गेट के उस पार – एक शिक्षक की इज्जत
सर्दी की सुबह थी। सरकारी दफ्तर के बाहर खूब भीड़ थी। बड़े नेताओं की गाड़ियां अंदर जा रही थीं, पुलिस वाले अपनी वायरलेस पर बातें कर रहे थे। हर कोई किसी वीआईपी के स्वागत में लगा था। उसी भीड़ में एक दुबला पतला बुजुर्ग, लाठी के सहारे धीरे-धीरे वीआईपी गेट की तरफ बढ़ा। उम्र करीब 75-80 साल, पुराने खादी के कुर्ते, धोती में जगह-जगह पैबंद, पैरों में घिसी चप्पलें और कांपते हाथों में एक पीला पड़ा लिफाफा।
लोग उसे देखकर मुस्कुरा दिए, कुछ ने नजरें फेर ली, किसी ने बुदबुदाया—”शायद रास्ता भटक गया है।” वह बिना कुछ बोले सीधे उस गेट की तरफ बढ़ा जिस पर लिखा था—”केवल गणमान्य व्यक्तियों के लिए प्रवेश द्वार”। तभी एक सिक्योरिटी गार्ड ने उसे रोक दिया, “रुको बाबा, इधर नहीं, वीआईपी गेट है ये। तुम्हारे जैसे लोग पीछे से जाओ।”
बुजुर्ग ने सिर उठाकर गार्ड को देखा, कुछ बोलने की कोशिश की, पर दूसरा गार्ड बोला, “रहने दो यार, ये तो रोज आ जाते हैं, भीख मांगने वाले समझते हैं वीआईपी मीटिंग में घुस जाएंगे।” भीड़ में हंसी गूंज गई। बुजुर्ग चुपचाप पीछे हट गए, लाठी जमीन पर टिका ली और एक किनारे जाकर खड़े हो गए। उनकी आंखों में शिकायत नहीं थी, बस एक गहरा सन्नाटा था।
करीब दस मिनट बाद गेट के बाहर हलचल मच गई। सायरन बजने लगे, मीडिया की भीड़ जुट गई। राज्यपाल की गाड़ी आई, और जैसे ही गवर्नर साहब वीआईपी गेट की तरफ बढ़े, उनकी नजर उस किनारे खड़े बुजुर्ग पर पड़ी। वे ठहर गए, फिर कैमरे, अधिकारी, भीड़ को चीरते हुए सीधे उस बुजुर्ग के पास पहुंचे। सब हैरान थे।
गवर्नर ने बुजुर्ग को गले लगा लिया। हर कोई देख रहा था—ये आदमी कौन है? पत्रकारों के कैमरे अब उसी बुजुर्ग पर घूम गए। गवर्नर के सहायक ने कहा, “सर, प्रेस कॉन्फ्रेंस…”
गवर्नर बोले, “ये आदमी प्रेस से भी बड़ा है।”
मीडिया ने पूछा, “सर, ये कौन हैं?”
गवर्नर ने बुजुर्ग के कंधे पर हाथ रखा, “अगर ये ना होते तो मैं आज गवर्नर नहीं होता। यही मेरे स्कूल के हिंदी और नैतिक शिक्षा के शिक्षक हैं—श्री देवकी नंदन जी। जब मेरे पिता का निधन हुआ और मैं पढ़ाई छोड़ने वाला था, इन्होंने मुझे खुद पढ़ाया, अपनी तनख्वाह से मेरी फीस भरी। आज जो भी हूं, इनकी वजह से हूं।”
भीड़ में खड़े लोग शर्म से सिर झुकाए खड़े थे। गवर्नर ने उनकी लाठी पकड़ी और कहा, “यह गेट इन्हें रोक नहीं सकता, क्योंकि इस गेट के पार जो इज्जत है, उसकी नींव इन्हीं के शब्दों से रखी गई थी।”
गवर्नर ने अपनी गाड़ी की ओर इशारा किया, “आज मेरी वीआईपी सीट इनकी होगी।”
सिक्योरिटी गार्ड, जिसने उन्हें रोका था, आगे बढ़ा, “साहब, माफ कर दीजिए, मुझे नहीं पता था।”
बुजुर्ग मुस्कुराए, “मुझे माफी नहीं चाहिए, तमीज चाहिए। कभी किसी को उसके कपड़ों से मत परखो। इंसान की इज्जत उसकी जुबान और व्यवहार में होती है।”
आयोजन शुरू हुआ। मंच पर गवर्नर पहुंचे, बोले—”आज का दिन मेरे लिए औपचारिकता नहीं, एक कर्ज चुकाने का दिन है।” उन्होंने बताया कैसे देवकी नंदन जी ने उन्हें सहारा दिया, इंसान बनना सिखाया।
गवर्नर ने घोषणा की—”श्री देवकी नंदन जी को इस वर्ष का राज्य शिक्षक सम्मान और जीवन गौरव पुरस्कार दिया जाएगा। एक सरकारी स्कूल का नाम भी इनके नाम पर रखा जाएगा।”
पूरा पंडाल तालियों से गूंज उठा। देवकी नंदन जी को मंच पर बुलाया गया। उनके पैरों में फटी चप्पलें थीं, पर आंखों में चमक थी। उन्होंने कहा, “मैंने कभी सम्मान की उम्मीद नहीं की, बस यही चाहा कि मेरे विद्यार्थी अच्छे इंसान बनें। आज एक विद्यार्थी ने मुझे यह दिन दिखाया। इससे बड़ा पुरस्कार मेरे लिए कुछ नहीं।”
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