कहानी: दोस्ती और इंसानियत

परिचय

इस कहानी का मुख्य पात्र आरव है, जो एक साधारण परिवार से आता है। उसका एक करीबी दोस्त नील है, जो हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहता है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि इंसानियत और दया का भाव कितना महत्वपूर्ण है, और कैसे एक छोटी सी मदद किसी के जीवन को बदल सकती है।

घटना का आरंभ

एक दिन, जयपुर के सेंट पाल स्कूल के सामने एक सफेद कार आकर रुकी। कार में बैठा आरव बैग और पानी की बोतल संभाल ही रहा था कि एक भिखारी ने गोद में बच्चा लिए शीशे पर खटखटाने लगी। आरव ने शीशा नीचे किया और चिढ़ते हुए बोला, “अरे, गाड़ी रुकी नहीं कि तुम लोग मांगने आ जाते हो। शर्म नहीं आती?” भिखारी ने धीमे स्वर में कहा, “बेटा, कल से कुछ नहीं खाया। बच्चा भी भूखा है। दो पैसे दे दो।”

आरव ने फिर से चिढ़ते हुए कहा, “चल हट यहां से। वैसे ही लेट हो रहा हूं स्कूल के लिए।” तभी पास खड़ा उसका दोस्त नील बोला, “यह ले, मेरा लंच तू खा लेना और यह पैसे भी रख ले। बच्चे के लिए दूध ले लेना।” भिखारीन ने थरथराते हाथों से लंच और पैसे लिए और दुआएं देती चली गई। आरव, नील को देखकर थोड़ा झेप गया।

आरव ने कहा, “तू क्यों इन लोगों के पीछे लग जाता है? कल से रोज तेरे पीछे पड़ी रहेगी। खाना और पैसे दे दिए। अब खुद क्या खाएगा?” नील मुस्कुराते हुए बोला, “तेरे टिफिन से खा लूंगा। खिला देगा ना?” आरव हंस पड़ा और दोनों हंसते हुए अपनी क्लास की ओर बढ़ गए।

नील की दया

कुछ हफ्ते ऐसे ही बीत गए। नील रोज दोपहर उस औरत को खाना देने जाता। बच्चे के साथ बातें करता। लेकिन एक दिन स्कूल के बाद नील जब पहुंचा तो वह वहां नहीं थी। अगले दिन भी वह नहीं आई। तीसरे दिन नील ने स्कूल के सामने खड़े एक सब्जी वाले से पूछा, “वह आंटी जो यहां बैठती थी, दिखाई नहीं दी दो दिन से?” सब्जी वाले ने कहा, “उनका बच्चा बहुत बीमार हो गया है। अस्पताल में भर्ती है। बहुत परेशान है।”

नील का चेहरा बदल गया। उसने बिना कुछ सोचे बैग नीचे रखा और दौड़ता हुआ पास के सरकारी अस्पताल पहुंचा। अस्पताल में जाकर देखा, भिखारीन एक कोने में बैठी फूट-फूट कर रो रही थी। डॉक्टर दवा देने से मना कर चुके थे। पैसे नहीं थे। नील ने तुरंत ₹500 जेब से निकाले और डॉक्टर से कहा, “प्लीज, दवा दे दीजिए। इस बच्चे की जान बचानी है।”

डॉक्टर ने इलाज शुरू कर दिया। भिखारीन रोती रही। कांपते हुए हाथ जोड़कर बोली, “बेटा, तू तो फरिश्ता है। तेरे बिना मेरा बच्चा नहीं बचता।” उस दिन नील चुपचाप वहीं बैठा रहा जब तक बच्चे की तबीयत ठीक नहीं हुई।

आरव का संदेह

लेकिन आरव को यह सब पसंद नहीं था। एक दिन आरव बोला, “तेरे पास पैसे बहुत हैं क्या जो इन लोगों पर लुटा रहा है?” नील बोला, “मेरे पास तो फालतू पैसे नहीं हैं, लेकिन मेरी मां अब उस औरत के लिए अलग से खाना बना देती है। अब तो एक रिश्ता सा बन गया है।” फिर नील बोला, “तू भी एक बार मदद करके देख, बहुत सुकून मिलेगा।”

आरव बोला, “मेरे पापा कहते हैं मेहनत का पैसा यूं किसी पर लुटाना मूर्खता है। हमारे घर में कोई दान वगैरह नहीं करता और करता भी है तो टैक्स बचाने के लिए।” नील हंसते हुए बोला, “अपनी-अपनी सोच है दोस्त।” तभी आरव गंभीर होकर बोला, “देखना, तू इन भिखारियों को पालते-पालते खुद एक दिन भिखारी बन जाएगा। मेरे पास पैसे की कभी कमी नहीं होगी।”

नील बोला, “ठीक है। कॉलेज खत्म होने के बाद यही मिलते हैं। फिर देखेंगे कौन कहां पहुंचा।”

समय का परिवर्तन

कुछ ही सालों में दोनों अलग-अलग कॉलेज में चले गए और जिंदगी की दौड़ में खो गए। वक्त बीता। एक दिन आरव जयपुर के उसी पुराने स्कूल के सामने से गुजर रहा था। उसने देखा स्कूल के पास एक छोटी सी नाश्ते की दुकान थी, जिस पर एक औरत और उसका बेटा बैठा था। आरव ने पहचान लिया। “अरे, यह तो वही औरत है जिसे मैं हमेशा भगाया करता था और नील मदद करता था।” उसे नील की याद आ गई। लेकिन वह उसे कहां ढूंढे?

वहां से निकलकर आरव अपने ऑफिस पहुंचा। ऑफिस में मैनेजर ने मीटिंग बुलाई। “सर, आपके पापा के जाने के बाद बिजनेस पूरी तरह डाउन हो गया है। एक गलत लोकेशन पर बिल्डिंग बनाकर सारा पैसा डूब चुका है। अब एक ही सरकारी प्रोजेक्ट बचा है। अगर वह भी हाथ से निकल गया तो 2 महीने में सब नीलाम हो जाएगा।”

आरव बोला, “मुझे सब पता है। प्रोजेक्ट की फाइल भेजो। कल मैं खुद इंजीनियर से मिलूंगा। यह प्रोजेक्ट हर हाल में चाहिए।”

प्रोजेक्ट की चुनौती

अगले दिन सुबह-सुबह आरव जयपुर नगर विकास भवन पहुंचा। इंजीनियर के केबिन में पहुंचते ही बोला, “सर, यह हमारी प्रोजेक्ट रिपोर्ट है। जयपुर में हमसे बेहतर कोई बिल्डिंग नहीं बना सकता। बस एक मौका दीजिए।” इतना कहते हुए उसने सामने देखा, “अरे, यह तो नील है।” नील भी मुस्कुरा कर खड़ा हुआ और गले मिलते हुए बोला, “कैसा है दोस्त?”

आरव बोला, “अब तू मिल गया है तो मेरा काम बन जाएगा।” नील गंभीर होकर बोला, “माफ करना आरव, यह प्रोजेक्ट मैं तुम्हारी कंपनी को नहीं दे सकता। तुम्हारे पापा की बेईमानी और गलत प्रोजेक्ट्स की वजह से कंपनी की साख खत्म हो चुकी है।”

आरव के पैरों तले जमीन खिसक गई। वह नील के पैरों पर गिर गया। “मुझे एक मौका दे दे नील, वरना सब कुछ चला जाएगा।” नील बोला, “चल, एक जगह चलते हैं।”

इंसानियत की पहचान

नील उसे लेकर उसी दुकान पर पहुंचा और बोला, “पहचानता है इस औरत को जिसे तूने कभी भीख तक नहीं दी। मैंने बस थोड़ा सा लंच दिया था और कुछ मदद, और आज देख, यह अपने बेटे के साथ इज्जत की जिंदगी जी रही है। भीख मांगने से निकल कर एक आत्मनिर्भर महिला बन गई।”

फिर वह बोला, “आज तू भी मुझसे भीख मांग रहा है। सोच, फर्क क्या रह गया?” आरव की आंखें भर आईं। “हां नील, तू बिल्कुल सही था। मैंने कभी किसी की मदद नहीं की। बस घमंड किया पैसे का। यही सीखा था अपने घर से।”

तभी वही औरत मुस्कुराती हुई बोली, “भैया, आइए ना बैठिए। कुछ लाऊं आपके लिए?” नील बोला, “नहीं मां जी। बस हालचाल लेने आए थे।” औरत बोली, “आपके कारण आज मेरा बेटा स्कूल जाता है। हमने पास ही एक कमरा किराए पर ले लिया है। मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा भी आप जैसा अफसर बने। आपकी मदद जिंदगी भर नहीं भूल सकती।”

नई शुरुआत

वहां से कुछ दूर जाकर आरव बोला, “अब मैं किसी से भीख नहीं मांगूंगा। नई शुरुआत करूंगा। ईमानदारी से और अपनी कमाई का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों के लिए जरूर दूंगा।” नील बोला, “अगर तू सच में ईमानदारी से काम करेगा तो मैं तेरी सिफारिश जरूर करूंगा।”

आरव नील से गले लग गया। इन आंसुओं में उसका घमंड, उसका अहंकार सब बह चुका था। कहते हैं ना कि कभी किसी की मजबूरी का मजाक मत उड़ाओ। शायद तुम्हारी एक छोटी सी मदद किसी की पूरी जिंदगी बदल दे।

निष्कर्ष

तो दोस्तों, यह थी कहानी दो दोस्तों की। एक ऐसे दोस्त की जिसने मदद को जिम्मेदारी समझा और एक ऐसे दोस्त की जिसने देर से ही सही इंसानियत को समझा। अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी हो तो कमेंट में जरूर बताइए कि आपको कैसी लगी और कौन सा हिस्सा सबसे ज्यादा दिल को छू गया। अगर आप ऐसी कहानियां और देखना चाहते हैं तो चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें। वीडियो को लाइक करें और इसे उन लोगों तक पहुंचाइए जिन्हें पैसे से ज्यादा इंसानियत की कीमत समझनी चाहिए। धन्यवाद और फिर मिलेंगे एक और सच्ची दिल को छू लेने वाली कहानी के साथ। जय हिंद।