पति पत्नी तलाक लेने कोर्ट पहुंचे बच्चे ने कहा जज अंकल मुझे मम्मी और डैडी दोनों चाहिए , फिर जज ने जो
पवन, प्रिया और राहुल की कहानी
दिल्ली शहर की चहल-पहल भरी ज़िंदगी में, एक खूबसूरत प्रेम कहानी शुरू हुई थी – पवन और प्रिया की। पवन एक युवा, महत्वाकांक्षी आर्किटेक्ट था, जो अपनी मेहनत और हुनर से आसमान छूने का सपना देखता था। उसकी ज़िंदगी में जुनून था, जज़्बा था, और दिल में प्यार की गर्मी थी। दूसरी तरफ प्रिया थी – एक स्कूल में संगीत अध्यापिका, जिसकी आवाज़ में सरस्वती का वास था और स्वभाव में नदी जैसी शांति। दोनों की मुलाकात एक दोस्त की शादी में हुई थी। पहली नज़र में ही दोनों के दिल एक-दूसरे के लिए धड़कने लगे थे।
कुछ ही महीनों में उनका प्यार परवान चढ़ा और उन्होंने शादी कर ली। उनकी शादी किसी सपने के सच होने जैसी थी। प्यार, हँसी, सम्मान और वादों से भरी ज़िंदगी में कुछ सालों बाद एक नन्ही सी खुशी ने जन्म लिया – उनका बेटा राहुल। राहुल के आने से उनके रिश्ते में और भी गहराई आ गई। घर में राहुल की खिलखिलाहट गूंजती रहती। पवन दिनभर की थकान के बाद घर लौटता तो राहुल को गोद में उठाकर सारी थकान भूल जाता। प्रिया अपनी लोरी से राहुल को सुलाती, और पवन मुस्कुराता रहता। वह एक आदर्श परिवार थे – एक ऐसा परिवार जिसे देखकर कोई भी रश्क करे।
पर वक्त की रेत कब हाथ से फिसल जाती है, पता ही नहीं चलता। पवन का करियर आगे बढ़ने लगा, और वह काम में इतना व्यस्त हो गया कि घर और परिवार के लिए वक्त निकालना मुश्किल हो गया। उसकी मीटिंग्स देर रात तक चलती थीं, और अक्सर उसे दूसरे शहरों में जाना पड़ता। घर आने के बाद भी उसका दिमाग काम में ही उलझा रहता। प्रिया को उसका यह बदला हुआ रूप खलने लगा था। वह पूरा दिन उसका इंतजार करती, पर जब वह आता तो उसके पास प्रिया या राहुल के लिए वक्त नहीं होता।
शिकायतों का दौर शुरू हुआ। प्रिया कहती, “पवन, तुम हमें बिल्कुल भी वक्त नहीं देते। राहुल तुम्हें कितना याद करता है?” पवन चिढ़कर जवाब देता, “प्रिया, मैं यह सब किसके लिए कर रहा हूँ? तुम लोगों के भविष्य के लिए ही तो दिन-रात मेहनत कर रहा हूँ। तुम समझती क्यों नहीं?” बात सिर्फ वक्त की नहीं थी। अब छोटी-छोटी बातों पर बहस होने लगी थी। दोनों के बीच संवाद की एक गहरी खाई बनती जा रही थी। वे एक ही छत के नीचे रहते थे, पर एक-दूसरे से मीलों दूर हो चुके थे। उनका प्यार अब शिकायतों और उम्मीदों के बोझ तले दबकर दम तोड़ रहा था। अहंकार जो पहले उनके रिश्ते में कहीं नहीं था, अब दोनों के बीच एक मोटी दीवार बनकर खड़ा हो गया था।
और इस सबके बीच 7 साल का राहुल चुपचाप पिस रहा था। वह अब अपने घर में वह पहले वाली हंसी और खुशी महसूस नहीं करता था। वह देखता था कि कैसे उसके मम्मी और डैडी अब एक-दूसरे से बात नहीं करते, एक-दूसरे पर चिल्लाते हैं। वह अक्सर रात को अपने कमरे में छिपकर रोता जब बाहर से उसे उनके लड़ने की आवाजें आतीं। वह अपनी छोटी सी दुनिया को बिखरते हुए देख रहा था और कुछ नहीं कर पा रहा था।
एक दिन हद तब हो गई जब पवन के जन्मदिन पर प्रिया ने एक सरप्राइज़ पार्टी रखी और पवन एक जरूरी मीटिंग की वजह से आना ही भूल गया। उस रात घर में इतना बड़ा तूफान आया कि उसने उनके रिश्ते की आखिरी उम्मीद को भी बहा दिया। उस दिन उन दोनों ने एक-दूसरे से अलग होने का फैसला कर लिया। तलाक का केस फैमिली कोर्ट में पहुँचा।
अदालत का कमरा नंबर चार। माहौल में एक अजीब सी ठंडक और औपचारिकता थी। दीवारों का सफेद रंग और पंखे की धीमी घरघराह वहां मौजूद लोगों के दिलों की बेचैनी को और बढ़ा रही थी। एक तरफ पवन अपने वकील के साथ बैठा था। उसका चेहरा पत्थर की तरह भावहीन था। दूसरी तरफ प्रिया अपनी आँखों पर काला चश्मा लगाए बैठी थी ताकि कोई उसके आँसुओं को ना देख सके। और उन दोनों के बीच की खाली कुर्सी पर छोटा सा राहुल बैठा था। उसकी मासूम आँखें उस अजनबी कमरे में अपनी मम्मी-डैडी के बीच किसी खोई हुई चीज को ढूंढ रही थीं।
जज की कुर्सी पर बैठे थे जनाब आसिफ इकबाल। 50 के पार की उम्र, सफेद हो चुके बाल और चेहरे पर एक ऐसी गंभीरता जो बरसों के अनुभव से आती है। उन्होंने अपनी ज़िंदगी में हजारों टूटते हुए परिवारों को देखा था। वे जानते थे कि कानून रिश्ते तोड़ सकता है, पर दिलों को जोड़ नहीं सकता।
दोनों तरफ के वकीलों ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। इल्जामों और जवाबी इल्जामों का एक घिनौना खेल खेला गया। पवन के वकील ने साबित करने की कोशिश की कि प्रिया एक झगड़ालू और शक़ी औरत है। प्रिया के वकील ने पवन को एक लापरवाह और असंवेदनशील पति के रूप में पेश किया। वे दोनों जो कभी एक-दूसरे की ताकत हुआ करते थे, आज एक-दूसरे की कमजोरियों को भरी अदालत में नीलाम कर रहे थे।
जज आसिफ इकबाल ने सब कुछ बहुत ही धैर्य से सुना। सारे कागजात देखे, सारी गवाहियाँ सुनीं और आखिर में वे उसी नतीजे पर पहुँचे जिस पर ज्यादातर ऐसे मामले पहुँचते हैं। उन्होंने माना कि इन दोनों के बीच अब इतना ज़हर घुल चुका है कि इनका एक साथ रहना लगभग नामुमकिन है। उन्होंने अपना चश्मा उतारा और मेज पर रखते हुए एक गहरी साँस ली। उनकी अनुभवी आँखें जानती थीं कि अब इस कहानी का सबसे मुश्किल हिस्सा आने वाला है।
उन्होंने अपनी कुर्सी पर थोड़ा आगे झुककर अपनी आवाज़ को नरम बनाते हुए राहुल की तरफ देखा। “बेटा, आपका नाम राहुल है ना?” राहुल ने डरते-डरते सिर हिलाया। “जी अंकल।” जज साहब ने मुस्कुराने की कोशिश की, “बेटा, मैं जानता हूँ कि यह सब आपके लिए बहुत मुश्किल है। पर कानून की वजह से मुझे आपसे एक सवाल पूछना पड़ेगा।” उन्होंने एक पल का विराम लिया और फिर पूछा, “बेटा, आप किसके साथ रहना चाहेंगे? अपनी मम्मी के साथ या अपने डैडी के साथ?”
यह सवाल उस शांत कमरे में किसी धमाके की तरह गूंजा। पवन और प्रिया दोनों ने साँसें रोककर अपने बेटे की तरफ देखा। दोनों की आँखों में एक उम्मीद थी कि उनका बेटा उन्हें चुनेगा। राहुल ने अपनी नजरें एक बार अपनी माँ की तरफ घुमाई, जो आँचल से अपने आँसू पोंछ रही थी। फिर उसने अपने पिता की तरफ देखा, जो पत्थर बनकर बैठे थे। उसने उन दोनों के बीच की उस दूरी को देखा जो उसे किसी खाई की तरह लग रही थी। उसकी छोटी सी दुनिया उसके दो सबसे प्यारे इंसान आज दो अलग-अलग रास्तों पर खड़े थे और उसे किसी एक रास्ते को चुनना था।
उसकी आँखों में आँसू भर आए। उसका छोटा सा शरीर हिचकियों से काँपने लगा। उसने अपनी काँपती हुई आवाज़ में उन सब दलीलों और कानूनों से ऊपर उठकर एक ऐसी बात कही जिसने उस अदालत की आत्मा को हिला के रख दिया। उसने रोते हुए कहा, “ज अंकल, मुझे मम्मी और डैडी दोनों चाहिए।”
यह सुनते ही जज आसिफ इकबाल चौंक पड़े। वे अपनी कुर्सी पर जड़वत हो गए। उनके बरसों के करियर में उन्होंने यह जवाब कई बार सुना था, पर आज इस बच्चे की आवाज़ में जो दर्द, जो मासूमियत थी, उसने उनके दिल को चीर के रख दिया। पवन और प्रिया के कानों में भी यह शब्द किसी पिघले हुए शीशे की तरह उतर गए। एक पल के लिए वे अपने सारे गिले-शिकवे, सारा अहंकार भूल गए। उन्हें सिर्फ अपने बेटे का रोता हुआ चेहरा और उसके वह शब्द सुनाई दे रहे थे – मुझे मम्मी और डैडी दोनों चाहिए।
जज आसिफ इकबाल ने अपने आप को संभाला। उन्होंने अपने सामने रखे पानी के गिलास को उठाया, पर उनके हाथ काँप रहे थे। उन्होंने एक गहरा और लंबा विराम लिया। फिर उन्होंने वकीलों और बाकी स्टाफ की तरफ देखकर एक ऐसा आदेश दिया जो उस अदालत में पहले कभी नहीं दिया गया था। उन्होंने कहा, “आप सब लोग प्लीज 15 मिनट के लिए कमरे से बाहर चले जाइये। मुझे इस परिवार से अकेले में बात करनी है।”
सब लोग हैरान होकर एक-दूसरे को देखने लगे, पर जज के आदेश का पालन तो करना था। धीरे-धीरे कमरा खाली हो गया। अब अंदर सिर्फ जज साहब, पवन, प्रिया और रोता हुआ राहुल ही बचे थे। जज साहब अपनी ऊँची कुर्सी से उठे और नीचे आकर उस बेंच पर बैठ गए जहाँ राहुल बैठा था। उन्होंने बहुत प्यार से राहुल के सिर पर हाथ फेरा। “बेटा, आप रोइये मत। अंकल है ना, सब ठीक कर देंगे।” फिर वे उठे और पवन-प्रिया के सामने आकर खड़े हो गए। इस वक्त वे एक जज नहीं बल्कि एक पिता, एक बुजुर्ग की तरह बात कर रहे थे। उनकी आवाज़ में अब कानून की सख्ती नहीं बल्कि ज़िंदगी के तजुर्बे की नरमी थी।
उन्होंने कहा, “मैं आप दोनों से कुछ पूछना चाहता हूँ। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप दोनों पहली बार कहाँ मिले थे?” यह सवाल सुनकर पवन और प्रिया चौंक गए। पवन ने धीरे से कहा, “एक दोस्त की शादी में।” जज ने मुस्कुरा कर पूछा, “और क्या हुआ था उस मुलाकात में?” पहली नज़र का प्यार… प्रिया की आँखों में बरसों बाद उस दिन की याद ताजा हो गई। उसने धीरे से कहा, “जी…”
जज साहब ने कहा, “मैंने आपके वकीलों की सारी दलीलें सुनीं। उन्होंने बताया कि आप दोनों एक-दूसरे से कितनी नफरत करते हैं, कितना बुरा बर्ताव करते हैं। पर किसी ने मुझे यह नहीं बताया कि आप दोनों एक-दूसरे से कितनी मोहब्बत करते थे। किसी ने आपके उन हसीन पलों के बारे में नहीं बताया जो आपने साथ गुजारे हैं।”
वे वापस अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गए। “आप दोनों पढ़े-लिखे, समझदार लोग हैं। आपने अपनी-अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल किया है। पर आज आप दोनों अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी लड़ाई हार रहे हैं। और जानते हैं क्यों? क्योंकि आप दोनों अपने अहंकार से लड़ रहे हैं, एक-दूसरे से नहीं। आपने इस लड़ाई में अपने बच्चे को अपना हथियार बना लिया है। आप दोनों यह साबित करना चाहते हैं कि आप में से कौन बेहतर माँ या बाप है। पर आप दोनों यह भूल गए हैं कि एक बच्चे के लिए माँ-बाप बेहतर या कमतर नहीं होते, वे उसकी दुनिया होते हैं। और आज आप दोनों मिलकर अपने ही बच्चे की दुनिया को उजाड़ रहे हैं।”
उन्होंने राहुल की तरफ इशारा करते हुए कहा, “एक नज़र इस बच्चे की तरफ देखिए। इसकी आँखों में देखिए। आपको अपनी नफरत के आगे इसका दर्द, इसका डर नजर आ रहा है? यह बच्चा आप दोनों में से किसी एक को नहीं चुन सकता। यह ऐसा ही है जैसे आप इससे कहें कि अपनी दाईं आँख रख लो और बाईं निकाल दो। क्या वह जी पाएगा?”
यह सुनकर प्रिया फूट-फूट कर रोने लगी। पवन ने भी अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया। उसके कंधे काँप रहे थे। जज आसिफ इकबाल ने अपनी बात जारी रखी, “मैं भी एक पिता हूँ, एक दादा हूँ। मैं जानता हूँ कि रिश्ते में उतार-चढ़ाव आते हैं, गलतफहमियाँ होती हैं। पर तलाक किसी भी समस्या का आखिरी समाधान नहीं होना चाहिए, खासकर तब जब आपके बीच में एक मासूम ज़िंदगी हो। आज आप दोनों अलग हो जाएंगे, आप दोनों अपनी-अपनी नई ज़िंदगी शुरू कर लेंगे। पर इस बच्चे का क्या होगा? यह अपनी पूरी ज़िंदगी दो घरों, दो पहचानों के बीच पिसता रहेगा। यह कभी नहीं जान पाएगा कि एक संपूर्ण परिवार का प्यार क्या होता है। क्या आप अपने बच्चे को यह सजा देना चाहते हैं?”
उन्होंने आखिरी बात कहते हुए अपनी आवाज़ को और धीमा कर लिया। “मैं कानून के हिसाब से आज ही आपके तलाक पर मोहर लगा सकता हूँ। पर मेरी आत्मा मुझे इसकी इजाज़त नहीं दे रही। मैं आपको सज़ा नहीं, एक मौका देना चाहता हूँ। एक-दूसरे को समझने का, अपनी गलतियों को सुधारने का, और सबसे बढ़कर अपने इस बच्चे की खातिर अपने अहंकार को छोड़ने का। घर जाइये। एक-दूसरे से लड़िये मत। बात कीजिए। अपने उस प्यार को याद कीजिए जिसने आपको कभी एक किया था, और फिर फैसला कीजिए कि क्या आपका अहंकार आपके बच्चे की इस एक मासूम सी ख़्वाहिश से ज़्यादा बड़ा है।”
कमरे में सिर्फ सिसकियों की आवाज़ थी। पवन अपनी जगह से उठा और धीरे-धीरे चलकर प्रिया के पास आया। उसने कांपते हुए हाथों से प्रिया का हाथ पकड़ा। प्रिया ने अपना सिर उठाया। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। बरसों बाद आज उन्होंने एक-दूसरे की आँखों में नफरत नहीं बल्कि दर्द, पछतावा और शायद वही पुराना प्यार देखा। पवन ने रोते हुए कहा, “मुझे माफ कर दो प्रिया। मुझसे गलती हो गई। मैं अपने काम में इतना अंधा हो गया कि तुम्हें और राहुल को ही भूल गया।”
प्रिया ने भी कहा, “नहीं पवन, गलती सिर्फ तुम्हारी नहीं, मेरी भी है। मैंने तुमसे बात करने की कोशिश करने के बजाय सिर्फ शिकायतें कीं…” और फिर वे दोनों अपने बेटे राहुल के पास गए और उसके दोनों तरफ घुटनों के बल बैठ गए। उन्होंने उसे अपने बीच में लेकर गले से लगा लिया। वे तीनों एक-दूसरे से लिपटकर रो रहे थे। वे आँसू सालों के दर्द, गलतफहमियों के और आज के मिलन के थे।
जज आसिफ इकबाल अपनी कुर्सी पर बैठे यह सब देख रहे थे। और आज बरसों बाद उनकी आँखों के कोने भी भीग गए थे। पर उनके चेहरे पर एक गहरी संतुष्टि थी – एक टूटे हुए परिवार को जोड़ने की संतुष्टि।
तो दोस्तों, यह थी पवन, प्रिया और उनके बेटे राहुल की कहानी। यह कहानी हमें सिखाती है कि रिश्ते बनाना जितना आसान होता है, उन्हें निभाना उतना ही मुश्किल। ज़िंदगी की भागदौड़ और गलतफहमियाँ अक्सर प्यार पर हावी हो जाती हैं। पर अगर हम अपने अहंकार को एक तरफ रखकर एक-दूसरे से बात करने की कोशिश करें, एक-दूसरे के नज़रिए को समझने की कोशिश करें, तो कोई भी रिश्ता टूटने से बच सकता है। और सबसे बढ़कर यह कहानी हमें याद दिलाती है कि बड़ों की लड़ाई का सबसे गहरा और दर्दनाक असर बच्चों पर पड़ता है। उनका आज और उनका कल दोनों हमारे आज के फैसलों पर ही निर्भर करता है।
अगर इस कहानी ने आपके दिल को छुआ है और आपको भी रिश्तों की अहमियत का एहसास कराया है, तो कृपया इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करें ताकि यह जरूरी संदेश हर घर तक पहुँच सके।
धन्यवाद!
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