Cycle Ka Challan Krny Waly IPS officer ka Kya Injaam Howa – Real Hindi Moral Islamic Story
लखनऊ की पुरानी बस्ती की एक तंग गली में शाम के वक्त आम चहल-पहल थी। सब्जी वाले अपनी पुकार लगा रहे थे, बच्चे खेल रहे थे और औरतें दुकानों पर सौदा कर रही थीं। इसी बीच एक दुबली-पतली लड़की अपनी पुरानी साइकिल पर सवार दिखाई दी। यह थी ज़रिया फातिमा, 17 साल की एक छात्रा जिसके सपने इस छोटी सी बस्ती की दीवारों से बड़े थे।
ज़रिया के पिता का कुछ साल पहले निधन हो चुका था और घर की जिम्मेदारी उसकी मां फातिमा पर आ गई थी, जो दिन-रात मोहल्ले की औरतों के कपड़ों की सिलाई करके गुजारा करती थी। ज़रिया स्कूल से वापस आई तो पसीने में नहाई हुई थी, मगर उसके चेहरे पर एक अजीब सा अंदाज था। उसने साइकिल को घर के दरवाजे से टिका दिया और अंदर दाखिल होकर अम्मी को आवाज दी।
अम्मी, आज फिर पुलिस वालों ने रोका था। फातिमा ने सिलाई मशीन से नजरें उठाकर हैरानी से पूछा, क्यों बेटी? क्या कहा उन्होंने? ज़रिया ने धीमे लहजे में बताया कि थाने के पास खड़े दो अहलकारों ने तंज किया, कहा यह साइकिल तुम्हारी लगती नहीं, शायद चोरी की है। फिर हंसते हुए बोले कि छात्रा है तो क्या हुआ, सड़क पर चलने का भी परमिट चाहिए। और आखिर में उसकी साइकिल का चालान काट दिया।
फातिमा के हाथों से धागा निकल गया। चालान साइकिल का? उसने बेचैनी से पूछा। ज़रिया ने जेब से कागज निकाला और मां को दिखाया। सफेद कागज पर स्याही से लिखा था – गलत पार्किंग, जुर्माना ₹200।
फातिमा की आंखों में आंसू आ गए। बेटी, हम तो किसी तरह घर चलाते हैं। यह अतिरिक्त बोझ कहां से आएगा? ज़रिया ने मां का हाथ थामा। अम्मी परेशान ना हो, मैं कुछ ना कुछ कर लूंगी। लेकिन यह जुल्म है। साइकिल को तो मैं खड़ा भी सीधा कर रही थी। फिर भी… उसकी आवाज रुक गई। कमरे में खामोशी फैल गई।
उसी रात जब फातिमा सो गई, ज़रिया खिड़की के पास जाकर खामोशी से अपने स्कूल बैग के नीचे रखा एक और बैग निकाल लाई। उसमें एक जोड़ी पट्टा, पट्टीदार कपड़ा और एक छोटा सा पानी का बोतल था। यह वही सामान था जो वह छुपकर शाम को गली के आखिर में मौजूद एक खुफिया ट्रेनिंग सेंटर ले जाती थी। मां को खबर तक ना थी कि पिछले कई महीनों से ज़रिया मार्शल आर्ट सीख रही है।
अगली सुबह ज़रिया हसब-ए-मामूल अपनी पुरानी साइकिल पर सवार थी। उसने साइकिल की टोकरी में सब्जियों की टोकरी रखी हुई थी ताकि रास्ते में एक पुराने ग्राहक को पहुंचा दे। दिल ही दिल में वह सोच रही थी कि कल के चालान का क्या हल निकाला जाए। अभी वह इन्हीं ख्यालों में थी कि थाने के मोड़ पर वही अहलकार दोबारा सामने आ गए। एक पुलिस वाला तंजिया हंसते हुए बोला, अरे यह तो फिर से आ गई। कल के चालान से सबक नहीं मिला क्या?
दूसरा आगे बढ़कर साइकिल के हैंडल को पकड़ लेता है, सड़क पर चलाने का लाइसेंस दिखाओ वरना आज फिर चालान होगा। ज़रिया ने हिम्मत बांधी और परसुकून लहजे में कहा, साहब साइकिल चलाने के लिए लाइसेंस की जरूरत नहीं होती। मैं स्कूल की छात्रा हूं और मुझे जल्दी है।
पुलिस वालों ने एक दूसरे की तरफ देखा और कहकहा लगाया, वाह, कानून की प्रोफेसर लगती है यह तो। कल ही तेरी मां के कपड़ों की सिलाई के पैसे निकाले थे। अब और निकाल लेंगे। उनके तंजिया जुमलों पर राहगीर रुकने लगे। कुछ ने सर झटक कर अपनी राह ली, कुछ चुपचाप तमाशा देखने लगे। ज़रिया का दिल धड़कने लगा, मगर उसने अपने अंदर के खौफ को दबाया। आपको जो
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