Dharmendra suffered terribly in his final hours, wondering why Sunny had chased Hema Malini away!…

क्या धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार इतनी जल्दबाजी में सिर्फ इसलिए किया गया ताकि परिवार के बीच के झगड़े दुनिया के सामने ना आ जाए? आखिर क्यों हेमा मालिनी और ईशा देओल अंतिम सफर की रस्मों के बीच सिर्फ कुछ देर रहकर भारी मन से लौट गईं? और सबसे बड़ा सवाल यह है कि 71 साल तक खामोशी से अपना धर्म निभाने वाली प्रकाश कौर और 45 साल तक दूसरी औरत का टैग सहने वाली हेमा मालिनी का जब आमना-सामना हुआ, तो उस पल का मंजर कैसा था?

24 नवंबर 2025 की तारीख बॉलीवुड के इतिहास में स्याह अक्षरों में लिखी गई। इस दिन सिर्फ एक सुपरस्टार नहीं गया, बल्कि अपने पीछे सवालों का एक ऐसा तूफान छोड़ गया जिसकी गूंज जूहू से लेकर पंजाब तक सुनाई दे रही है। आज हम आपको उस दिन की हर वह डिटेल बताएंगे जो कैमरों में तो कैद हुई, पर खबरों की हेडलाइंस से गायब रही।

अंतिम यात्रा की तैयारी

सुबह मुंबई के जूहू इलाके में प्लॉट नंबर 22 के उस बड़े से बंगले में अजीब सी खामोशी थी। यह वैसी खामोशी नहीं थी जैसी अक्सर किसी बड़े स्टार के घर में होती है। यह खामोशी किसी आने वाले तूफान का संकेत थी। पिछले एक महीने से धर्मेंद्र जी की तबीयत को लेकर कई तरह की खबरें चल रही थीं। कभी कहा जाता कि वह ठीक हैं, कभी खबर आती कि उन्हें अस्पताल में रखा गया है।

पर उस रविवार की सुबह जब एंबुलेंस का सायरन गेट पर गूंजा, तो वहां खड़े लोगों का दिल एक पल को रुक गया। खबर आग की तरह फैली कि 89 साल की उम्र में पंजाब का शेर, ही मैन, अपनी आखिरी सांसें ले चुका है। लेकिन असली बात तब शुरू हुई जब इस खबर के बाहर आते ही पूरा परिवार एक अजीब सी चुप्पी में डूब गया।

अंतिम संस्कार की रस्में

आमतौर पर इतने बड़े कलाकार के जाने के बाद अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर को एक दिन रखा जाता है ताकि फैंस और इंडस्ट्री उसे अलविदा कह सकें। लेकिन यहां तो जैसे सब कुछ जल्दीबाजी में किया गया। ऐसा लगा जैसे देओल परिवार यह चाहता ही नहीं था कि मीडिया या भीड़ वहां ज्यादा समय तक रहे। क्या वजह थी? क्या उन्हें डर था कि दो परिवारों का आमना-सामना किसी नई कंट्रोवर्सी को जन्म दे देगा?

लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे, और परिवार की यह रहस्यमई चुप्पी उन बातों को और हवा दे रही थी। दोपहर को करीब 1:30 बजे यह बात पक्की हुई कि धर्मेंद्र जी अब नहीं रहे और ठीक उसी वक्त विलेय पार्ले श्मशान घाट पर सुरक्षा बढ़ा दी गई। यहीं से उस दिन का असली ड्रामा शुरू हुआ। सबकी नजरें हेमा मालिनी पर थीं कि क्या वह आएंगी और अगर आएंगी तो क्या सनी और बॉबी उन्हें वह सम्मान देंगे जो उनका हक है।

हेमा का आगमन

फिर हुआ वही जिसका डर था। जब सफेद कपड़ों में आंखों पर काला चश्मा लगाए हेमा मालिनी अपनी बेटी ईशा देओल के साथ पहुंचीं, तो माहौल एकदम तनावपूर्ण हो गया। भीड़ इतनी ज्यादा थी कि पुलिस को गेट बंद करना पड़ा। इससे गॉसिप की दुनिया में यह बात फैल गई कि हेमा मालिनी को गेट पर रोका गया।

हालांकि असल में यह सुरक्षा कारणों से हुआ था। पर उस पल हेमा के चेहरे की बेबसी कैमरों ने साफ कैद कर ली। वह वही हेमा थीं जिन्होंने 45 साल तक दुनिया के ताने सहे, अपने पति के लिए सब कुछ छोड़ा और आज अपने पति की विदाई में भीड़ और नियमों से जूझती दिखीं।

रिवाजों की जिम्मेदारी

अंदर का माहौल और भी भावुक था। हिंदू रीति रिवाजों के अनुसार अंतिम रस्मों का हक बेटों और पहली पत्नी का होता है। सनी देओल और बॉबी देओल अपने पिता के पार्थिव शरीर के पास खड़े थे। उनकी आंखों में वह गहरा दर्द था जो उन्होंने कभी पर्दे पर भी नहीं दिखाया। पर इस पूरे माहौल में हेमा मालिनी, ईशा और अहाना एक दूरी बनाए खड़ी थीं।

यह वह दूरी थी जो सालों से दोनों परिवारों के बीच खींची हुई थी। जब पंडित जी ने रस्में शुरू कीं और सनी देओल आगे बढ़े, तो लोगों की नजरें हेमा पर थीं कि वह कैसा महसूस कर रही होंगी। वह वहां थीं, लेकिन मुख्य परिवार के दायरे से अलग। बॉलीवुड के बड़े सितारे वहां मौजूद थे। अमिताभ बच्चन, सलमान खान, अभय देओल और कई लोग थे। सबने उस बारीक लकीर को महसूस किया जो दोनों परिवारों को अलग करती है।

हेमा का जल्द लौटना

हेमा मालिनी कुछ देर बाद वहां से चली गईं। यह जल्दी चले जाना और भी सवाल खड़े कर गया। क्या उन्हें वहां अनकंफर्टेबल फील कराया गया? या उन्होंने खुद इसलिए यह फैसला लिया कि सनी और बॉबी अपने पिता को आखिरी विदाई सुकून से दे सकें? इस पूरे समय उनकी आंखों की उदासी साफ दिख रही थी।

बाहर फैंस उन्हें घेर रहे थे। पर उस भीड़ में भी उनके चेहरे पर एक अजीब सा खालीपन था। एक पत्नी का खालीपन जिसने 45 साल साथ निभाए। पर अंतिम सफर में भी खुद को किनारे खड़ा पाया।

प्रकाश कौर का दर्द

अब बात करते हैं उस किरदार की जिसका दर्द शायद सबसे गहरा था—प्रकाश कौर। वह महिला जिसने 1954 में धर्मेंद्र से शादी की थी, जब वह स्टार नहीं थे। वह लड़की जिसने अपने पति को स्टार बनने तक संभाला। जब धर्मेंद्र ने हेमा मालिनी से शादी की, तब भी धर्म बदलकर दुनिया ने उंगली उठाई।

पर प्रकाश कौर दीवार बनकर खड़ी रही। धर्मेंद्र की पहली फैमिली को टूटने नहीं दिया। अंतिम संस्कार वाले दिन भी परिवार ने उन्हें भीड़ और कैमरों से बचाकर अंदर रखा, लेकिन अंदर की खबरें बता रही थीं कि वह पूरी तरह टूट चुकी थीं। वह अपने जीवन साथी को हमेशा के लिए खो चुकी थीं और सनी देओल अपनी मां के लिए बेहद प्रोटेक्टिव नजर आ रहे थे।

परिवार की दरार

यह वही पुरानी खटास थी जो एक ही जगह होकर भी दो परिवारों को अलग-अलग खड़ा कर रही थी। प्रकाश कौर और हेमा मालिनी एक ही जगह मौजूद थीं। यह बहुत बड़ा पल था। दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई। पर उस खामोशी में दशकों का दर्द गूंज रहा था। वह खींचतान जो धर्मेंद्र के दो घर होने की वजह से बनी थी, वह खामोशी उस दिन और भारी हो गई।

सनी, बॉबी और बाकी देओल परिवार हेमा से दूरी बनाए रहे। ईशा देओल, जो कुछ वक्त से सनी के करीब आने की कोशिश कर रही थीं, वह भी उस दिन बिल्कुल चुप और अकेली नजर आईं। दुख ने सबको एक कर दिया था, पर पुरानी दरारें अभी भी जस की तस दिख रही थीं।

अहाना का समर्थन

उस दिन एक और बात लोगों का ध्यान खींच रही थी। अहाना देओल की मौजूदगी, जो आम दिनों में कम ही नजर आती हैं, वह भी अपनी मां और बहन के साथ खड़ी थीं। एक तरफ हेमा, ईशा, अहाना और दूसरी तरफ पूरा देओल खानदान—प्रकाश कौर, सनी, बॉबी, अभय और बाकी लोग।

यह सिर्फ श्मशान घाट का बंटवारा नहीं लग रहा था। यह आने वाले समय की विरासत और रिश्तों के बंटने की झलक भी लग रहा था। धर्मेंद्र की जायदाद करोड़ों में है और लोग पहले ही यह सवाल पूछने लगे थे कि आगे क्या होने वाला है? क्योंकि जिस तरह हेमा और उनकी बेटियां आज अलग-थलग दिखीं, उससे साफ था कि भविष्य में भी हालात आसान नहीं होंगे।

सलमान खान का समर्थन

उस दिन सलमान खान, अमिताभ बच्चन और कई बड़े कलाकार सनी और बॉबी के साथ खड़े थे। पर हेमा की तरफ शायद ही कोई गया हो। उनकी आंखों में जो दर्द था, वह किसी ने समझा हो। ऐसा नहीं लग रहा था कि एक स्टार की चमक के पीछे छुपा एक अकेला दिल उस दिन पूरी दुनिया के सामने खड़ा था।

हेमा की आंखें बार-बार विलय पार्ले श्मशान घाट के उस मैदान की तरफ उठती थीं, जहां उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा अध्याय तब खत्म हो रहा था। एक ओर सनी देओल कभी-कभी अपनी मां प्रकाश कौर की तरफ देखकर उन्हें संभालने की कोशिश कर रहे थे। दूसरी ओर हेमा मालिनी को देखना भी उनके लिए मुश्किल हो रहा था।

अंत में

यह वही सनी थे जो बचपन में अपने पिता को किसी और के साथ देखना पसंद नहीं करते थे। उनका दिल उस समय भी टूटा था और शायद इस दिन भी उनके भीतर वही जज्बात वापस आ गए थे। पर उनके चेहरे पर सिर्फ एक बेटे का दुख नजर आ रहा था।

धर्मेंद्र के जाने के बाद दोनों परिवारों के बीच का रिश्ता और भी उलझ सकता है। यह बात वहां मौजूद कई लोगों को महसूस हो रही थी क्योंकि एक तरफ सनी और बॉबी अपनी मां को लेकर हमेशा प्रोटेक्टिव रहे। वहीं हेमा और उनकी बेटियां हमेशा एक दूर से जुड़े रिश्ते में ही रही।

उस दिन भी जब हेमा वापस जा रही थीं, तो किसी ने भी उन्हें रोककर गले नहीं लगाया। ऐसा लग रहा था जैसे हर कोई अपनी-अपनी दुनिया में उलझा हुआ है और किसी के पास किसी दूसरे के दर्द को बांटने की फुर्सत नहीं थी। जब हेमा वापस अपनी कार में बैठीं, तो उन्होंने अपना चेहरा दुपट्टे से ढक लिया। लोग कह रहे थे कि वह भीड़ से बचना चाहती थीं, पर असल में वह अपने जज्बातों को छुपा रही थीं।

उन्होंने उस आदमी को खो दिया था जिसे उन्होंने हमेशा अपना माना था। जिसे बचाने के लिए उन्होंने दुनिया का हर ताना सुना। हर दर्द सहा, अपने धर्म तक को बदल दिया। वह आदमी जिसके साथ वह जिंदगी बिताना चाहती थीं। पर जिसके साथ वह कभी पूरी तरह रह ही नहीं पाईं।

निष्कर्ष

यह कहानी सिर्फ एक अंतिम संस्कार की कहानी नहीं थी। यह एक अधूरी प्रेम कहानी का आखिरी अध्याय था। जिसे देखते हुए लोगों की आंखें नम थीं। पर दिलों में ढेर सारे सवाल भी थे। यह सवाल कि क्या धर्मेंद्र की रूह को आज शांति मिल पाई होगी। यह सवाल कि उनके जाते ही उनका परिवार और बिखर जाएगा, या फिर अपने पिता की इज्जत और देओल सरनेम की साख बचाने के लिए एकजुट रहेंगे?

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि रिश्ते चाहे कितने भी मजबूत क्यों न हों, दुख के समय वे कितनी जल्दी टूट सकते हैं। हमें यह भी समझना होगा कि परंपराओं का सम्मान जरूरी है, लेकिन रिश्तों में प्यार और सम्मान सबसे महत्वपूर्ण है।

आपकी राय इस बारे में क्या है? क्या बेटियां भी बेटों के बराबर की हकदार हैं? या परंपरा को निभाना जरूरी था? कमेंट में अपनी राय जरूर लिखें।

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