विमान में भिखारी समझा गया व्यक्ति, कुछ ही देर में बना सबका हीरो

दिल्ली से मुंबई जा रही एक सुबह की फ्लाइट। यात्रियों से भरा केबिन, हर कोई अपनी-अपनी सीट ढूंढने में व्यस्त। इसी भीड़ में एक बेमेल शख्सियत अंदर आई – लगभग 50 साल का व्यक्ति, थकी हुई आंखें, बेतरतीब बाल, पुराना ब्लेजर और खुला कॉलर। उसके कपड़ों और चेहरे की उदासी देखकर यात्रियों ने उसे नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। कुछ लोगों ने तो उसे भिखारी समझकर तिरस्कार भरी नजरें भी दीं।

सीट नंबर 17 पर बैठते ही उसकी बगल में बैठी महिला ने नाक पर रुमाल रख लिया। एयर होस्टेस प्रिया ने भी शक भरी नजरों से उसका बोर्डिंग पास चेक किया। आसपास बैठे यात्री उसकी उपस्थिति से असहज थे। एक व्यक्ति ने तो सीट बदलने की मांग तक कर दी, लेकिन फ्लाइट फुल होने के कारण उसे मना कर दिया गया।

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इस बीच, बगल की सीट पर बैठे समीर ने उस व्यक्ति को पहचान लिया। “अरे विक्रम, तू यहां?” समीर ने चौंकते हुए पूछा। स्कूल के दिनों का दोस्त, कॉलेज का टॉपर। समीर ने अपनी सफलता का बखान करते हुए विक्रम की हालत पर तंज कसा। लेकिन विक्रम ने शांत स्वर में कहा, “यह एक लंबी कहानी है, कभी वक्त मिला तो बताऊंगा।”

फ्लाइट में अचानक हल्का झटका लगा और यात्रियों में घबराहट फैल गई। तभी एयर होस्टेस ने घोषणा की – “पायलट को अचानक स्ट्रोक हुआ है, क्या कोई डॉक्टर है?” डॉक्टर अजय शर्मा आगे आए, लेकिन स्थिति गंभीर थी। पायलट बेहोश थे, और विमान चलाने वाला कोई नहीं था। प्रिया ने कांपती आवाज में पूछा, “क्या कोई विमान चला सकता है?”

तभी विक्रम ने हाथ उठाया। समीर समेत कई यात्रियों ने विरोध किया – “इस भिखारी जैसे आदमी को प्लेन चलाने दोगे?” लेकिन विक्रम ने आत्मविश्वास से कहा, “हां, मैं जानता हूं। आखिरी बार 10 साल पहले चलाया था।” कैप्टन रोहित ने भी आग्रह किया – “अगर अनुभवी है तो इन्हें जल्दी भेजो।”

विक्रम कॉकपिट में पहुंचे, हेडसेट लगाया और कंट्रोल टावर से संपर्क किया – “दिल्ली कंट्रोल, मैं कैप्टन विक्रम मेहरा बोल रहा हूं। हमारे पायलट बीमार हैं, इमरजेंसी लैंडिंग की अनुमति चाहिए।” यह नाम सुनते ही को-पायलट रोहित हैरान रह गए। विक्रम, जिसे 22 साल पहले एक भयानक तूफान में 312 यात्रियों वाले विमान को सुरक्षित उतारने के लिए जीवित किंवदंती माना जाता था, आज फिर संकट में था।

बाहर तूफान जारी था, लेकिन विक्रम के हाथों में कमान थी। उनका हर निर्देश सटीक था। कुछ ही देर में विमान बिना किसी झटके के रनवे पर उतर गया। यात्रियों ने राहत की सांस ली। विक्रम जब बाहर निकले, जिन लोगों ने कुछ देर पहले उनका अपमान किया था, वे शर्म से सिर झुकाए खड़े थे। समीर भी दौड़कर आया, “भाई, तू सचमुच विक्की है। आज भी टॉपर है।”

एयरलाइंस अधिकारी संजय ने आगे आकर कहा, “सर, हमारा बोर्ड आपको वापस लेना चाहता है।” विक्रम ने मुस्कुराकर कहा, “उन्होंने मेरी नौकरी छीनी थी, साहस नहीं।” यह सुनते ही पूरा विमान तालियों और सम्मान से गूंज उठा। जो कुछ देर पहले तिरस्कार का पात्र था, वही आज सच्चा नायक बन गया।

यह कहानी बताती है कि सच्ची योग्यता कभी कपड़ों या बाहरी रूप में नहीं दिखती। अगर आपको यह कहानी पसंद आई तो लाइक, शेयर और कमेंट जरूर करें।