“बादशाह ने अपनी प्यारी हाफिज-ए-कुरान बेटी का निकाह एक अंधे फकीर से कर दिया | दिल छू लेने वाली हिंदी-उर्दू कहानी”

भूमिका

ज़िंदगी में सबको खुशियाँ, मोहब्बत और इज्ज़त चाहिए। लेकिन कई बार तक़दीर इंसान को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है जहाँ सब्र ही उसका सबसे बड़ा सहारा बन जाता है। यह कहानी है एक ऐसी लड़की की, जिसे उसके अपने ही बाप ने ‘करमजली’ कहकर ज़िंदगी भर दुख दिए। मगर उसने हर दुख को सब्र और इमानदारी से सहा और आखिरकार अल्लाह ने उसके सब्र का फल उसे दिया।

शुरुआत: एक महल, एक बादशाह और उसकी नेक बीवी

बहुत समय पहले की बात है, किसी मुल्क ऐशा में एक बड़ा सा गाँव था। वहाँ के सबसे अमीर और ताकतवर इंसान थे बादशाह सलामत। उनका महल बहुत बड़ा था, उनके पास बेशुमार ज़मीनें थीं। गाँव के सारे किसान उनकी ज़मीन पर खेती करते थे। बादशाह की बीवी बहुत नेक, रहमदिल और परहेजगार औरत थी। वह अपने घर के नौकरों से ऐसे पेश आती थी जैसे अपने बच्चों से। खाने-पीने, पहनने-ओढ़ने में कभी किसी को कमी महसूस नहीं होने देती थी।

महल में एक बूढ़ी मुलाजिमा भी थी, जिसे सब अम्मा ज़ैनब के नाम से बुलाते थे। बादशाह की बीवी ने कभी भी ज़ैनब को नौकरानी नहीं समझा, बल्कि घर की बड़ी खातून मानती थी। अम्मा ज़ैनब से वह हर दिल की बात साझा करती थी। एक दिन बादशाह की बीवी ने ज़ैनब से कहा, “अम्मा, मेरा दिल चाहता है कि मेरा बच्चा हाफिज-ए-कुरान बने।”

खुशियों से गम तक: एक बेटी का जन्म और मां का इंतकाल

वक्त बीतता गया। पूरे गाँव में खुशहाली थी। बादशाह और उनकी बीवी की मोहब्बत मिसाल थी। बीवी को सात महीने का गर्भ हो गया था। सबको इंतजार था कि बादशाह के घर में कौन सी खुशखबरी आने वाली है। दो महीने बाद, एक दिन बादशाह की बीवी ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। मगर उसी वक्त उसकी बीवी का इंतकाल हो गया। पूरे गाँव में मातम छा गया। मगर सबसे बड़ा सदमा बादशाह को हुआ।

बादशाह ने अपनी बेटी की शक्ल तक नहीं देखी। उसके दिल में यह बात बैठ गई थी कि बेटी पैदा होते ही उसकी बीवी चल बसी। वह अपनी बेटी को अपनी बीवी की मौत का जिम्मेदार मानने लगा। बेटी को अम्मा ज़ैनब के हवाले कर दिया गया। किसी ने उसका नाम तक नहीं रखा। अम्मा ज़ैनब उसे प्यार से ‘गुलेराना’ कहकर बुलाती थी।

नफरत और तिरस्कार: एक बाप की बेरुखी

बादशाह सलामत अपनी बेटी से इस कदर नफरत करने लगे थे कि जब भी अम्मा ज़ैनब उसे सामने लाती, वह मुंह फेर कर चला जाता। धीरे-धीरे बादशाह अपने महल, सल्तनत और ज़मीनों से बेपरवाह हो गया। उसकी हालत देखकर सबको फिक्र होने लगी। अम्मा ज़ैनब ने उसे बहुत समझाया कि बेटी का कोई कसूर नहीं। मगर बादशाह के दिल में नफरत घर कर गई थी।

गुलेराना को सब ‘करमजली’ कहने लगे। इलाके के लोग बादशाह को दूसरी शादी का मशवरा देने लगे ताकि बच्ची को मां मिल सके। आखिरकार बादशाह ने दूसरी शादी कर ली। मगर सौतेली मां ने भी गुलेराना को कभी प्यार नहीं दिया। वह हमेशा बूढ़ी अम्मा ज़ैनब के पास ही रहती थी।

मां-बाप का फर्क और बहनों की तालीम

वक्त बीतता गया। सौतेली मां ने भी एक बेटी को जन्म दिया, जिसका नाम ‘नूरजहां’ रखा गया। बादशाह और उसकी बीवी नूरजहां से बहुत प्यार करते थे। उसकी हर जिद पूरी होती थी। आलीशान तालीम दिलवाई जाती थी। दूसरी तरफ गुलेराना को किसी ने तालीम की बात तक नहीं की। अम्मा ज़ैनब ने उसे मदरसे में कुरान पाक पढ़ने भेजा। गुलेराना बहुत नेक, समझदार और सब्र करने वाली लड़की थी। वह हाफिज-ए-कुरान बन गई और पांच वक्त की नमाजी थी।

दोनों बहनें जवान हो गईं। गुलेराना अपनी मां की तरह खूबसूरत और नेक थी, मगर बचपन से ही नूरजहां के पुराने कपड़े पहनती थी। उसके पास मां-बाप का प्यार नहीं था। नूरजहां मगरूर और घमंडी थी। गुलेराना पर सौतेली मां और बहन जुल्म करती थीं। वह चुपचाप सब सहती थी और अम्मा ज़ैनब की गोद में सिर रखकर रोती थी।

शादी की साजिश: अंधे फकीर से निकाह

एक दिन सौतेली मां ने बादशाह से कहा, “हमारी दोनों बेटियां जवान हो चुकी हैं। गुलेराना का साया नूरजहां की शादी पर न पड़े, इसलिए पहले इसकी शादी कर दो।” बादशाह ने नौकरों और वजीर को आदेश दिया, “मेरी करमजली बेटी के लिए कोई अंधा, लंगड़ा, लावारिस लड़का तलाश करो।”

नौकर दूसरे गाँव में गए और एक बूढ़ी फकीर और उसके अंधे बेटे को ढूंढ निकाला। बादशाह ने गुलेराना का निकाह उस अंधे फकीर से करवा दिया। दहेज में एक कपड़ा तक नहीं दिया। गुलेराना को उसकी सास और शौहर के साथ एक टूटी-फूटी झोपड़ी में भेज दिया गया।

सब्र और इबादत: गुलेराना का नया जीवन

झोपड़ी में ना सोने का ढंग था, ना खाने का। गुलेराना ने अल्लाह का शुक्र अदा किया। वह सास और शौहर की खूब खिदमत करती। खुद भूखी रह जाती मगर किसी से शिकायत नहीं करती। उसकी सास उसकी नेक आदतों से बहुत खुश थी। शौहर अंधा जरूर था, मगर बहुत नेकदिल और मोहब्बत करने वाला।

गुलेराना ने सास से कहा, “अम्मा, आप रोज-रोज भीख मांगती हैं। क्यों ना मैं मेहनत-मजदूरी करके घर चलाऊं?” सास ने भीख के पैसे गुलेराना को दिए। वह फल लेकर बाजार में बेचने लगी। एक दिन, एक अल्लाह वाले बुजुर्ग और उनकी बीवी उसके पास आए। गुलेराना ने उन्हें आम खिलाए, पानी पिलाया और खूब खिदमत की। बुजुर्ग ने उसे चंद कंकर दिये और दुआएं दीं।

मोजजा: सब्र का इनाम

गुलेराना ने उन कंकरों को अपनी झोपड़ी के चारों कोनों में रख दिया। सुबह उठी तो देखा उसकी झोपड़ी की जगह एक खूबसूरत महल बन चुका था। चारों कोनों में हीरे-मोती चमक रहे थे। खाने-पीने की कोई कमी नहीं थी। शौहर की आंखें भी ठीक हो गई थीं। गुलेराना ने अल्लाह का शुक्र अदा किया और पूरे गाँव में कुरान खवानी रखी।

उसने अपने मां-बाप और बहन को भी बुलाया। अब उसके मां-बाप कोढ़ की बीमारी में मुब्तला थे, उनकी हालत खराब थी। बहन नूरजहां भी अपनी अमीरी, घमंड और लालच में सब कुछ खो चुकी थी। उसने भी आम और अनार बेचने की कोशिश की, मगर बुजुर्ग ने उसे दुआ नहीं दी, बस मोती दिए। सुबह उठी तो उसके घर में झोपड़ी और बदबू फैल चुकी थी। नूरजहां ने अपनी बहन को कोसा, मगर गुलेराना ने उसे अपनी आधी दौलत दे दी।

माफी और मोहब्बत: इंसानियत का सबक

गुलेराना ने अपने मां-बाप को अपने घर में बुलाया और उनकी खूब खिदमत की। उसके मां-बाप ने माफी मांगी, “बेटी, हमने तुझे हमेशा करमजली समझा, तुझ पर बहुत जुल्म किए।” गुलेराना ने कहा, “अब्बा जान, आज मुझे बाप की मोहब्बत का मतलब समझ आया।” उसके बाप ने अपनी सारी जमीनें दामाद को सौंप दीं। गाँव के लोग गुलेराना के शौहर को ‘छोटा बादशाह’ कहने लगे।

अंतिम संदेश: अल्लाह की रहमत और सब्र का फल

अल्लाह पाक जो चाहे, वही होता है। अमीरी-गरीबी, इज्ज़त-ज़िल्लत सब उसी के हाथ में है। किसी को ऊस कहना, तिरस्कार करना बहुत बड़ा गुनाह है। इंसान को सब्र, मोहब्बत और नेक नियत रखनी चाहिए। अल्लाह सब्र करने वालों को कभी खाली हाथ नहीं लौटाता।

गुलेराना की कहानी हमें सिखाती है कि तक़दीर चाहे कैसी भी हो, इंसानियत, सब्र और इमानदारी से जीने वाला इंसान अल्लाह के करम से ज़रूर नवाज़ा जाता है। बाप की नफरत, मां की बेरुखी, बहन का तिरस्कार… सब कुछ सहकर गुलेराना ने सब्र और मोहब्बत की मिसाल कायम की।

समापन

यह कहानी सिर्फ एक लड़की की नहीं, बल्कि हर उस इंसान की है जो ज़िंदगी में दुख, तिरस्कार और नफरत झेलता है। अगर वह सब्र और नेक नियत से जीता है, तो अल्लाह उसे ज़रूर इनाम देता है। हमें चाहिए कि हम किसी को ऊस या करमजली न कहें, बल्कि हर इंसान की इज्ज़त करें। अल्लाह से दुआ है कि वह हमें सब्र, मोहब्बत और इंसानियत की राह पर चलने की तौफीक दे। आमीन।

दोस्तों, अगर आपको यह कहानी पसंद आई हो तो इसे दूसरों तक जरूर पहुंचाएं। हो सकता है किसी के दिल में यह बात उतर जाए और उसकी ज़िंदगी बदल जाए। अल्लाह पाक हम सबको नेक राह पर चलने की तौफीक दे। आमीन।