एक लड़की, एक थप्पड़ और पूरा सिस्टम हिल गया

सूरजपुर शहर की सीमा पर हलचल मची हुई थी। सड़क पर पुलिस का चेक पोस्ट लगा था। चार-पांच पुलिसकर्मी खड़े थे, और उनके बीच इंस्पेक्टर धीरज यादव अपनी अकड़ में लाठी घुमाते हुए खड़ा था। लंबा कद, चौड़ा शरीर और चेहरे पर ऐसा भाव, मानो पूरी सड़क उसकी जागीर हो।

उसी सड़क पर एक मोटरसाइकिल आकर रुकी। उसे चला रही थी नताशा, जो अपनी बचपन की सहेली की शादी में जा रही थी। साधारण कपड़े पहने, चेहरे पर हल्की मुस्कान और मन में ढेर सारी यादें लिए, वह बिना किसी सुरक्षा और रौब के सफर कर रही थी।

जैसे ही वह चेक पोस्ट के पास पहुंची, धीरज ने हाथ उठाकर उसे रुकने का इशारा किया। नताशा ने बाइक साइड में लगाई, हेलमेट उतारा और शांत स्वर में पूछा, “जी साहब?”

धीरज ने उसे सिर से पैर तक घूरा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, “कहां जा रही हो? सहेली की शादी? अच्छा, खाना खाने जा रही हो? लेकिन हेलमेट कहां है? क्या तुम्हारे बाप को पहनना था?”

नताशा ने सीधा उसकी आंखों में देखा और ठंडे स्वर में कहा, “सर, मैंने कोई कानून नहीं तोड़ा। हेलमेट तो मैंने पहना हुआ था।”

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बस इतना सुनते ही धीरज का पारा चढ़ गया। वह झल्लाकर बोला, “ओ मैडम, हमें मत सिखाओ कि कानून क्या होता है। तुम जैसी अकड़ू औरतों को तो मैं रोज सबक सिखाता हूं।”

इतना कहते ही उसने नताशा को जोर से थप्पड़ जड़ दिया। थप्पड़ इतना तेज था कि नताशा का चेहरा एक तरफ घूम गया। सड़क पर खड़े लोग सन्न रह गए। लेकिन नताशा का चेहरा अब भी शांत था। उसकी आंखों में आंसू नहीं थे, बस गुस्से की आग थी।

धीरज ने अपने कांस्टेबलों को इशारा किया और कहा, “चलो, इसे थाने ले चलते हैं। इसकी अकड़ वहीं निकलेगी।”

कांस्टेबलों ने जबरदस्ती नताशा को पुलिस की जीप में धकेल दिया। उसकी मोटरसाइकिल पर लाठियां बरसाई गईं, और धूल उड़ाते हुए पुलिस की गाड़ी थाने की ओर निकल पड़ी। लेकिन किसी को नहीं पता था कि जिस लड़की को वे सड़क पर घसीट रहे थे, वही लड़की ऐसी निकलेगी कि पूरा थाना, पूरा जिला और पूरा सिस्टम हिल जाएगा।

थाने में हंगामा

थाने पहुंचते ही नताशा को कांस्टेबलों ने लगभग घसीटते हुए अंदर ले जाया। इंस्पेक्टर धीरज यादव कुर्सी पर बैठा था। उसने मेज पर हाथ मारा और गरजते हुए पूछा, “नाम क्या है तेरा? कहां रहती है? किसकी बेटी है?”

नताशा ने उसकी आंखों में देखते हुए शांत स्वर में कहा, “मेरा नाम रश्मि है।”

धीरज ठहाका मारकर हंसा। “वाह, बहुत होशियार निकली। लेकिन याद रख, ज्यादा होशियारी महंगी पड़ती है।”

उसने कांस्टेबलों को आदेश दिया, “इसका चालान नहीं, सीधा केस बनाओ। लिखो – चोरी, धोखाधड़ी और ब्लैकमेलिंग। सबूत का मत पूछना। यहां सबूत लाए नहीं जाते, बनाए जाते हैं।”

नताशा को एक अंधेरी और बदबूदार कोठरी में डाल दिया गया। लेकिन वह अब भी शांत थी। उसकी खामोशी मानो कह रही थी कि वह इस सड़े-गले सिस्टम का असली चेहरा देखना चाहती है।

सच सामने आया

कुछ देर बाद थाने में एक काली गाड़ी आकर रुकी। गाड़ी से बाहर निकले कमिश्नर अरविंद राठौर। उनका कड़क चेहरा और तेज चाल देखकर पूरा थाना सन्न रह गया।

जैसे ही कमिश्नर अंदर आए, उन्होंने गुस्से से धीरज को घूरते हुए कहा, “यह सब क्या तमाशा चल रहा है? किसकी हिम्मत हुई कि बिना सबूत एक लड़की को गिरफ्तार करे?”

धीरज लड़खड़ाती आवाज में बोला, “सर, यह लड़की चेकिंग में बदतमीजी कर रही थी। हेलमेट नहीं पहना था।”

कमिश्नर ने गुस्से से कहा, “चुप! बकवास मत कर। हेलमेट के लिए कोई लड़की को कोठरी में डाल देगा? उसे तुरंत बाहर लाओ।”

कांस्टेबल नताशा को कोठरी से बाहर लाए। नताशा शांत चेहरे के साथ बाहर आई। कमिश्नर ने उससे पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”

नताशा ने चारों ओर नजर दौड़ाई और फिर धीमे स्वर में कहा, “मेरा नाम आईपीएस नताशा मेहता है।”

बस इतना सुनते ही पूरे थाने में सन्नाटा छा गया। धीरज के चेहरे का रंग उड़ गया। कांस्टेबलों के हाथ-पांव कांपने लगे।

कमिश्नर ने गुस्से से कहा, “धीरज यादव, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई कि तुम जिले की आईपीएस ऑफिसर को थप्पड़ मारो और झूठा केस बनाओ? तुम्हारी नौकरी गई। अब तुम सस्पेंड हो और तुम पर केस चलेगा।”

सिस्टम को दिया सबक

दो दिन के भीतर पूरे जिले में भूचाल आ गया। धीरज यादव समेत 40 से ज्यादा पुलिसकर्मी सस्पेंड कर दिए गए। कई बड़े अधिकारी जांच के घेरे में आ गए।

नताशा ने पत्रकारों से कहा, “अगर हम अन्याय देखकर चुप रहेंगे, तो अपराधी और ताकतवर बनते जाएंगे। लेकिन अगर एक आवाज भी सच्चाई के लिए उठ जाए, तो पूरा सिस्टम हिल सकता है।”

उस दिन नताशा ने साबित कर दिया कि सच्चाई और हिम्मत से बड़े से बड़ा अन्याय भी मिटाया जा सकता है।