DM अधिकारी साधारण लड़की के रूप में अपनी बाइक से जा रही थी तो कुछ पुलिस वालों ने बतमीजी की फिर जो हुआ

एसडीएम संजना चौधरी अपने ऑफिस में बैठी हुई फाइलें देख रही थी। वह एक मेहनती और ईमानदार अधिकारी थीं, जिनका काम में कोई सानी नहीं था। तभी उनके पास उनकी कॉलेज की दोस्त मिताली का कॉल आता है। मिताली की शादी में चार दिन बचे थे, और वह बड़ी खुशी के साथ संजना को अपनी शादी में आने का इनविटेशन दे रही थी। संजना ने मुस्कुराते हुए हामी भर दी और उसकी शादी में आने का वादा कर दिया।

शादी का दिन

चार दिन बाद शादी का दिन आ गया। संजना चौधरी जाने के लिए तैयार हो गई। लेकिन तभी उनके मन में ख्याल आया कि हर रोज गाड़ी और सिक्योरिटी के साथ घूमती हूं। लेकिन आज क्यों न जरा एक आम लड़की की तरह जाया जाए। कॉलेज की पुरानी यादें ताजा हो जाएंगी। यही सोचकर उन्होंने अपनी गाड़ी और सुरक्षा छोड़ दी। भाई की बुलेट बाइक पर बैठकर वह बिल्कुल साधारण लड़की की तरह अपनी दोस्त की शादी में जाने के लिए निकल पड़ी।

रास्ते में रुकावट

जैसे ही एसडीएम संजना चौधरी हाईवे पर पहुंची, आगे पुलिस की बैरिकेडिंग लगी दिखाई दी। कुछ पुलिसकर्मी सड़क पर खड़े होकर वाहनों की जांच कर रहे थे। सबसे आगे दरोगा बच्चन राणा खड़ा था। वर्दी में और पूरी अकड़ के साथ दरोगा बच्चन राणा का ट्रैक रिकॉर्ड बेहद खराब था। उसके खिलाफ कई बार रिश्वत लेने और फर्जी चालान काटने की शिकायतें दर्ज हो चुकी थीं। लेकिन उसके ससुर एक बड़े जज थे। इसी वजह से उस पर कभी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।

पहली मुलाकात

अब वह जिस महिला को रोकने जा रहा था, उसे अंदाजा भी नहीं था कि यह महिला उसकी पूरी जिंदगी तहस-नहस कर सकती है। एसडीएम संजना को करीब आता देख दरोगा बच्चन राणा ने हाथ उठाकर इशारे से रुकने को कहा। उसकी आवाज में रोब था, “अरे, वह लड़की बाइक साइड में लगा।” संजना ने बिना किसी झिझक के बाइक साइड में खड़ी कर दी।

दरोगा ने सख्त लहजे में पूछा, “कहां जा रही हो?” संजना ने शांत स्वर में जवाब दिया, “आज मेरी एक दोस्त की शादी है। वहीं जा रही हूं।” दरोगा बच्चन राणा ने उसे सिर से पांव तक घूरा और फिर बोला, “अच्छा, तू मोहतरमा दावत खाने जा रही है। लेकिन हेलमेट कहां है? हेलमेट क्या तेरे पिताजी पहनाएंगे? और बाइक भी बड़ी तेज चला रही थी। तेरी खूबसूरती देख। मेरा चालान काटने का मन तो नहीं कर रहा। लेकिन क्या करें? ड्यूटी तो ड्यूटी है, मजबूरी है। चालान करना ही पड़ेगा।” यह कहते हुए उसने चालान बुक निकाल ली।

चालान का बहाना

संजना समझ गई कि चालान तो बस बहाना है। उसकी नियत खराब है। उसने शांति से कहा, “सर, मैंने कोई नियम नहीं तोड़ा है।” यह सुनकर दरोगा सख्त लहजे में बोला, “ओ मैडम, हमें कानून मत सिखा। पुलिस हम हैं, तुम नहीं। कायदे कानून हमें अच्छे से पता है।” संजना बस चुपचाप उसे देखती रही। तभी बच्चन राणा ने गुस्से में ऊंची आवाज में कहा, “तू ऐसे नहीं मानेगी, तुझे कानून सिखाना पड़ेगा।”

थप्पड़ का जवाब

अगले ही पल दरोगा बच्चन राणा ने अचानक उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया और गुर्रा कर बोला, “बहुत सवाल पूछती है। पुलिस जो कहे उसे चुपचाप सुनना चाहिए।” संजना का सिर एक पल के लिए झटका खा गया। लेकिन उसने खुद को तुरंत संभाल लिया। उसकी आंखों में अब गुस्से की तेज लपटें साफ नजर आ रही थीं। दरोगा बच्चन राणा ठहाका मारकर हंसा और अपने साथियों से बोला, “अभी भी इसकी अकड़ बाकी है। लगता है इसे अच्छे से सबक सिखाना पड़ेगा।”

थाने की ओर

तभी एक सिपाही आगे बढ़ा और बोला, “साहब, इसे थाने ले चलते हैं। वहीं इसकी सारी अकड़ निकाल देंगे।” दरोगा ने हामी भरी। “हां, थाने ले चलो। इसे वहीं समझ आएगा कि पुलिस से कैसे बात करनी चाहिए।” इतना कहते ही एक सिपाही और दरोगा ने संजना का हाथ पकड़ कर उसे खींचने की कोशिश की और बोले, “चल जीप में बैठ।” संजना ने गुस्से से अपना हाथ झटक दिया और सख्त आवाज में बोली, “यह सब करने की हिम्मत भी मत करना।”

दृढ़ता का प्रदर्शन

उसकी आवाज में ऐसी दृढ़ता थी कि सिपाही एक पल के लिए सहम गया। लेकिन दरोगा बच्चन राणा का पारा और चढ़ गया। उसने सिपाहियों को आदेश दिया, “इसका घमंड तोड़ो।” सिपाही आगे बढ़ा और बेरहमी से संजना के बाल पकड़ कर उसे जबरदस्ती घसीटने लगा। दर्द से संजना कराह उठी। लेकिन फिर भी उसने अपनी असली पहचान छुपाए रखी। वह देखना चाहती थी कि ये लोग अपनी नीच हरकतों में कितनी हद तक जा सकते हैं।

पुलिस की नीचता

इसी बीच एक और सिपाही ने गुस्से में उसकी बाइक पर लात मारकर नीचे गिरा दी। वह बोला, “बड़ी आई शरीफ बनने। अब तेरा खेल खत्म।” संजना अब पूरी तरह समझ चुकी थी कि ये लोग पुलिस की वर्दी में छिपे हुए गुंडे हैं। दरोगा की आंखों में गुस्से की आग थी। वह गुस्से में बोला, “बहुत देखी है तेरी जैसी पापा की परियां। दिन में 50 आते हैं तेरे जैसे। तू पुलिस से भिड़ेगी। अभी तेरी औकात दिखाता हूं।”

चुप्पी का सामर्थ्य

उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया, “चलो रे, ले चलो इसे थाने। वहीं इसकी सारी नेतागिरी निकालेंगे।” एसडीएम संजना चौधरी अब भी चुप थी। उन्होंने अब तक अपनी पहचान उजागर करने का कोई इरादा नहीं किया था। वह देखना चाहती थी कि प्रशासन किस हद तक गिर चुका है और ये लोग अत्याचार में कितनी दूर जा सकते हैं।

थाने में

दरोगा बच्चन राणा अब झुंझुला चुका था। उसके सामने एक लड़की खड़ी थी जिसने थप्पड़ खाए, बाल खींचवाए, हाथ पकड़ कर घसीटी गई। लेकिन फिर भी उसने एक शब्द तक नहीं कहा। उसकी यह चुप्पी दरोगा के अहंकार को और भड़का रही थी। उसने गुस्से से सिपाहियों को घूरते हुए आदेश दिया, “ले चलो इसे थाने। वहीं देखेंगे इसका क्या करना है।”

दो सिपाहियों ने संजना के दोनों हाथ पकड़ लिए और जबरदस्ती घसीटने लगे। तभी संजना ने पहली बार जोर से कहा, “छोड़ो मुझे।” दरोगा हंस पड़ा और बोला, “ओहो, अब जुबान खुली है तेरी। चल थाने में देखेंगे कितना बोलती है।”

थाने का माहौल

थाने पहुंचते ही दरोगा बच्चन राणा ने जोर से चिल्लाकर कहा, “अरे कोई चाय पानी और समोसे लाओ। आज एक स्पेशल केस आया है।” संजना अब भी शांत खड़ी थी। वह गौर से देख रही थी कि आम जनता के साथ पुलिस किस तरह का व्यवहार करती है। कुछ देर बाद दरोगा ने अपने जूनियर को पास बुलाया और धीरे से कहा, “सुन, किसी तरह इस पर कोई फर्जी केस बनाकर डाल दे।”

फर्जी केस का आदेश

सिपाही चौंक कर बोला, “क्या केस साहब?” दरोगा ने कहा, “कोई भी चोरी, लूट, डकैती जो भी ठीक लगे, बस इसे अंदर डालना है। इसकी अक्ल ठीकाने लगानी है। इसकी सारी नेतागिरी निकालनी है।” संजना यह सब सुन रही थी। लेकिन अब भी उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। वह चुपचाप सब सह रही थी, मानो सही समय का इंतजार कर रही हो।

नाम बताने की चुनौती

दरोगा बच्चन राणा अपनी टेबल पर बैठा कलम घुमाते हुए बोला, “अपना नाम बता और घर का पता बता।” संजना चुप रही। दरोगा ने फिर से पूछा, “बाहरी है क्या? सुनाई नहीं देता, नाम बता अपना।” संजना अब भी शांत रही। गुस्से में दरोगा ने मेज पर जोर से हाथ मारा और चिल्लाया, “नाम बता वरना अंजाम बुरा होगा।”

कुछ पल की खामोशी के बाद संजना ने धीमे स्वर में कहा, “संजना।” दरोगा थका मार कर हंसा, “बहुत चालाक है तू, लेकिन यहां ज्यादा होशियारी मत दिखाना, वरना भारी पड़ेगा।” दरोगा ने एक सिपाही को इशारा किया और सिपाहियों ने जबरन संजना को लॉकअप में डाल दिया।

लॉकअप की स्थिति

लॉकअप गंदा और बदबूदार था। भीतर पहले से ही एक महिला बैठी थी। संजना ने उससे पूछा, “तुम्हें किस जुर्म में डाला है?” महिला बोली, “मुझे झूठे केस में फंसाया गया है।” फिर उसने संजना से पूछा, “और तुझे?” संजना ने शांत स्वर में जवाब दिया, “कुछ नहीं।” अब वह और गहराई से सोच रही थी। अगर एक एसडीएम को बिना सबूत यूं ही अंदर किया जा सकता है तो आम जनता का क्या हाल होता होगा?

प्रशासन का असली चेहरा

बाहर दरोगा बच्चन राणा ने सिपाहियों से कहा, “इस पर चोरी और ब्लैकमेलिंग का केस डाल दो।” सिपाही हिचकिचाया, “लेकिन साहब, बिना सबूत के…” दरोगा हंस पड़ा, “सबूत इस थाने में ही तो बनाए जाते हैं।”

कुछ देर बाद बच्चन राणा खुद लॉकअप में आ पहुंचा। वह गुस्से में हाथ उठाकर संजना को थप्पड़ मारने ही वाला था कि तभी दरवाजे से एक कड़क आवाज आई, “रुक जाओ।” सभी की नजरें दरवाजे की ओर घूमी। वहां पुलिस अफसर सोहन कुमार खड़ा था। थाने में उसकी छवि एक ईमानदार अधिकारी की थी।

सोहन कुमार की एंट्री

सोहन ने लॉकअप में बंद महिलाओं की हालत देखी तो उसके चेहरे पर शिकन उभर आई। उसने सख्त आवाज में पूछा, “यह सब क्या हो रहा है?” बच्चन राणा हल्की मुस्कान के साथ बोला, “कुछ नहीं सर। बस एक सड़क छाप लड़की ज्यादा होशियारी दिखा रही थी, तो सबक सिखा रहे थे।”

सोहन ने संजना की तरफ गौर से देखा। उसके हावभाव किसी साधारण महिला जैसे नहीं थे। उसे कुछ अजीब लगा। उसने बच्चन राणा से पूछा, “इस महिला का जुर्म क्या है?” बच्चन राणा थोड़ा हड़बड़ा गया। “सर, इसने चेकिंग के दौरान बदतमीजी की थी।”

मामले की गंभीरता

सोहन को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ। उसने सीधे संजना की ओर देखा और शांत स्वर में पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?” संजना अब भी चुप रही। बच्चन राणा झुंझुला कर बोला, “देखिए सर, यह तो अपना नाम तक नहीं बता रही है।” सोहन समझ चुका था कि मामला गंभीर है। उसने आदेश दिया, “ठीक है। इसे दूसरे लॉकअप में डालो।”

दूसरे लॉकअप में

सोहन के आदेश पर सिपाही संजना को दूसरे लॉकअप में बंद कर दिया। यह कमरा पहले से भी ज्यादा अंधेरा, गंदा और बदबूदार था। अंदर दीवारों पर मोटी नमी जमी हुई थी। संजना ने चारों तरफ देखा। अब वह इस प्रशासन का असली चेहरा और सांप देख पा रही थी। हर बीतते पल के साथ उसका यकीन और पक्का हो रहा था। कानून अब सिर्फ कागजों पर रह गया है। असलियत में तो इसे रौंदा जा रहा है।

डीएम की एंट्री

इत्तेफाक से उसी दिन डीएम साहब हरीश माथुर पुलिस थानों का दौरा कर रहे थे। अचानक एक सिपाही घबराते हुए थाने के भीतर आया और बोला, “साहब, बाहर एक बड़ी गाड़ी आई है।” दरोगा बच्चन राणा चौंक कर बोला, “गाड़ी कौन आया है?” सिपाही ने कहा, “सर, गाड़ी सरकारी है।” इतना सुनते ही पूरे थाने का माहौल बदल गया।

सच्चाई का सामना

तभी डीएम हरीश माथुर ने थाने में कदम रखा। उनकी आंखों में गुस्से की चमक थी। उन्होंने सीधा दरोगा बच्चन राणा की ओर देखा और कड़क आवाज में बोले, “दरोगा साहब, यहां क्या हो रहा है?” गुस्से में बोले, “दरोगा साहब, आपको पता भी है यह महिला कौन है? यह इस जिले की नई नियुक्त हुई एसडीएम संजना चौधरी हैं।” यह सुनते ही पूरे थाने में सन्नाटा छा गया। सभी पुलिसकर्मी हैरान खड़े रह गए। बच्चन राणा के हाथ-पैर कांपने लगे।

संजना का प्रतिशोध

उसकी आंखों के सामने जैसे अंधेरा छा गया जिसे वह फर्जी केस में फंसा रहा था। वहीं इस जिले की एसडीएम निकली। तभी एसएसडीएम संजना ने डीएम साहब से कहा, “इस दरोगा ने मेरे ऊपर हाथ उठाया और मेरे साथ बदतमीजी की और मेरे ऊपर फर्जी केस डाल रहा था। और लॉकअप के अंदर जो महिला बंद है, वे बता रही थी कि उन पर भी इसने झूठा केस डाला है।”

डीएम का आदेश

डीएम की आंखें गुस्से से लाल हो गईं। उन्होंने खड़े स्वर में कहा, “क्यों दरोगा बच्चन राणा, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई एसडीएम मैडम पर हाथ उठाने की और झूठा केस डालने की?” बच्चन कुछ बोलने ही वाला था कि तभी पुलिस अफसर सोहन कुमार तेज आवाज में बोला, “सर, मुझे पहले से ही शक था कि यहां कुछ गड़बड़ है।”

बच्चन की गिरफ्तारी

अब बच्चन राणा पूरी तरह अकेला पड़ चुका था। संजना ने अब अपना असली रूप दिखाया। उनकी आवाज अब भी शांत थी, लेकिन लहजा इतना सख्त कि पूरे थाने में खामोशी छा गई। “दरोगा बच्चन राणा, तुम्हें इसी वक्त सस्पेंड किया जाता है। तुम्हारे खिलाफ विभागीय जांच बैठेगी और तुम पर आपराधिक मुकदमा दर्ज होगा।” बच्चन के होश उड़ गए। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं।

न्याय की जीत

एसडीएम संजना चौधरी ने आगे कहा, “अब तुम्हारी असली जगह तुम्हारी अपनी जेल में होगी। गिरफ्तार करो इसे।” डीएम हरीश माथुर ने भी कड़क आदेश दिया, “दरोगा बच्चन राणा को तुरंत हिरासत में लो।” पूरा थाना सख्त में आ गया। जो सिपाही अभी तक बच्चन के इशारे पर चलते थे, वही अब उससे दूरी बनाने लगे।

निष्कर्ष

पुलिस ऑफिसर सोहन कुमार ने आवाज लगाई, “हवलदार, दरोगा बच्चन राणा को हिरासत में लो।” सिपाही आगे बढ़े और बच्चन राणा को पकड़ लिया। उसके चेहरे का रंग उड़ चुका था। उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसका खेल अब खत्म हो गया।

अंत

इस घटना ने संजना को और भी मजबूत बना दिया। उसने न केवल अपनी पहचान को साबित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि सच्चाई और न्याय की हमेशा जीत होती है। संजना ने यह साबित कर दिया कि एक महिला की ताकत केवल उसकी स्थिति में नहीं, बल्कि उसकी आत्मविश्वास और साहस में होती है।

इस कहानी ने हमें यह सिखाया कि हमें कभी भी अन्याय के खिलाफ खड़ा होना चाहिए, चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों न हो। संजना की तरह हमें भी अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए और समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए।

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