनाया है।”
नवीरा ने उसे रास्ते तक छोड़ा और आखिरी चेतावनी दी – “जब बाहर निकल जाओ, कभी पीछे मुड़कर मत देखना और ना कभी वापस लौटना।”
वह जंगल पार करके सुबह की रोशनी में निकला। अब उसके कदमों में डर नहीं था, बल्कि उम्मीद थी। सुबह का सूरज उगा और उसकी चमक उस व्यक्ति के चेहरे पर कुछ अलग ही उजाला लेकर आई। अब उसके कंधे पर गरीबी का बोझ नहीं, बल्कि उम्मीद की थैली थी।
घर की वापसी – सुख का आरंभ
वह शहर पहुंचा – छोटा गद्ढा खरीदा, कुछ भेड़े, बकरियां, अच्छा खासा खाना और अपने दिल में घर की यादें लेकर वापस गांव की ओर चला। घर के पास पहुंचते ही उसने देखा – बच्चे झाड़ियों में पत्ते तोड़कर खा रहे थे। उसे देखते ही चीख पड़े – “अब्बू आ गए! अब्बू वापस आ गए!”
बच्चे दौड़कर उससे लिपट गए। उनकी भूखी आंखों में पहली बार चमक आई थी। उसने उन्हें सहलाया और बोला – “आज भूखा कोई नहीं सोएगा।” जब उसने दरवाजा खोला और पुकारा – “खाना लाया हूं, गर्म रोटी, चिकन, जैतून।”
गरीब पत्नी की आंखों में यकीन और खुशी दोनों उतर आए। सब ने पेट भरकर खाया। बच्चों की हंसी उस घर में पहली बार बिना दर्द के गूंजी। रात को उसने पत्नी को जंगल की अनोखी कहानी सुनाई – “हम यह जानवर बेचेंगे, दूध, दही, मक्खन बनाएंगे और इसी कमाई से जिएंगे। थोड़ा सा चांदी बची है, उससे घर ठीक करवाएंगे। और तुम अब किसी के घर काम नहीं करोगी।”
पत्नी की आंखों में अजीब सा यकीन तैर गया। दिन गुजरे, महीने बदले, भेड़े बढ़ीं, गायें बढ़ीं, फसलें उगीं, दाम आए। घर जो कभी कच्चे ईंटों का था, वह खूबसूरत मजबूत मकान बन गया। फिर वह मकान एक छोटा महल बन गया।
किस्मत का पलटाव – अमीर भाभी की जलन
अब गर्व और गरूर से भरी अमीर भाभी रोज उस महल को देखती, जिसके मालिक वही लोग थे जिन्हें वह मिट्टी से दाने उठाने को मजबूर करती थी। एक दिन उसने अपने पति से कहा – “तुम्हारा भाई आता ही नहीं, शायद उसे हमारी जरूरत नहीं।”
अमीर भाई ने घमंड से जवाब दिया – “मुझे क्या फर्क पड़ता है। मैं सफल, वो असफल।”
एक सुबह गांव में खबर फैली – गरीब से अमीर बने भाई की नई हवेली सबको हैरान कर रही है। अमीर भाई की पत्नी यह सुनकर पहले तो यकीन नहीं कर पाई। वह घर देखने खुद निकली और जब उसने विशाल हवेली को देखा, तो अचंभे में पड़ गई।
लोगों ने बताया – “हां, यह उसी गरीब आदमी का घर है। शायद उसे कोई खजाना मिला है।”
वह भागती हुई घर लौटी – “तुम्हारे भाई ने खजाना पा लिया है। नहीं तो इतनी जल्दी इतना सब कैसे?”
अमीर भाई की आंखों में जलन की चिंगारी भड़क उठी। वहीं से लालच ने उसके दिमाग को आग की तरह घेर लिया।
लालच का अंजाम – अमीर भाई की यात्रा
अगले ही दिन वह उपहार और मीठे बोल लेकर भाई के दरवाजे पर जा पहुंचा। “भाई, आज रात दावत है, तुम भाभी और बच्चे जरूर आना।”
गरीब से अमीर बने भाई ने सोचा – शायद मेरे भाई के दिल में बदलाव आ गया है। वह खुश हुआ। शाम को पूरा परिवार तैयार होकर बड़े भाई के घर गया। खाना-पीना, हंसी-मजाक सब हुआ। लेकिन अचानक अमीर भाई की बातें बदल गईं। उसने बच्चों को एक बहाना बनाकर अलग कमरे में भेज दिया और फिर बोला – “अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारे बच्चे सुरक्षित लौटें, तो बताओ खजाना कहां मिला?”
यकीन टूटा, दिल टूटा। छोटा भाई कुछ समझ नहीं पा रहा था। पत्नी ने मजबूर होकर पूरा सच कह दिया – जंगल, महल, नवीरा, चांदी का कमरा सब।
अमीर भाई का लालच – महल में प्रवेश
अमीर भाई ने रातोंरात तैयारी की – फटे कपड़े पहने, दो बड़े बोरे लेकर खजाने की तलाश में उसी काले जंगल की ओर निकल पड़ा। लालच उसकी चाल बन चुका था, घमंड उसकी आंखें बंद कर चुका था और किस्मत खामोश मुस्कुरा रही थी।
अगली सुबह धुंध से ढकी जंगल की पगडंडी पर अमीर भाई चल रहा था। दिल में सिर्फ एक ख्याल – अगर चांदी मिली थी, तो सोना भी होगा और शायद हीरे-जवाहरात भी।
वह उसी काले महल तक पहुंचा। दरवाजा खामोश था। अंदर पहुंचते ही उसे वही लड़की मिली – नवीरा। उसने पूछा – “तुम कौन? और यहां क्यों आए हो?”
अमीर भाई ने रोते हुए कहा – “मैं गरीब हूं, रोजगार की तलाश में आया हूं।”
नवीरा को दया आ गई। उसने वही बातें दोहराई – “गलियारे में चार कमरे हैं। सीधे चौथे कमरे में जाओ, बस वहीं खोलना। बाकियों से दूर रहना।”
लालच का अंजाम – विनाश की शुरुआत
लेकिन लालच कभी सिर्फ एक कमरे से नहीं भरता। वह चौथे कमरे में गया – चांदी के ढेर देख उसका दिल उछल पड़ा। उसने बोरा पूरा भर लिया, मगर बोरा उठाया नहीं गया। लालच ने कान में फुसफुसाया – “अगर चांदी है तो शायद सोना भी होगा।”
वह तीसरा कमरा खोल बैठा – वहां सोना था। बोरा खाली किया, सोना भरा। फिर सोचा – “सोना मिला है तो आगे हीरे होंगे।”
दूसरा कमरा खोला – लाल, हरे, नीले रत्न चमक रहे थे। उसने फिर बोरा खाली किया। अब दिल में आग और भड़क गई – “पहले कमरे में तो जरूर कोई अनमोल खजाना होगा।”
जब उसने पहला दरवाजा खोला, उसे बस गेहूं के बड़े-बड़े बोरे मिले। गुस्से में बोला – “इतना होगा तो कुछ खास ही होगा।” जैसे ही उसने हाथ डाला, पीछे से एक दहाड़ सी आवाज आई – “मेरे महल में इंसान और वह भी धोखे से!”
वह डर के मारे भागता गया। जंगल कांपता रहा, शाखें टूटती गईं, उसका दिल धड़क रहा था। अंत में वह जान बचाकर तो आ गया, पर उसके हाथ में क्या था? सिर्फ गेहूं की एक मुट्ठी।
अहंकार का पतन – अमीर भाई की हार
उसकी पत्नी लालच में डूबी थी। जब बीमारी आई, गरीबी वापस आई, तो उसने उसे छोड़ दिया। एक दिन वह टूटा हुआ इंसान अपने छोटे भाई के घर आया – कुंडी खटखटाई, दरवाजा खुला और सामने वह औरत खड़ी थी जिसे कभी उसने रुलाया था।
उसने उसे अंदर बुलाया, खाना खिलाया और कहा – “हम बदला नहीं लेते। अल्लाह देता है इंसाफ।”
जब छोटा भाई आया और अपने टूटे हुए बड़े भाई को देखा, उसने गहरी सांस लेकर कहा – “तुम्हारी ताकत धन नहीं, दिल होना चाहिए था। अब हमारे साथ काम करो, क्योंकि भलाई बांटने से कम नहीं होती, बल्कि बढ़ती है।”
कहानी का संदेश
यही कहानी सिखाती है – जो लालच का पीछा करता है, लालच उसकी इज्जत और जिंदगी निगल जाता है। और जो दिल से देता है, अल्लाह उसे वहीं से लौटा देता है, जहां से वह सोच भी नहीं सकता। नेकी का फल देर से मिले, पर बहुत खूबसूरत मिलता है।
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